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Old 09-03-2013, 06:48 PM   #1
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Default मंदिरों की नगरी : उज्जैन


उज्जैन
भारत में क्षिप्रा नदी के किनारे बसा उज्जैन मध्य प्रदेश राज्य का एक प्रमुख धार्मिक नगर है। यह ऐतिहासिक पृष्ठभूमि लिये हुआ एक प्राचीन शहर है। उज्जैन महाराजा विक्रमादित्य के राज्य की राजधानी थी। इसको कालिदास की नगरी भी कहा जाता है। उज्जैन में हर 12 वर्ष के बाद सिंहस्थ कुंभ का मेला जुड़ता है। भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक महाकाल इस नगरी में है । मध्य प्रदेश के प्रसिद्ध नगर इन्दौर से यह 55 कि. मी. की दूरी पर है। उज्जैन के अन्य प्राचीन प्रचलित नाम हैं - अवन्तिका, उज्जैयनी, कनकश्रन्गा आदि। उज्जैन मन्दिरों का नगर है। यहाँ अनेक तीर्थ*स्थल है। उज्जैन की जनसंख्या लगभग 4 से 5 लाख के लगभग है।
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Old 09-03-2013, 06:49 PM   #2
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Default Re: मंदिरों की नगरी : उज्जैन

उज्जैन का इतिहास

उज्जैन का प्राचीन इतिहास काफ़ी विस्तृत है। उज्जैन के गढ़ क्षेत्र में हुई खुदाई में ऐतिहासिक (protohistoric ) एवं प्रारंभिक लौहयुगीन सामग्री अत्यधिक मात्र में प्राप्त हुई है। महाभारत व पुराणों में उल्लेख है की वृष्णि संघ के कृष्ण व बलराम उज्जैन के गुरु सांदीपनी के आश्रम में विद्या प्राप्त करने आये थे। कृष्ण की पत्नी मित्रवृन्दा उज्जैन की राजकुमारी थी और उनके दो भाई विन्द एवं अनुविन्द ने महाभारत के युद्ध में कौरवों की तरफ से युद्ध किया था। उज्जैन का एक अन्य अत्यंत प्रतापी राजा हुआ है जिसका नाम चंडप्रद्योत था । भारत के अन्य राजा भी उससे ड़रते थे। ईसा की छठी सदी में वह उज्जैन का शासक था। उसकी पुत्री वासवदत्ता एवं वत्स राज्य के राजा उदयन की प्रेम कथा इतिहास में बहुत प्रसिद्ध है। बाद में उज्जैन मगध साम्राज्य का अभिन्न अंग बन गया था।

उज्जयिनी के इतिहास प्रसिद्ध राजा विक्रमादित्य के दरबार के नवरत्नों में से महाकवि कालिदास प्रमुख थे। कालिदास को उज्जयिनी अत्यधिक प्रिय थी। इसी कारण से कालिदास ने अपने काव्य ग्रंथों में उज्जयिनी का अत्यधिक मनोरम और सुंदर वर्णन किया है। महाकवि कालिदास सम्राट विक्रमादित्य के आश्रय में रहकर काव्य रचना किया करते थे।

महाकवि कालिदास ने उज्जयिनी में ही अधिकतर प्रवास किया और उज्जयिनी के प्राचीन एवं गौरवशाली वैभव को बढ़ते देखा पर कालिदास की मालवा के प्रति गहरी आस्था थी। यहाँ रहकर महाकवि ने वैभवशाली ऐतिहासिक अट्टालिकाओं को देखा, उदयन और वासवदत्ता की प्रेमकथा को अत्यन्त भावपूर्ण लिपिबध्द किया, भगवान महाकालेश्वर की संध्याकालीन आरती को और क्षिप्रा नदी के पौराणिक और ऐतिहासिक महत्त्व से भली भांति परिचित होकर उसका अत्यंत मनोरम वर्णन किया जो आज भी साहित्य जगत कि अमूल्य धरोहर है।

अपनी रचना 'मेघदूत' में महाकवि कालिदास ने उज्जयिनी का बहुत ही सुंदर वर्णन करते हुए कहा है कि जब स्वर्गीय जीवों को अपना पुण्य क्षीण हो जाने पर पृथ्वी पर आना पड़ा, तब उन्होंने विचार किया कि हम अपने साथ स्वर्गभूमि का एक खंड (टुकड़ा) भी ले चलते हैं। वही स्वर्गखंड उज्जयिनी है। महाकवि ने लिखा है कि उज्जयिनी भारत का वह प्रदेश है जहां के वृध्दजन इतिहास प्रसिद्ध अधिपति राजा उदयन की प्रणय गाथा कहने में पूर्णत: प्रवीण है।

कालिदास कृत 'मेघदूत' में वर्णित उज्जयिनी का वैभव आज भले ही विलुप्त हो गया हो परंतु आज भी विश्व में उज्जयिनी का धार्मिक, पौराणिक एवं ऐतिहासिक महत्त्व है साथ ही उज्जयिनी ज्योतिष के क्षेत्र में भी प्रसिद्ध है। सात पुराणों में वर्णित प्रसिद्ध नगरियों में उज्जयिनी प्रमुख स्थान रखती है। उज्जयिनी में प्रत्येक बारह वर्षों में सिंहस्थ कुम्भ नामक महापर्व का आयोजन होता है। कुम्भ के पावन अवसर पर देश-विदेश से करोडों श्रध्दालु, भक्तजन, साधु-संत, महात्मा,एवं अखाड़ों के मठाधीश प्रमुख रूप से उज्जयिनी में कल्पवास करके मोक्ष प्राप्ति की कामना करते हैं।

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Old 09-03-2013, 06:50 PM   #3
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प्रमाणिक इतिहास

उज्जयिनी का प्रमाणिक इतिहास ई. सन् 600 वर्ष के लगभग का मिलता है। तत्कालीन समय में भारत में सोलह महाजनपद थे उनमें से अवंति जनपद भी एक था। अवंति जनपद उत्तर एवं दक्षिण दो भागों में विभक्त था। उत्तरी भाग की राजधानी उज्जयिनी थी तथा दक्षिण भाग की राजधानी माहिष्मति थी। उस समय चंद्रप्रद्योत नाम का राजा सिंहासन पर था। इस प्रद्योत राजा के वंशजों का उज्जयिनी पर लगभग ईसा की तीसरी शताब्दी तक शासन रहा था।

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Old 09-03-2013, 06:51 PM   #4
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मौर्य शासक

प्रसिद्ध मौर्य काल के सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य भी यहाँ आया था और उसका पौत्र अशोक उज्जयिनी का राज्यपाल भी रहा था। उसकी एक पत्नी देवी से महेंद्र और संघमित्रा नामक पुत्र और पुत्री हुई जिन्होंने श्रीलंका में बौद्ध धर्म का प्रचार व प्रसार किया था। मौर्य साम्राज्य के स्थापित होने पर मगध सम्राट बिन्दुसार के पुत्र अशोक उज्जयिनी का शासक नियुक्त हुआ। बिन्दुसार की मृत्यु के बाद अशोक ने उज्जयिनी का शासन प्रबन्ध अपने हाथों में सम्भाला । यह उज्जयिनी के सर्वांगीण विकास का समय था। सम्राट अशोक के बाद उज्जयिनी ने अनेकों सम्राटों का पतन और उत्थान देखा।

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Old 09-03-2013, 06:52 PM   #5
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मौर्य साम्राज्य का पतन

मौर्य साम्राज्य के प्रसिद्ध शासक अशोक के बाद उज्जयिनी शकों और सातवाहनों की प्रतिस्पर्धा का मुख्य केंद्र बन गया। शकों के पहले आक्रमण को उज्जयिनी के वीर शासक विक्रमादित्य ने प्रथम सदी ईसा पूर्व विफल कर दिया था किन्तु कालांतर में विदेशी शकों ने उज्जयिनी पर अपना अधिकार कर लिया। चस्टान व रुद्रदमन शक वंश के प्रतापी व लोकप्रिय महाक्षत्रप हुए हैं।

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गुप्त साम्राज्य

चौथी शताब्दी ई. में गुप्त और औलिकरों ने मालवा से शकों की शासन सत्ता समाप्त कर दी। शक और गुप्तों के काल में उज्जयिनी क्षेत्र का आर्थिक एवं औद्योगिक विकास हुआ। छठी से दसवीं सदी तक उज्जैन कलचुरियों, मैत्रकों, उत्तर गुप्तों, पुष्यभूतियों , चालुक्यों, राष्ट्रकूटों व प्रतिहारों की राजनीतिक गतिविधियों का केन्द्र रहा।

सातवीं शताब्दी में कन्नौज के राजा हर्षवर्धन ने उज्जयिनी को अपने साम्राज्य में मिला लिया। उसके समय में उज्जयिनी का सर्वांगीण विकास हुआ। सन् 648 ई. में हर्षवर्धन की मृत्यु के बाद नवीं शताब्दी तक उज्जैन परमार शासकों के आधिपत्य में आया जिनका शासन गयारहवीं शताब्दी तक चलता रहा। इस समय में उज्जैन की क्रमिक उन्नति होती रही। परमारों के बाद उज्जैन पर चौहान और तोमर राजपूतों ने अधिकारों कर लिया।

सन 1000 से 1300 ई. तक मालवा पर परमार राजाओं का शासन रहा और बहुत समय तक परमार राजाओं की राजधानी उज्जैन रही। इस समय में सीयक द्वितीय, मुंजदेव, भोजदेव, उदयादित्य, नरवर्मन जैसे अनेक महान शासकों ने साहित्य, कला एवं संस्कृति की उन्नति में अपना समय लगाया।

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दिल्ली सल्तनत

इसी समय दिल्ली के दास एवं ख़िलजी वंश के शासकों ने मालवा पर आक्रमण किया जिससे परमार वंश का पतन हो गया। सन् 1235 ई. में दिल्ली का शासक शमशुद्दीन इल्तमिश विदिशा पर विजय प्राप्त करके उज्जैन की और आया और उस क्रूर शासक ने उज्जैन को बहुत बुरी तरह लूटा और यहाँ के प्राचीन मंदिरों एवं पवित्र धार्मिक स्थानों का वैभव भी नष्ट कर दिया। सन् 1406 में मालवा दिल्ली सल्तनत से आज़ाद हो गया । ख़िलजी व अफग़ान सुल्तान स्वतंत्र रूप से राज्य करते रहे। मुग़ल सम्राट अकबर ने जब मालवा को अपने अधिकार में लिया तो अकबर ने उज्जैन को प्रांतीय मुख्यालय बनाया। मुग़ल बादशाह अकबर, जहाँगीर, शाहजहाँ व औरंगजेब ने यहाँ शासन किया।
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मराठों का अधिकार

सन 1737 ई. में उज्जैन पर सिंधिया वंश का अधिकार हो गया। सन् 1880 ई. तक सिंधिया शासकों का एकछत्र राज्य रहा जिसमें उज्जैन का विकास होता रहा। सिंधिया शासकों की राजधानी उज्जैन बनी। महाराज राणोजी सिंधिया ने महाकालेश्वर मंदिर का जीर्णोद्धार कराया। सिंधिया वंश के संस्थापक शासक राणोजी शिंदे के मंत्री रामचंद्र शेणवी ने आजकल उज्जैन में स्थित महाकाल के मंदिर का निर्माण कराया। सन् 1810 में सिंधिया शासक राज्य की राजधानी को ग्वालियर में ले आये, किन्तु उसके बाद भी उज्जैन का विकास होता रहा। 1948 में ग्वालियर को नवीन मध्य भारत में मिला लिया गया।

आज भी उज्जयिनी में अनेक धार्मिक, पौराणिक एवं ऐतिहासिक मंदिर और भवन हैं जिनमें भगवान महाकालेश्वर मंदिर, चौबीस खंभा देवी, गोपाल मंदिर, काल भैरव, बोहरो का रोजा, विक्रांत भैरव, चौसठ योगिनियां, नगर कोट की रानी, हरसिध्दि मां का मंदिर, गढ़कालिका देवी का मंदिर, मंगलनाथ जी का मंदिर, सिध्दवट, बिना नींव की मस्जिद, गज लक्ष्मी मंदिर, बृहस्पति मंदिर, नवगृह मंदिर, भूखी माता, भर्तृहरि जी की गुफा, पीर मछन्दरनाथ की समाधि, कालिया दह पैलेस, कोठी महल, घंटाघर, जन्तर मंतर महल, चिंतामन गणेश आदि प्रमुख रूप से उल्लेखनीय हैं।

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Default Re: मंदिरों की नगरी : उज्जैन

आधुनिक उज्जैन

उज्जैन नगर विंध्य पर्वतमाला के पास और पवित्र क्षिप्रा नदी के किनारे समुद्र तल से 1678 फीट की ऊंचाई पर 23 डिग्री .50' उत्तर देशांश और 75 डिग्री .50' पूर्वी अक्षांश पर है। नगर का तापमान और वातावरण समशीतोष्ण है। यहाँ की भूमि उपजाऊ है। महाकवि कालिदास और महान रचनाकार बाणभट्ट ने नगर की ख़ूबसूरती को बहुत ही सुन्दर रूप से वर्णित किया है। महाकवि कालिदास लिखते है कि दुनिया के सारे रत्न उज्जैन में स्थित हैं और समुद्रों के पास केवल जल ही बचा है। उज्जैन नगर की प्रमुख और आंचलिक बोली मीठी मालवी बोली है। हिन्दी का भी प्रयोग किया जाता है।

उज्जैन भारत के इतिहास के अनेक बड़े परिवर्तनों का गवाह है। क्षिप्रा के अंतस्थल में इस ऐतिहासिक नगर के उत्थान और पतन की अनोखी और स्पष्ट अनुभूतियां अंकित है। क्षिप्रा के प्राकृतिक घाटों पर प्राकृतिक सौन्दर्य की अनोखी छटा बिखरी हुई है, जहाँ असंख्य लोगों का आवागमन रहता है, चाहे रंगों से परिपूर्ण कार्तिक मेला हो या भीड़ से भरा सिंहस्थ कुम्भ का मेला या साधारण दिनचर्या में क्षिप्रा का स्नान। नगर को तीन और से घेरे क्षिप्रा सबके मन को आकर्षित करती है। क्षिप्रा के घाट सुबह-सुबह महाकाल और हरसिध्दि मंदिरों की स्तुति का स्वागत करते हैं।

क्षिप्रा नदी जब उफान पर आती है तो गोपाल मंदिर की देहरी को छू लेती है। दुर्गादास की छत्री से थोडा ही आगे चल कर नदी की धारा नगर के प्राचीन परिसर के पास घूम जाती है। भर्तृहरि जी की गुफा, पीर मछिन्दर और गढकालिका माँ का मंदिर पार करके नदी भगवान मंगलनाथ जी के पास पहुंचती है। मंगलनाथ जी का मंदिर सान्दीपनि आश्रम के पास ही है और पास में ही श्री राम-जनार्दन मंदिर के पास सुंदर दृश्य हैं। सिध्दवट और काल भैरव की ओर मुडकर क्षिप्रा कालियादह महल को घेरते हुई लगभग सभी ऐतिहासिक स्थानों पर होकर शान्त भाव से उज्जैन से आगे अपनी यात्रा की ओर बढ़ जाती है। कवि, भक्त, साधु, कलाकार, संत हों या पर्यटक, क्षिप्रा के मनोरम तट पग-पग पर मंदिरों से युक्त सभी श्रद्धालुओं के लिए सम्मान और प्रेरणा के आधार है।

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उज्जयिनी नगरी

प्राचीन समय में अवंतिका, उज्जयिनी, विशाला, प्रतिकल्पा, कुमुदवती, स्वर्णशृंगा, अमरावती आदि अनेक नामों से जाना जाने वाला नगर ही आज उज्जैन के नाम से प्रसिद्ध है। सभ्यता के उदय से ही यह नगर भारत के प्रमुख तीर्थ-स्थल के रूप में जाना गया । पवित्र क्षिप्रा के दाहिने तट पर स्थित इस नगर को भारत की 'सप्तपुरियों' में से एक माना जाता है।

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