Re: फ़िल्मी दुनिया/ क्या आप जानते है?
लता जी मानती हैं कि संगीत में कभी पूर्णता नहीं आ सकती. यह तो सागर की तरह अनंत है और पूरे जीवन की साधना के बाद इसकी कुछ बूँदें ही मिल पाती है. वे बिना किसी कोताही के आज भी रियाज़ करती हैं भले ही पहले के मुकाबले कुछ कम समय दे पाती हैं. वे बताती हैं कि स्वयं में ईश्वर को देखना ध्यान है, दूसरे में ईश्वर को देखना प्रेम है और सब में ईश्वर को देखना ज्ञान है. यही ज्ञान हमें अनेकता में एकता का दर्शन कराता है. यही हमें बताता है कि आने वाला कल बीते हुए कल से सुन्दर होगा. वे मानती हैं कि ध्यान, योग और चिंतन आदमी को प्रज्ञावान बनाते हैं. प्रज्ञावान व्यक्ति अधिक जानकारी के अभाव में भी सृजनात्मक हो सकता है. जैसे नदी में पानी को देखना एक बात है और पानी के चक्र या बदलते स्वरूपों में छुपे सौन्दर्य को देखना बिलकुल दूसरी बात है. वे यह भी मानती है कि प्रतिभा, अवसर और आत्म शक्ति इन तीनों के योग से आप अपनी मंजिल के नज़दीक पहुँच जाते हैं.
(साभार: ‘आहा ज़िंदगी’ / सितम्बर 2005 के विवरण पर आधारित)
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