03-12-2015, 06:00 PM
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Re: ग्रहों की दिशा कुछ प्रतिकूल दिखाई देती हैð
Quote:
Originally Posted by vaibhav srivastava
मन थोड़ा अशांत सा तो रहता है अब
इसे अब कहाँ कोई रौशनी दिखाई देती है।
परिपक्वता के साथ ये कैसी दुर्बलता आई है
न तो कुछ कहने की क्षमता है……
न ही किसी को कोई बात सुनाई देती है।
भावों को गढ़ने में भी,,
अब कितनी मुश्किल दिखाई देती है।
जो मरम है मन का वो कह नही सकते
अनर्गल भावों पर तालियाँ सुनायीं देतीं हैं।
ग्रहों की दिशा कुछ प्रतिकूल दिखाई देती है।
देखता हूँ,,, परछाईं भी कब तक साथ देती है।
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' परिपक्वता के साथ ये कैसी दुर्बलता आई है' कभी कभी प्रतिकूल परिस्थितियों में मन में संशय घर कर लेते हैं. इस संशयात्मक स्थिति का आपने अत्यंत सुंदर व प्रभावपूर्ण वर्णन इस कविता में किया है. कविता की उपरोक्त पंक्तियाँ मैंने विशेष रूप से उदाहरणस्वरूप उद्धृत की हैं. धन्यवाद व शुभकामनाएं, वैभव जी.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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