18-12-2014, 08:39 PM | #1 |
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रो उठता है दिल जब भी दहिशतगर्दी की वारदात ह&a
सोचता था कुछ मसले होंगे जिस की वजह से दहशतगर्द बनते हैं उनके भी कुछ अरमान होते होंगे क्योंकि वो भी तो इंसान हैं मगर सौ से ज़ियादा बच्चों को मौत के घाट उतार देना इंसानियत तो नहीं क्या गुज़रेगी बच्चों के माँ बाप के दिल पर ज़रा सा भी सोचा नहीं किस किस्म के इंसान हैं क्या वो इंसान हैं या इंसान हैं ही नहीं लगता है दहशतगर्द कोई भी हों उनमें इंसानियत होती नहीं अगर उनमें इंसानियत होती तो यूं ही मासूमों की जाने जाती नहीं कितना भी हम लिखते रहें उनको कोई फ़र्क पड़ता नहीं जिनसे हम कहना चाहते हैं वो तो शायद यह सब तो पढ़ते नहीं दिल ही दिल में आँसू बहा कर चुप हो जाता हूँ मैं क्योंकि इसके इलावा कुछ और तो कर नहीं पाता हूँ मैं सब मुल्कों के हुकूमरानो से हाथ जोड़ कर इलतजा करता हूँ मैं मिलकर कुछ करो मासूमों की जाने जाते ना देख पाता हूँ मैं क्या सोच कर मासूमों की जाने ली हैं नहीं समझ पाता हूँ मैं सही समझ दे सबको दिल से इलतजा परवरदिगार से करता हूँ मैं सही समझ दे सबको दिल से इलतजा परवरदिगार से करता हूँ मैं बंसी(मधुर) Last edited by rajnish manga; 19-12-2014 at 08:54 AM. |
19-12-2014, 09:36 AM | #2 |
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Re: रो उठता है दिल जब भी दहिशतगर्दी की वारदात ì
दहशतगर्दी की ताजा घटनाओं, जिनमे कुछ अन्य व्यक्तियों के साथ 132 मासूम विद्यार्थियों की जघन्य हत्या कर दी गई, की पृष्ठभूमि में आपकी कविता एक आम आदमी के सवालों व सरोकारों को सामने लाती है. काश ! इनका कोई जवाब मिल पाता या हल निकल पाता.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
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