सत्य भ्रम है?
मुझे आज यूं ही लगा की हो सकता है सत्य केवल भ्रम हो। हम सभी किसी न किसी धुन में होतें है। कोई पढाई लिखाई में व्यस्त है, कोइ काम-धंधे में उलझा हुआ है, किसी को घुमने-फिरने से ही फुर्सत नहीं।
किसी को पैसा चाहिए...जरुरत के लिए या फिझुल खर्ची के लिए।
किसी को नाम (फेम) चाहिए...पहचान बनाने के लिये, लोकप्रिय होने के लिए।
किसी को ज्ञान चाहिए...आगे बढने के लिए, भविष्य उज्जवल बनाने के लिए। .....
विद्यार्थी के लिए पढाई ही सत्य है। फिर उसके दोस्त बन जाते है उसे किशोराव्स्था ही सत्य लगती होगी। जब वह पढ ले यह सत्य बदल कर नौकरी हो जाता है। नौकरी मिलने के बाद उसका सत्य परिवार बन जाता है। परिवार के बाद नाम,दौलत ईत्यादि कमाना उसका सत्य बन जाता है।
एक समय एसा आता है जब समाजसेवा उसको सत्य लगता है, फिर उसे ईश्वर सत्य लगता है। फिर आखिर में उसे मृत्यु सत्य लगता होगा।
तात्पर्य यह है की सत्य के कोई माईने, मापदंड कहां होते है? वह तो समय समय, व्यक्ति व्यक्ति, स्थिति-परिस्थिति बदलता रहता है! हम जिसे सत्य समझते है वह एक भ्रम तो नहीं?