Re: इधर-उधर से
तीसरी कहानी:
अम्मु कृष्णन कुट्टी केरल में 14 से 18 वय के 11 हजार स्कूल-कॉलेज स्टूडेंट्स में से एक है, जिन्हें अपने-अपने शहरों में पेश आने वाले छोटे-मोटे अपराधों पर रोक लगाने के लिए प्रशिक्षित किया गया है। इस दस्ते को 'कुट्टी पुलिस' के नाम से जाना जाता है, जिसका मलयाली भाषा में अर्थ है छोटी पुलिस। कम्युनिटी पुलिस अधिकारी श्याम कुमार के मुताबिक इस दस्ते ने आम लोगों के साथ पेश आने वाले छोटे-मोटे अपराधों पर काफी हद तक रोक लगाने में सफलता हासिल की है। इस दस्ते के रूप में यह प्रयोग कोझीकोड में तत्कालीन पुलिस कमिश्नर पी. विजयन ने 2010 में शुरू किया था। ये 11 हजार स्टूडेंट्स निर्धारित स्थानों पर सुबह और शाम को गश्त करते हैं। छोटी-मोटी घटनाओं को तो ये खुद निपटा लेते हैं, लेकिन अगर मामला बड़ा है, तो स्थानीय पुलिस की मदद लेते हैं। इन्हें स्कूली स्तर पर ही इसके लिए प्रशिक्षित किया गया है।
गौरतलब है कि हमारे देश की आबादी का काफी बड़ा भाग 25 साल से कम उम्र का है। ऐसे में इन लोगों के लिए छोटे-मोटे अपराध वाले स्थानों पर अपना प्रभाव दिखाना आसान होता है। इनके कारण स्थानीय लोगों में सुरक्षा का भाव भी आता है। इसका एक बड़ा फायदा यह भी है कि ये बच्चे वयस्क होने पर कहीं जिम्मेदार नागरिक बनकर उभरते हैं। केरल के इस प्रयोग ने ऑल इंडिया पुलिस साइंस कांग्रेस का ध्यान भी आकर्षित किया है। कांग्रेस ने इस प्रयोग को हर राज्य से लागू करने की अनुशंसा की है। आंध्र प्रदेश और राजस्थान इस बारे में केरल से और जानकारी भी ले रहे हैं।
कुछ समस्याओं का निदान अगर आपको नहीं सूझता, तो उससे दूसरे कैसे निपट रहे हैं, उससे सबक लें। अगर स्थिति नियंत्रण से बाहर जाती है, तो घबराएं नहीं। अपने आसपास देखें, हो सकता है कि वहां ऐसी ही स्थिति से दो-चार हो चुके लोग मौजूद हों। वे आपको सही समाधान सुझा सकेंगे।
|