Re: श्रीयोगवशिष्ठ
अहंकारदुराशा वर्णन
श्रीरामजी बोले, हे मुनीश्वर! अहंकार अज्ञान से उदय हुआ है । यह महादुष्ट है और यही परम शत्रु है । उसने मुझको दबा डाला है पर मिथ्या है और सब दुःखों की खानि है । जब तक अहंकार है तब तक पीड़ा की उत्पत्ति का अभाव कदाचित् नहीं होता । हे मुनीश्वर जो कुछ मैंने अहंकार से भजन और पुण्य किया,जो कुछ लिया दिया और जो कुछ किया वह सब व्यर्थ है । इससे परमार्थ की कुछ सिद्धि नहीं है । जैसे राख में आहुति धरी व्यर्थ हो जाती है वैसे ही मैं इसे जानता हूँ ।
|