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Old 20-11-2014, 04:50 PM   #115
Dr.Shree Vijay
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Originally Posted by soni pushpa View Post
डॉ श्री विजय जी, बहुत बहुत आभार, आपने इस कहानी के जिस स्वरुप को आपनी नजर से देखा वो पहली नजर में मुझे भी बहुत अच्छा लगा की, संत जी ने कितने अछे से समझाया किन्तु आपसे इतना पूछना चाहूंगी की हमारे समाज में बाबाओ ने इस तरह की कहानियो द्वारा अपरोक्ष रूप से स्त्री स्वतंत्रता पर बंदिश नही लगाईं ? आपको एइसा कभी नही लगा क्या ? मेरे ख्याल से आप जरुर मानते हैं इस बात को क्यूंकि आपने इसी सूत्र में महिलाओं के लिए बहुत अच्छा अच्छा लिखा है.

बाकि डॉ श्री विजय जी मैंने आपने सभी विचार हीरे की परख वाले ब्लॉग में रखे हैं please आप उसे पढियेगा तब आप समझ जायेंगे की मैंने कुछ गलत बात नही कही .

प्रिय पुष्पा जी, आपने मुझसे अच्छा प्रश्न किया हें, मेरा स्वभाव और मेरी सोंच सदा ही सकारात्मक हैं,
आज तक मेरे जीवन में और फोरम में भी मैने कभी किसी के दिल को ठेस नहीं पहुचाई और ना ही किसी के लिये ओछे शब्दों का उपयोग किया मैने सदा जीवनोपयोगी सार ही ग्रहण किया भूसे कों वहीं रहने दिया, मैने सदा ग्लास आधा भरा हुआ ही देखा किसी कों अगर आधा खाली नजर आये तों वह उनकी सोंच, क्युकी सत्य तों दोनों ही कह रहें हैं, यह तों हुई मेरी अपनी बात अब आतें हें आपके प्रश्न पर .....

प्रश्न : किन्तु आपसे इतना पूछना चाहूंगी की हमारे समाज में बाबाओ ने इस तरह की कहानियो द्वारा अपरोक्ष रूप से स्त्री स्वतंत्रता पर बंदिश नही लगाईं? आपको एइसा कभी नही लगा क्या ?

जितनी इज्जत स्त्री यों कि यहाँ इसी भारत में थी उतनी तों शायद समग्र संसार में भी नही थी, यहाँ यही सिखाया जाता था " जहाँ नारी कि पूजा होतीं हें वहीं देवताओं का निवास होता हें " यही हमारी प्राचीन संस्कृति और सभ्यता थी, आप इतिहास उठाके देख लीजिए जितना नाम यहाँ नारियों ने किया उतना तों शायद पुरुषों ने भी नहीं किया !

आप जो बात कर रही हें वो आज के आजाद भारत कि हें तों आज भी यहाँ बेटियां कई क्षेत्रोंमें पुरुषों से एक कदम आगे ही हें, वह मैने उपरोक्त कई चित्रों में प्रस्तुत किया हें,

रही बात बाबा ऑ की तों बाबाओं और संतो में बहुत बड़ा भेद हें, संतो की बातें सदा ही सारगर्भित होती हें, इन तथा कथित बाबाओं की नही, आज इन तथा कथित बाबाओं की वजह से संत समाज कों भी हिन् भावनाओं से देखा जा रहा हें, यह बातें फिर कभी !!!




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