24-03-2014, 12:32 PM
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Re: भगतसिंह, राजगुरु व सुखदेव :.........
शहीदे-आज़म भगतसिंह के विचारों को जन-जन तक पहुँचाओ !
इस बात को कहे जाने के आठ दशक से भी अधिक समय बीत चुका है लेकिन ऐसा लगता है कि ये बातें आज के हालात पर ही गई हैं। दुनिया एक ऐसी जगह लौटती हुई प्रतीत हो रही है जहाँ भगतसिंह और उनके साथियों के विचार मानों पहले से भी ज्यादा प्रासंगिक हो गए हैं। अमेरिका और यूरोप समेत पूरी दुनिया असमाधेय आर्थिक मन्दी से जूझ रही है। साम्राज्यवादी एवं पूँजीवादियों की मुनाफे की हवस ने पूरी मानवता को ही खतरे में डाल दिया है।
अमीर देशों और मुठ्ठी भर अमीरों द्वारा पूरी दुनिया पर थोपी जा रही तथाकथित नवउदारवादी नीतियों के नाम पर देश के प्राकृतिक संसाधनों को कौडिय़ों के मोल देसी-विदेशी पूँजीपतियों को बेचा जा रहा है या मुफ्त में ही दे दिया जा रहा है। इसके चलते आदिवासियों को उनकी जगह जमीन से खदेड़ा जा रहा है और किसानों की उपजाऊ जमीन को जबरिया पूँजीपतियों के हवाले किया जा रहा है। फैक्ट्रियों में श्रमकानूनों को ताक पर रख दिया गया है, खुली ठेकेदारी प्रथा लागू कर दी गयी है और हर जायज-नाजाय तरीके से श्रम की लूट के लिए पूँजीपतियों को खुला छोड़ दिया गया है। 12-18 घण्टे बिना ओवरटाइम के जबरिया काम, हर तरह की कानूनी सुविधाओं की नामौजूदगी, बिना किसी पूर्व सूचना के बर्खास्तगी और तालाबन्दी और हर ऐसी चीज को जायज बना दिया गया है।
चारों ओर भ्रष्टाचार का बोलबाला है, सरकारी दफ्तरों में छोटे से छोटा काम भी बिना रिश्वत के नहीं होता। पिछले दो दशकों में सबसे तेज गति से बढऩे वाली कोई चीज है तो वो है मंहगाई और इसने हर करीब आदमी का जीना मुहाल कर दिया है। यह सब उन्हीं नीतियों का ही परिणाम है जो देसी व विदेशी पूँजीपतियों के हाथ मिलाने के चलते लागू हुई है। इसके चलते देश की आबादी के एक बड़े हिस्से को दो वक्त की रोटी जुटाना मुश्किल होता जा रहा है। अन्य बुनियादी जरुरतें, पीने का स्वच्छ पानी, साफ सुथरा आवास, अस्पताल, स्कूल, आदि तो बहुत दूर की बात हो गई है। एक ओर जहाँ महंगाई से मेहनतकश अवाम-किसान मजदूर और छोटे कर्मचारियों का बुरा हाल है तो दूसरी ओर भारत में अरबपतियों की संख्या दिनों दिन बढ़ती जा रही है :.........
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