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Re: 15 अगस्त यानी स्वतंत्रता दिवस
चम्बल के इतिहास में पंचम सिंह, पामर, मुस्कुंड के बाद नामी गिरामी दस्यु सम्राट सुल्ताना डाकू, मान सिंह मल्लाह, मलखान सिंह, दराब सिंह, माधव सिंह, तहसीलदार सिंह, लालाराम, रामआसरे तिवारी उर्फ फक्कड बाबा, निर्भय गुर्जर, रज्जन गुर्जर, पहलवान उर्फ सलीम गुर्जर, अरविंद गुर्जर, रामवीर गुर्जर, रामबाबू गरेड़िया, शंकर केवट, मंगली केवट, चंदन यादव, जगजीवन परिहार के अलावा दस्यु सुन्दरियों में पुतलीबाई से लेकर फूलन देवी, कुसुमा नाइन, सीमा परिहार, मुन्नी पांडेय, लवली पाण्डे, गंगा पाण्डे, ममता विश्नोई उर्फ गुड्डी, सुरेखा, नीलम, पार्वती, सरला जाटव, रेनू यादव, सीमा जोशी जैसी सुन्दरियों का चम्बल घाटी में आतंक कायम रहा, जिन्होंने अपहरण और लूट-हत्याओं को अंजाम देकर चम्बल के बीहड़ों से लेकर गुजरात, राजस्थान, महाराष्टñ और राजधानी दिल्ली तक अपने खौफ को बरकरार रखा। महिला डकैत के रूप में खूबसूरत नृत्यांगना गौहर बानो जब वर्ष 1950 में बीहड़ में उतरी तो पुतलीबाई बन गई, जिसे सुल्ताना डाकू के द्वारा उठा कर बीहड़ में पहुंचाया गया था। तीन वर्ष बीहड़ में बिताने के बाद 1953 में पुतलीबाई ने न्यायालय में समर्पण कर दिया, लेकिन किन्हीं कारणों के चलते उसने दो वर्ष बाद फिर बीहड़ का रास्ता अपनाया और 23 जनवरी 1956 को पुतलीबाई एक पुलिस मुठभेड़ में मारी गई। इतने वर्ष बीहड़ में बिताने के बाद भी पुतली मां नहीं बन सकी। पुतलीबाई के साथ शुरू हुआ दस्यु सुन्दरियों का सफर आगे भी जारी रहा, परन्तु बीहड़ में मां बनने का गौरव सबसे पहले सीमा परिहार को ही मिला। सीमा परिहार व फूलन देवी यह दो ऐसी दस्यु सुन्दरियों के नाम हैं, जिन्होंने डकैती जीवन के अलावा भी नाम कमाया। सीमा ने जहां बीहड़ को अलविदा कह बॉलीवुड की ओर रुख किया, तो फूलन देवी ने बीहड़ छोड़ देश की सांसद बनने का गौरव प्राप्त किया। चम्बल के इतिहास में सबसे पहली फिरौती सन 1960 में डाकू दराब सिंह ने फर्रुखाबाद के एक व्यवसायी का अपहरण कर वसूली थी। तब से आज तक चम्बल एक अपहरण उद्योग नगरी के नाम से जानी जाती है। सन 1996 से 2006 के बीच पिछले दस सालों में चम्बल के किनारे बसे इटावा, औरैया, जालौन, भिण्ड, मुरैना, ग्वालियर, आगरा तथा कानपुर देहात से 2142 अपहरण हुए जिनमें 165 बच्चे थे। उनमें से 112 को फिरौती लेकर छोड़ दिया गया, लेकिन 43 का आज तक कोई पता नहीं चला। चम्बल के डकैतों के खौफ से आसपास के सैकड़ों गांव हमेशा खौफजदा रहते थे। समय-समय पर जारी किए गए फरमानों के गुलाम बने रहे ज्यादातर डकैत इसे अपने फायदे के लिए नहीं, बल्कि अपने शरणदाताओं के फायदे के लिए जारी करते। ग्रामसभा के चुनाव से लेकर संसदीय चुनावों में मतदान के लिए गांव वालों को डकैतों की मर्जी के मुताबिक चलना पड़ता था। फरमान की अवहेलना करने वालों को नाक-कान तथा जुबान कटने की सजा से गुजरना पड़ता था। नामचीन डकैतों के सफाए में लगी उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान की पुलिस को 2005-06 के दौरान सफलता तो हाथ लगी, लेकिन बीहड के डकैतों की समस्या का समूल नाश नहीं हो सका।
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु
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