Re: प्रायश्चित
शादी करके दोनो शहर में ही रहने लगे। स्वाति भी प्राइवेट स्कूल में टीचर की जाॅब करने लगी। पिछली बार जब गांव से आए थे तो मन में बड़ी उमंगे थी पर सात आठ दिन में ही बहू के तेवर और बेटे की बेबसी के चलते वापस गांव की तरफ हो लिए। कई बार मयंक को फोन करकर बोला भी की बेटा गांव आ जा..पर वो हर बार कह देता..मां छुट्टी ही नही मिलती कैसे आऊं..लेकिन मैं ठहरी एक मां..आखिर मां का तो मन करता है ना अपने बच्चे से मिलने का..बहू चाहे कैसा भी बर्ताव करे..काट लेंगे किसी तरह ये दस दिन..पर बच्चे को जी भरकर देख तो लेंगे.."अरे भागवान..उठ जाओ..स्टेशन आ गया उतरना नही है क्या..मयंक के पिताजी की आवाज मयंक की मां को यादों की दुनियां से वापस खींच लाई.. सामान उठाकर दोनो स्टेशन से बाहर आ गए और आटो में बैठकर दोनो मयंक के घर के लिए रवाना हो गए..
घर पहुंचे तो बहू घर पर ही थी। जाते ही बहू ने दोनो के पैर छुए..हम दोनो को ड्राइंगरूम में बिठाकर हम दोनो के लिए ठण्डा ठण्डा शरबत लाई हम लोगों ने जैसे ही शरबत खत्म किया बहू ने कहा "पिता जी...आप सफर से थक गए होंगे..नहा लिजिए..सफर की थकान उतर जाएगी फिर मैं आपके लिए खाना लगा देती हूं। पिताजी नहाने चले गए। बहू रसोई में घुसकर खाना बनाने लगी। थोड़ी देर में मयंक भी आ गया। फिर बैठकर सबने थोड़ी देर बातें की और फिर सबने खाना खाया। मयंक और बहू सोने चले गए और हम भी सो गए।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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