Re: आरोग्यनिधि
अवश्यपढ़ें-
उपवासः उपवास काल में रोगी के शरीर में नया मल उत्पन्न नहीं होता है और जीवनशक्ति को पुराना जमा मल निकालने का अवसर मिलता है। इस प्रकार मल-शुद्धि द्वारा स्वास्थ्य प्राप्त होता है।
उपवास का अर्थ होता है निराहार रहना। लोग उपवास तो कर लेते हैं लेकिन उपवास छोड़ने पर क्या खाना चाहिए, इस पर ध्यान नहीं देते।इसीलिए अधिक लाभ नहीं होता। जितने दिन उपवास करें उतने ही दिन उपवास छोड़ने पर मूँग का पानी तथा उसके दोगुने दिन तक मूँग लेना चाहिए। तत्पश्चात् खिचड़ी, चावल आदि तथा अन्त में सामान्य भोजन करना चाहिए।
किसी भी रोग की शुरुआत में उपवास, मूँग का पानी, मूँग, परवल, भुने हुए चने, चावल की राब आदि लेना चाहिए।
दवा लेने की यदि विधि न बताई गई हो तो वह दवा केवल पानी या शहद के साथ लें।
भूखे पेट ली गई आयुर्वैदिक काष्ठ औषधि अधिक लाभदायकर होती है। खाली पेट दोपहर एवं रात्रि को भोजन से पूर्व दवा लें किन्तु जहाँ स्पष्ट बताया गया हो वहाँ उसी प्रकार दवा लेने की सावधानी रखें।
सामान्य रूप से दवा चार घण्टे के अंतर से दिन में तीन बार ली जाती है।
विविध दवाओं की मात्रा जब न बताई गयी हो वहाँ उन्हें समान मात्रा में लें।
दवा के प्रमाण में जब अनिश्चितता हो, अथवाशंका उठे, तब प्रारंभ में थोड़ी-ही मात्रा में दवा लेना शुरु करें। फिर पचने पर धीरे-धीरे बढ़ाते जायें या अनुभवी वैद्य की सलाह लें।
वच, अतिविष, कुचला, जायफल, अरीठे जैसी उग्र दवाओं को सावधानीपूर्वक एवं कम मात्रा में ही लें।
हरड़े खाना तो बहुत हितकारी है।। भोजन के पश्चात् सुपारी की तरह तथा रात्रि को हरड अवश्य लेनी चाहिए। इसे धात्री अर्थात् दूसरी माता भी कहा गया है। लेकिन थके हुए, कमजोर, प्यासे, उपवासवाले व्यक्तियों एवं गर्भवती स्त्रियों को हरड़े नहीं खानी चाहिए।
आँवले का सेवन अत्यंत हितावह है। अतः भोजन के प्रारंभ, मध्य एवं अन्त में नित्य सेवन करें।
भोजन के एक घण्टे बाद जल पीना आरोग्यता की दृष्टि से हितकर है।
दोपहर के भोजन के पश्चात सौ कदम चलकर 10 मिनट वामकुक्षि (बायीं करवट लेटना) करना स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है।
दाँयें स्वर में भोजन एवं बाँयें स्वर में पेय पदार्थ लेना स्वास्थ्य के लिए हितकर है।
भोजन एवं सब्जी के साथ फलों का रस कभी न लें। दोनों के बीच दो घण्टे का अंतर अवश्य होना चाहिए।
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