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Dark Saint Alaick
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Default Re: 15 अगस्त यानी स्वतंत्रता दिवस

आजादी की लड़ाई में भी थी चम्बल के बागियों की भूमिका

उत्तर प्रदेश से लेकर मध्य प्रदेश तक फैला चम्बल का बीहड़ नामी डकैतों के लिए कुख्यात है, लेकिन आजादी की जंग में इसी बीहड़ में रहने वाले बागियों ने अहम भूमिका निभाई थी। चम्बल के बीहड़ों में आजादी की जंग की कहानी 1909 से शुरूहुई। इससे पहले शौर्य, पराक्रम और स्वाभिमान का प्रतीक मानी जाने वाली बीहड़ की वादियां चंबल के पानी की तरह साफ सुथरी और शान्त हुआ करती थीं। चम्बल में पलने वाले लोगों ने आजादी की लड़ाई लड़ रहे क्रांतिकारियों का जम कर साथ दिया। बीहड़ क्रांतिकारियों के छिपने का ठिकाना भी बना। बीहड़ों में रहने वाले अब भले ही डकैत कहे जाते हैं, लेकिन अंग्रेज उन्हें बागी कहा करते थे। डकैतों को अब भी बागी कहलाना ही पसंद है। आजादी के बाद बीहड़ में जुर्म की शुरुआत हुई, जो अब तक जारी है। इस आग में हजारों घर बर्बाद हो गए। बीहड़ में बसे डकैतों के पूर्वजों ने आजादी की लड़ाई में कंधे से कंधा मिलाकर क्रान्तिकारियों का साथ दिया, लेकिन आजादी के बाद इन्हें कुछ नहीं मिला, इसीलिए तो उनके वंशज आज भी अपने स्वाभिमान के लिए बीहड़ को आबाद किए हैं। बीहड़ मामलों के जानकार भिंड निवासी 85 वर्षीय मलखान सिंह गुर्जर, जिन्होंने आजादी की लड़ाई से लेकर आज तक बीहड़ का करीब से अवलोकन किया है, ने बताया कि राजस्थान से लेकर मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में बहने वाली चम्बल के किनारे 450 वर्ग किमी. फैले इन बीहड़ों में डकैत आज से नहीं आजादी से पहले भी हुआ करते थे। उन्हें पिंडारी कहा जाता था। पिंडारी मुगलकालीन जमींदारों के पाले हुए वफादार सिपाही हुआ करते थे, जिनका इस्तेमाल जमींदार किसी विवाद को निबटाने के लिए किया करते थे। मुगलकाल की समाप्ति के बाद अंग्रेजी शासन में चम्बल के किनारे रहने वाले इन्हीं पिंडारियों ने वहीं डकैती डालना शुरू कर दिया और बचने के लिए अपनाया चम्बल की वादियों का रास्ता। अंग्रेजो के खिलाफ भारत छोड़ो आन्दोलन में चम्बल के किनारे बसी हथकान रियासत के हथकान थाने में सन 1909 में चर्चित डकैत पंचम सिंह, पामर और मुस्कुंड के सहयोग से क्रान्तिकारी पंडित गेंदालाल दीक्षित ने थाने पर हमला कर 21 पुलिसकर्मियों को मौत के घाट उतार दिया और थाने में रखा असलहा गोला बारूद लूट लिया। इन्हीं डकैतों ने क्रान्तिकारियों गेंदालाल दीक्षित, अशफाक उल्ला खान के नेतृत्व में सन 1909 में ही पिन्हार तहसील का खजाना लूटा और उन्हीं हथियारों से 9 अगस्त 1915 को हरदोई से लखनऊ जा रही ट्रेन को काकोरी रेलवे स्टेशन पर रोककर सरकारी खजाना लूटा। डकैती, लूट और हत्याओं की सैकड़ों घटनाओं को अंजाम देने वाले क्रान्तिकारी तो जेल चले गए या फांसी पर लटका दिए गए, लेकिन चम्बल की इन वादियों में रह गए तो सिर्फ डकैत जो देश की आजादी के बाद चम्बल की बहती साफ सुथरी धरा की तरह अपने स्वाभिमान के गुलाम बने। फर्क इतना है कि पहले बागी हुआ करते थे, लेकिन आज होते हैं डकैत।
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु
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