03-03-2011, 01:17 PM | #1 |
Diligent Member
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सवाल आपके - जवाब हम सब के !!
प्रत्येक व्यक्ति के मन में कुछ अनुत्तरित से प्रश्न होते ही हैं , चाहे वो उनकी अध्यात्मिक जिंदगी को लेकर हों या व्यवहारिक ! कभी कभी कोई जवाब मिलता भी है तो वह पूर्ण संतुष्टि नहीं दे पता ! हम प्रायः इसी उलझन में रहते हैं की कैसे इस प्रश्न की समाप्ति की जाए, अर्थात इसका संतुष्टिदायक उत्तर पाया जाए ! वास्तव में मानव स्वभाव विरोधाभासी होता है अर्थात आसानी से किसी जवाब को मानने को तैयार नहीं होता !उसका ज्ञान उसे हमेशा शंकित रखता है ! आमतौर पर ये बाते तब ज्यादा सामने आती हैं जब हम किसी एक पक्ष के तार्किक पहलुओ का अध्यन कर रहे होते हैं ! ज़ाहिर है ऐसी स्थिति में नकारत्मक और सकारात्मक सोच का आना संभव है ! बस यही विरोधाभासी विचार हमेशा हमें द्विपक्षिक रखता है ! मेरा यह सूत्र कुछ ऐसी ही स्थितियो को स्पष्ट करने के लिए है ! इस सूत्र में आप अपने मन के किसी भी सवाल को रख सकते हैं और इस फोरम के सदस्य अपनी जानकारी और खोज के आधार पर उत्तर देने का प्रयास करेंगे ! हो सकता है की किसी सदस्य का उत्तर आपको एक पाक्षिक करते हुए संतुष्टि दे जाए ! बस इस सूत्र का यही उद्देश्य है ! फोरम के सदस्यों से निवेदन - कृपया कोई भी उत्तर देने से पूर्व अपने पक्ष को मजबूत कर लें ! किसी भी प्रश्न की समय सीमा तब तक रहेगी जब तक प्रश्नकर्ता दिए गए उत्तरों में से किसी भी एक उत्तर से संतुष्टि का संकेत न दे दे ! प्रश्न किसी विषय को लेकर हो सकते हैं ! अंत में - सदस्यों का सहयोग आपेक्षित है ! अतः सहयोग करें ! धन्यवाद !
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( वैचारिक मतभेद संभव है ) ''म्रत्युशैया पर आप यही कहेंगे की वास्तव में जीवन जीने के कोई एक नियम नहीं है'' |
03-03-2011, 01:18 PM | #2 |
Diligent Member
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Re: सवाल आपके - जवाब हम सब के !!
सूत्र का श्रीगणेश करते हुए मै स्वयं ही एक प्रश्न रख रहा हूँ !
क्या भारतीय समाज के अनुसार निर्धारित किये गए हास परिहास के रिश्तों में अश्लीलता या द्विअर्थिक बातो का होना लाज़मी है ? चूँकि अश्लीलता के पक्ष में कोई नहीं जाएगा अतः यह स्पष्ट करें की क्या द्विअर्थिक हास परिहास जायज है ?
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( वैचारिक मतभेद संभव है ) ''म्रत्युशैया पर आप यही कहेंगे की वास्तव में जीवन जीने के कोई एक नियम नहीं है'' |
03-03-2011, 02:35 PM | #3 | |
Special Member
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Re: सवाल आपके - जवाब हम सब के !!
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इसलिए कहता हूँ अपने अन्दर के साहस को जिन्दा रखे
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Gaurav kumar Gaurav |
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03-03-2011, 04:19 PM | #4 | |
Exclusive Member
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Re: सवाल आपके - जवाब हम सब के !!
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हमारे भारतीय परिवेश के मुताबिक कई रिश्ते मजाक के दायरे मेँ आता हैँ लेकिन हमेँ देखना परेगा किसी का दिल ना दुःखे वैसे भी अगर कोई गलत करेगा तो उनके साथ गलत होगा जैसे अगर भाई के साली के साथ आप गलत तरह के मजाक करेगेँ तो आपके घर मेँ भी किसी के भाई का साला रहती हैँ
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दोस्ती करना तो ऐसे करना जैसे इबादत करना वर्ना बेकार हैँ रिश्तोँ का तिजारत करना |
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03-03-2011, 04:26 PM | #5 | |
Special Member
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Re: सवाल आपके - जवाब हम सब के !!
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Gaurav kumar Gaurav |
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03-03-2011, 04:50 PM | #6 | |
Diligent Member
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Re: सवाल आपके - जवाब हम सब के !!
Quote:
दूसरी बात अगर करे तो लोग खुद को दूसरे से ज्यादा स्वछंद समझते हैं ! ऐसे में सीमाओ की परिभाषा क्या होगी? क्या यही 'आम' मजाक द्विअर्थी होकर अश्लील नहीं हो जाते? क्या आज का मनुष्य कुछ ज्यादा वासना ग्रस्त नहीं है? क्या ऐसे रिश्तों में मजाक करने वाले का धेय्य एक स्वस्थ मजाक ही होता है ?
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( वैचारिक मतभेद संभव है ) ''म्रत्युशैया पर आप यही कहेंगे की वास्तव में जीवन जीने के कोई एक नियम नहीं है'' |
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03-03-2011, 05:59 PM | #7 | |
Special Member
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Re: सवाल आपके - जवाब हम सब के !!
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जहाँ तक अर्थ द्विअर्थ की बात है ये आपके कहने और सामनेवाले के समझने पर भी निर्भर करता है, कई बार मैंने खुद देखा है की हम कहते कुछ है और सुननेवाला उसे कुछ और समझ लेता है. मजाक मजाक होता है आम क्या और खास क्या. मजाक करने से पहले उसके भावनाओं को आपको खुद समझना चाहिए ताकि जिससे आप मजाक कर रहे हैं वो भी उसे समझ पाए. अपने दिल से जानिए पराये दिल का हाल.
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घर से निकले थे लौट कर आने को मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए बिगड़ैल |
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03-03-2011, 07:37 PM | #8 | |
Special Member
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Re: सवाल आपके - जवाब हम सब के !!
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Gaurav kumar Gaurav |
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03-03-2011, 08:25 PM | #9 | |
Diligent Member
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Re: सवाल आपके - जवाब हम सब के !!
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हाँ अगर यह परिधि बाह्य है यानी दूसरों से संबंधो के बारे में है तो मै पूर्णतः सहमत हूँ आपकी बात से !
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( वैचारिक मतभेद संभव है ) ''म्रत्युशैया पर आप यही कहेंगे की वास्तव में जीवन जीने के कोई एक नियम नहीं है'' |
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03-03-2011, 08:49 PM | #10 |
Diligent Member
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Re: सवाल आपके - जवाब हम सब के !!
एक और प्रश्न -
इच्छा मृत्यु का मुद्दा एक बार फिर सुर्खियों में है| मुंबई के एक अस्पताल में 64 वर्षीया अरुणा करीब 38 साल से जिंदा लाश की तरह जिंदगी जी रही हैं| उनका पूरा शरीर निष्क्रिय और दिमाग मृत हो चूका है| ज़ाहिर है हर बार की तरह इस बार भी कोर्ट या तो अपील ठुकरा देगी या फाइल कम से कम इतने टाइम के लिए दबा दी जाएगी की पीडिता खुद ही मर जाए| इस सब से हमारी माहमई न्यायिक व्यवस्था के संवेदनहीन होने का पता चलता है! पता नहीं क्यों हमारे शीर्ष के लोग कोई भी कठोर फैसला लेने से क्यों भागते हैं? मुद्दा कोई भी हो रास्ते हमेशा वो ऐसा सोचते हैं जो उन्हें पूर्णतः उत्तरदाई न बनाये ! आज ही मैंने उस बुज़ुर्ग की तस्वीर देखि ! तस्वीर तो कहीं से बयां नहीं करती उन्हें इच्छा म्रत्यु न दी जाए, जबकि कई देशो में ये कानूनन वैद्य भी है ! हम बड़े गर्व से कहते हैं की विश्व में सबसे बड़ा लोक तंत्र हमारे देश का है! परन्तु कानून के उसी घिसे पिटे रवैये का क्या? तो फिर ऐसे स्थिति में किसी नए कानून के लिए बहस क्यों नहीं? क्या आज़ादी के बाद इन कानूनों में परिवर्तन की आव्यशकता नहीं? कई कानून तो सिर्फ रीढ़ का बोझ हैं , परन्तु समस्या तो यह है न की व्यक्ति सिर्फ व्यक्तिगत लाभ के लिए सोच रहा है और वो भी ऐसे देश में जहाँ संवेदनाओं पर धड़कने चलती हैं ! क्या अब ये ज़रुरी नहीं?
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( वैचारिक मतभेद संभव है ) ''म्रत्युशैया पर आप यही कहेंगे की वास्तव में जीवन जीने के कोई एक नियम नहीं है'' Last edited by VIDROHI NAYAK; 03-03-2011 at 08:57 PM. |
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