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#1 |
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![]() Join Date: Aug 2013
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![]() निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल। बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।। अंग्रेज़ी पढ़ि के जदपि, सब गुन होत प्रवीन। पै निज भाषाज्ञान बिन, रहत हीन के हीन।। – मातृ-भाषा के प्रति (भारतेंदु हरिश्चंद्र) |
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#2 |
Super Moderator
![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() Join Date: Aug 2012
Location: Faridabad, Haryana, India
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हिंदी के प्रति प्रेम और समर्पण दिखाते उक्त दोहे प्रस्तुत कर के आपने अपनी भाषा और देश प्रेम के सम्बन्ध को पुनः रेखांकित किया है.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
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उन्नति, ज्ञान, भाषा, मातृ-भाषा, mother tongue |
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