Re: 15 अगस्त यानी स्वतंत्रता दिवस
उम्मीदों की पतंग
स्वतंत्रता दिवस पर देश की राजधानी दिल्ली सहित पूरे देश में उत्साह और जोश का माहौल रहता है। वाहनों और घरों पर फहराते तिरंगों के बीच इस दिन नीले आसमान में डोर के सहारे इतराती पतंगों को भला कौन भूल सकता है। इस दिन पतंगबाजी के लिए खास इंतजाम किए जाते हैं और पतंगबाजी की खास प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैंं। इस दिन पुरानी दिल्ली के कई स्थानों पर पतंगबाजी के शौकीन सवेरे से ही जुटने लगते हैं। मांझा, चरखी, सद्दी और ढेरों पतंगों के साथ दशकों पहले मिली आजादी की सालगिरह का जश्न मनाया जाता है। आसमान में उड़ती रंग बिरंगी पतंगें देखने वालों के लिए भी विशेष आकर्षण का केन्द्र होती हैं । भारत में वैसे तो पतंगबाजी का इतिहास काफी पुराना है, कहा जाता है कि भगवान कृष्ण भी गोपियों के संग पतंग उड़ाया करते थे। मुगलकाल में भी पतंगबाजी की लोकप्रियता के साक्ष्य मिले हैं। भारतीय साहित्य में भी पतंगबाजी का उल्लेख है, 1542 ई. में भारतीय कवि मंजान ने अपनी कविता ‘मधुमालती’ में पहली बार ‘पतंग’ शब्द का उल्लेख किया था । आज भी भारत में कुछ विशेष अवसरों पर पतंगबाजी आयोजित की जाती है । मकरसंक्रांति के अवसर पर 14 जनवरी को हर साल गुजरात के अहमदाबाद में अंतर्राष्ट्रीय पतंग महोत्सव का आयोजन किया जाता है। दिल्ली की एक निजी कंपनी में कार्यरत 59 वर्षीय रमेश चोपड़ा अपने बचपन के दिनों को याद कर कहते हैं, ‘स्कूल के दिनों में मैंने खूब पतंगें उड़ाई हैं और 15 अगस्त के लिए तो विशेष तैयारी करते थे । मुझे याद है कि तब एक पैसे में पतंग मिला करती थी, आजकल की तरह फैंसी और प्लास्टिक की पतंगों का चलन नहीं था, हम खुद ही अपने घरों में पतंग बनाया करते थे । मुहल्ले में जिसके घर की छत उंची होती थी उसी के घर जमघट लगा करता था । आज तो काफी कुछ बदल गया है ।’ रमेश चोपड़ा के 82 वर्षीय पिता रोशन लाल चोपड़ा कहते हैं, ‘मैंने ज्यादा पतंग नहीं उड़ाई हैं, लेकिन ऐसा नहीं है कि हमारे जमाने में पतंगबाजी नहीं हुआ करती थी । हमारे जमाने में भी पतंग उड़ाने का शौकीनों की कमी नहीं थी। बसंत पंचमी पर खूब पतंगें उड़ती थीं। आजादी के बाद 15 अगस्त पर पतंगें उड़ाने का चलन शुरू हुआ जो समय के साथ बढता गया।’ वहीं 30 वर्षीय संदीप को भी अपने पिता रमेश चोपड़ा की तरह पतंगबाजी का खूब शौक है। वह कहते हैं, ‘हर साल की तरह इस साल भी 15 अगस्त पर मैं पतंग उड़ाने वाला हूं, आजकल पतंग की कीमत कोई पांच रुपए के आसपास होगी, लेकिन स्कूल के दिनों में हम खुद ही पतंग बनाया करते थे । तब गज के हिसाब से पतंग उड़ाने का धागा मिलता था । दिल्ली के फिल्मीस्तान, लालकुआं से हम पतंग लाते करते थे । पतंग के मांझे को कटने से बचाने के लिए विशेष तरह का गोंद का इस्तेमाल करते थे।’ इन तीन पीढियों की पतंगबाजी का अंदाज भले ही जुदा हो, लेकिन उत्साह वही और आसमान में उम्मीदों की डोर थामे पतंगों का संदेश भी वही - आजादी... उन्नति... और शांति...।
__________________
दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु
|