12-03-2013, 11:31 PM | #1 |
Diligent Member
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कल उनके हाथ में मेरा गिरेबान देखिये !
कल उनके हाथ में मेरा गिरेबान देखिये ! रात भर सहलाता रहा जिन जख्मों को सुबह उठकर उन जख्मों निशान देखिये ! वो हो चुके हैं ऊँचे -ऊँचे महलों के वासी मेरा आज भी सूना पड़ा है मकान देखिये ! वो तो भूल चुके हैं सारे वादे इरादे मुझे आज भी याद हैं जुबान देखिये ! बसंत सी मह्क रही है दुनिया उनकी फिर क्यूँ जीवन मेरा है रेगिस्तान देखिये ! वो जी रहे दुनिया ख़ुशी से आजकल कहते है '''नामदेव ''' कोई दूसरा जहाँ देखिये ! sombir naamdev 9321283377 9321083377 |
13-03-2013, 12:36 AM | #2 |
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Re: कल उनके हाथ में मेरा गिरेबान देखिये !
अद्भुद अभिव्यक्ति है बन्धु। हार्दिक अभिनन्दन है।
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तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर । परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।। विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम । पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।। कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/ यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754 |
13-03-2013, 10:54 AM | #3 |
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Re: कल उनके हाथ में मेरा गिरेबान देखिये !
बहुत सुन्दर जज़्बात है, सोमबीर जी. जीवन की विषमतायें कवि को अपने सिद्धांतों से डिगा नहीं सकती. हाँ, वह दुखी हो कर किसी नए संसार की तलाश जरूर करना चाहता है. रचना के लिए धन्यवाद और बधाई.
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13-03-2013, 10:40 PM | #4 |
Diligent Member
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Re: कल उनके हाथ में मेरा गिरेबान देखिये !
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13-03-2013, 10:42 PM | #5 | |
Diligent Member
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Re: कल उनके हाथ में मेरा गिरेबान देखिये !
Quote:
सम्मानिये श्री रजनीश जी शुक्र गुजार हूँ आपका जोआपने हमें इस काबिल समझा !आपका बहुत धन्यवाद कविता पसंद करने और पढ़ने के लिए! और साथ ही अपने कीमती विचार देने आभारी हु आपका ! |
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09-09-2013, 12:33 AM | #6 |
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Re: कल उनके हाथ में मेरा गिरेबान देखिये !
क्या बात है बहुत ही खूब.
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