02-11-2011, 07:04 AM
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Re: स्कन्द पुराण
वैष्णव-खण्ड
दूसरा वैष्णवखण्ड है, इसमें पहले भूमि और वाराह भगवान के संवाद का वर्णन है, फ़िर कमला की पवित्र कथा और श्रीनिवास की स्थिति का वर्णन है, तदनन्तर कुम्हार की कथा तथा सुवर्णमुखरी नदी के माहात्मय का वर्णन है, फ़िर अनेक उपाख्यानों से युक्त भरद्वाज की अद्भुत कथा है, इसके बाद मतंग और अंजन के पापनाशक संवाद का वर्णन है, फ़िर उत्कल प्रदेश के पुरुषोत्तम क्षेत्र का माहात्मय कहा गया है, तत्पश्चार मार्कण्डेयजी की कथा, राजा अम्बरीष का वृतान्त, इन्द्रद्युम्न का आख्यान और विद्यापति की शुभ कथा का उल्लेख है। ब्रह्मन ! इसके बाद जैमिनि और नारद का आख्यान है, फ़िर नीलकण्ठ और नृसिंह का वर्णन है, तदनन्तर अश्वमेघ यज्ञ की कथा और राजा आ ब्रह्मलोक में गमन कहा गया है, तत्पश्चात रथयात्रा विधि और जप तथा स्नान की विधि कही गयी है। फ़िर दक्षिणामूर्ति का उपाख्यान और गुण्डिचा की कथा है, रथ रक्षा की विधि और भगवान के शयनोत्सव का वर्णन है, इसके बाद राजा श्वेत का उपाख्यान कहा गय अहै विर पृथु उत्सव का निरूपण है, भगवान के दोलोत्सव तथा सांवत्सरिक व्रत का वर्णन है, तदनन्तर उद्दालक के नियोग से भगवान विष्णु की निष्काम पूजा का प्रतिपादन किया गया है, फ़िर मोक्ष साधन बताकर नाना प्रकार के योगों का निरूपण किया गया है, तत्पश्चात दशावतार की कथा अर स्नान आदि का वर्णन है, इसके बाद बदरिकाश्रम तीर्थ का पाप नाशक माहात्मय बताया गया है, उस प्रसंग में अग्नि आदि तीर्थों और गरुण शिला की महिमा है, वहां भगवान के निवास का कारण बताया गया है। फ़िर कपालमोचन तीर्थ पंचधारा तीर्थ और मेरुसंस्थान की कथा है, तदनन्तर कार्तिक मास का माहात्म्य प्रारम्भ होता है, उसमे मदनालस के माहात्मय का वर्णन है, धूम्रकेशका उपाख्यान और कार्तिक मास में प्रत्येक दिन के कृत्य का वर्णन है, अन्त में भीष्म पंचक व्रत का प्रतिपादन किया गया है, जो भोग और मोक्ष देने वाला है। तत्पश्चात मार्गशीर्ष के माहात्म्य में स्नान की विधि बतायी गयी है, फ़िर पुण्ड्रादि कीर्तन और माला धारण का पुण्य कहा गया है, भगवान को पंचामृत से स्नान करवाने तथा घण्टा बजाने आदि का पुण्यफ़ल बताया गया है। नाना प्रकार के फ़ूलों से भगवत्पूजन का फ़ल और तुलसीदल का माहात्म्य बताया गया है, भगवान को नैवैद्य लगाने की महिमा, एकादशी के दिन कीर्तन अखण्ड एकादसी व्रत रहने का पुण्य और एकादशी की रात में जागरण करने का फ़ल बताया गया है। इसके बाद मत्स्योत्सव का विधान और नाममाहात्म्य का कीर्तन है, भगवान के ध्यान आदि का पुण्य तथा मथुरा का माहात्म्य बताया गया है, मथुरा तीर्थ का उत्तम माहात्मय अलग कहा गया है और वहां के बारह वनों की महिमा वर्णन किया गया है। तत्पश्चात इस पुराण में श्रीमदभागवत के उत्तम माहात्म्य का प्रतिपादन किया गया है इस प्रसंग में बज्रनाभ और शाण्डिल्य के संवाद का उल्लेख किया गया है जो ब्रज की आन्तरिक लीलाओं का प्रशासक है। तदनन्तर माघ मास में स्नान दान और जप करने का माहात्म्य बताया गया है, जो नाना प्रकार के आख्यानों से युक्त है, माघ माहात्म्य का दस अध्यायों में प्रतिपादन किया गया है, तत्पश्चात बैशाख माहात्म्य में शय्यादान आदि का फ़ल कहा गया है, फ़िर जलदान की विधि कामोपाख्यान शुकदेव चर्त व्याध की अद्भुत कथा और अक्षयतृतीया आदि के पुण्य मा विशेष रूप से वर्णन है, इसके बाद अयोध्या माहात्म्य प्रारम्भ करके उसमे चक्रतीर्थ ब्रह्मतीर्थ ऋणमोचन तीर्थ पापमोचन तीर्थ सहस्त्रधारातीर्थ स्वर्गद्वारतीर्थ चन्द्रहरितीर्थ धर्महरितीर्थ स्वर्णवृष्टितीर्थ की कथा और तिलोदा-सरयू-संगम का वर्णन है, तदनन्तर सीताकुण्ड गुप्तहरितीर्थ सरयू-घाघरा-संगम गोप्रचारतीर्थ क्षीरोदकतीर्थ और बृहस्पतिकुण्ड आदि पांच तीर्थों की महिमा का प्रतिपादन किया गया है, तत्पश्चात घोषार्क आदि तेरह तीर्थों का वर्णन है। फ़िर गयाकूप के सर्वपापनाशक माहात्म्य का कथन है,तदननतर माण्डव्याश्रम आदि,अजित आदि तथा मानस आदि तीर्थों का वर्णन किया गया है।
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