04-11-2013, 08:36 PM | #1 |
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कुसूर किया है…बंसी
उसे माँसहारि भी उसने बनाया, भूख है उसने लगाई, जीने की चाह भी उसने जगाई, जीने के लिए भूख मिटानी होगी, भूख मिटाने के लिए कुछ खाना होगा खाने के लिए किसी को मारना होगा, मार कर शेर किसी को खाए तो शेर का कुसूर किया है मच्छर भी है उसने बनाया, उसका भोजन खून बनाया, उस को भी तो जीना होगा, खून किसी का पीना होगा , खून किसी का वो पीए तो उसका कुसूर किया है मेरा खून वो पीएगा तो मैं तो उस को मारूँगा, मुझे भी तो जीना है इसमें मेरा कुसूर किया है बंसी(मधुर) |
04-11-2013, 08:49 PM | #2 |
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Re: कुसूर किया है…बंसी
बड़े खेद का विषय है कि बंसी जी अपनी कविता को दोबारा पोस्ट कर रहे हैं. पहली पोस्ट को देखने के लिए कृपया निम्न सूत्र को क्लिक करें:
http://myhindiforum.com/showthread.php?t=10869 बार बार कहने पर भी उन्होंने त्रुटियों को सुधारने की दिशा में कोई ध्यान नहीं दिया. |
04-11-2013, 09:09 PM | #3 |
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Re: कुसूर किया है…बंसी
rajnish ji sorry
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04-11-2013, 09:58 PM | #4 |
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Re: कुसूर किया है…बंसी
मेरी आपसे विनती है कि जो भी आप पोस्ट करें उसे पोस्ट करने से पहले एक बार अवश्य चैक कर लें ताकि ऐसी त्रुटियों की कोई संभावना न रहे. इससे फोरम की गरिमा बनाये रखने में मदद मिलेगी. मेरी शुभकामनायें.
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