03-10-2011, 08:10 PM | #1 |
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जोर का झटका, धीरे से लगा ।
"Lays चिप्स के पैकेट में जो E631 लिखा है वह दर असल सूअर की चर्बी है। चाहो तो गूगल पर देख लो। गब्बर की यही चीख भरी आवाज़ मेरे ज़हन में आई जब आज दोपहर आया एक एस एम एस पढ़ा मैंने, जो मेरे एक सहयोगी द्वारा भेजा गया था। SMS का संदेश था कि "Lays चिप्स के पैकेट में जो E631 लिखा है वह दर असल सूअर की चर्बी है। चाहो तो गूगल पर देख लो। " कमाल है ! शायद ही कोई भारतीय परिवार चिप्स आदि से बच पाया होगा!! मुझे तत्काल कुछ वर्षों पहले का वह समय या...द आने लगा जब MSG का पता चलने पर मैं हर स्टोर पर किसी खाद्य पदार्थ के पैकेट पर नज़रें गड़ा कर यह देखने लगा जाता था कि इसमे कहीं MSG तो नहीं। यह देख वहां का स्टाफ व्यंग्य भरी नज़रें लिए बताता था कि ये सस्ता है सर, ज़्यादा महंगा नहीं है! मै जब कहता कि कीमत नहीं देख रहा हूँ तो उनकी जिज्ञासा बढ़ती तब बताता कि यह क्या होता है। आजकल तो बड़े बड़े अक्षरों में खास तौर पर लिखा रहता है कि No MSG ऐसा ही कुछ वाकया ब्रुक बोंड की चाय-पत्ती के साथ हुआ था जिस पर पोस्ट लिखी थी मैंने कि किस तरह इतनी बड़ी कम्पनी लोगों को सरासर बेवकूफ बना रही है। बात हो रही E631 की। मैं दन्न से बाज़ार गया और Lays के पैकेट देखे कुछ नहीं दिखा। लेकिन मुझे याद आने लग पड़ा था कि इस तरह के कोड देखें हैं मैंने कुछ दिन पहले। शहर के दूसरे कोने वाल़े एक सुपर बाज़ार में भी कुछ नहीं दिखा तो स्टोर वालों से इस बारे में बात करने पर ज्ञात हुआ कि कुछ सप्ताह पहले आयातित चिप्स और बिस्किट लाए गए थे जो अब ख़त्म हो चुके। तब तक एक जिज्ञासु कर्मचारी कहीं से दो ऐसे पैकेट ले आया जिन्हें चूहों द्वारा कुतरे जाने पर अलग रख दिया गया था। उन में इस तरह के कोड थे जिस में वाकई 631 लिखा हुआ है अब मैंने गूगल की शरण ली तो पता चला कि कुछ अरसे पहले यह हंगामा पाकिस्तान में हुआ था जिस पर ढेरों आरोप और सफाइयां दस्तावेजों सहित मौजूद हैं । हैरत की बात यह दिखी कि इस पदार्थ को कई देशों में प्रतिबंधित किया गया है किन्तु अपने देश में धड़ल्ले से उपयोग हो रहा। मूल तौर पर यह पदार्थ सूअर और मछली की चर्बी से प्राप्त होता है और ज्यादातर नूडल्स, चिप्स में स्वाद बढाने के लिए किया जाता है। रसायन शास्त्र में इसे Disodium Inosinate कहा जाता है जिसका सूत्र है C10H11N4Na2O8P1 होता यह है कि अधिकतर (ठंडे) पश्चिमी देशों में सूअर का मांस बहुत पसंद किया जाता है। वहाँ तो बाकायदा इसके लिए हजारों की तादाद में सूअर फार्म हैं। सूअर ही ऐसा प्राणी है जिसमे सभी जानवरों से अधिक चर्बी होती है। दिक्कत यह है कि चर्बी से बचते हैं लोग। तो फिर इस बेकार चर्बी का क्या किया जाए? पहले तो इसे जला दिया जाता था लेकिन फिर दिमाग दौड़ा कर इसका उपयोग साबुन वगैरह में किया गया और यह हिट रहा। फिर तो इसका व्यापारिक जाल बन गया और तरह तरह के उपयोग होने लगे। नाम दिया गया 'पिग फैट' 1857 का वर्ष तो याद होगा आपको? उस समयकाल में बंदूकों की गोलियां पश्चिमी देशों से भारतीय उपमहाद्वीप में समुद्री राह से भेजी जाती थीं और उस महीनों लम्बे सफ़र में समुद्री आबोहवा से गोलियां खराब हो जाती थीं। तब उन पर सूअर चर्बी की परत चढ़ा कर भेजा जाने लगा। लेकिन गोलियां भरने के पहले उस परत को दांतों से काट कर अलग किया जाना होता था। यह तथ्य सामने आते ही जो क्रोध फैला उसकी परिणिति 1857 की क्रांति में हुई बताई जाती है। इससे परेशान हो अब इसे नाम दिया गया 'ऐनिमल फैट' ! मुस्लिम देशों में इसे गाय या भेड़ की चर्बी कह प्रचारित किया गया लेकिन इसके हलाल न होने से असंतोष थमा नहीं और इसे प्रतिबंधित कर दिया गया। बहुराष्ट्रीय कंपनियों की नींद उड़ गई। आखिर उनका 75 प्रतिशत कमाई मारी जा रही थी इन बातों से। हार कर एक राह निकाली गई। अब गुप्त संकेतो वाली भाषा का उपयोग करने की सोची गई जिसे केवल संबंधित विभाग ही जानें कि यह क्या है! आम उपभोक्ता अनजान रह सब हजम करता रहे। तब जनम हुआ E कोड का तब से यह E631 पदार्थ कई चीजों में उपयोग किया जाने लगा जिसमे मुख्य हैं टूथपेस्ट, शेविंग क्रीम, च्युंग गम, चॉकलेट, मिठाई, बिस्कुट, कोर्न फ्लैक्स, टॉफी, डिब्बाबंद खाद्य पदार्थ आदि। सूची में और भी नाम हो सकते हैं। हाँ, कुछ मल्टी- विटामिन की गोलियों में भी यह पदार्थ होता है। शिशुयों, किशोरों सहित अस्थमा और गठिया के रोगियों को इस E631 पदार्थ मिश्रित सामग्री को उपयोग नहीं करने की सलाह है लेकिन कम्पनियाँ कहती हैं कि इसकी कम मात्रा होने से कुछ नहीं होता। पिछले वर्ष खुशदीप सहगल जी ने एक पोस्ट में बताया था कि कुरकुरे में प्लास्टिक होने की खबर है चाहें तो एक दो टुकड़ों को जला कर देख लें। मैंने वैसा किया और पिघलते टपकते कुरकुरे को देख हैरान हो गया। अब लग रहा कि कहीं वह चर्बी का प्रभाव तो नहीं था!? अब बताया तो यही जा रहा है कि जहां भी किसी पदार्थ पर लिखा दिखे E100, E110, E120, E 140, E141, E153, E210, E213, E214, E216, E234, E252,E270, E280, E325, E326, E327, E334, E335, E336, E337, E422, E430, E431, E432, E433, E434, E435, E436, E440, E470, E471, E472, E473, E474, E475,E476, E477, E478, E481, E482, E483, E491, E492, E493, E494, E495, E542,E570, E572, E631, E635, E904 समझ लीजिए कि उसमे सूअर की चर्बी है। और कुछ जानना हो कि किस कोड वाल़े पदार्थ का उपयोग करने से किसे बचना चाहिए तो यह सूची देख लें || ..................................जानकार ी " श्री बी. एस. पाबला जी " के ब्लॉग से ली गयी है || प्रभात कुमार भारद्वाज"परवाना" (समाज सेवक) (आल इंडिया नेशनल क्राएम रिपोर्टर
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03-10-2011, 11:05 PM | #2 |
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Re: जोर का झटका, धीरे से लगा ।
यह तो
breaking न्यूज़ है. नमन जी.. आज से लेस बंद..
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04-10-2011, 12:27 AM | #3 |
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Re: जोर का झटका, धीरे से लगा ।
इंसानियत की तो गिरने की हद हो गई हैँ और हमारे देश की सरकार आँखे बंद किए बैठे हैँ
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दोस्ती करना तो ऐसे करना जैसे इबादत करना वर्ना बेकार हैँ रिश्तोँ का तिजारत करना |
04-10-2011, 07:37 AM | #4 |
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Re: जोर का झटका, धीरे से लगा ।
क्या जमाना आ गया हे जानकारी के लिए थैंक्स नमन भाई
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06-10-2011, 03:26 PM | #5 |
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Re: जोर का झटका, धीरे से लगा ।
मित्रो ऐसे सारे प्रोडक्टस विदेशी कंपनियो के द्वारा अधिक मुनाफ़ा कमाने के लिए तैयार किया जाते है । तो हो सके तो अधिक से अधिक स्वदेशी वस्तुओ का इस्तेमाल करे । ये पूर्णतय: तो किसी से संभव नही है पर जितने कर सको करे ।
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10-10-2011, 09:04 PM | #6 |
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Re: जोर का झटका, धीरे से लगा ।
इसे पढकर मेरे अंदर एक साथ कई भाव आये ,
उदासीनता का भाव इसीलिए की मै शाकाहारी नही हूँ ,और धार्मिक भी नहीं हूँ , तो व्यक्तिगत रूप से मुझे इस खबर से कोई फर्क नहीं पड़ता की ये चिप्स किस चर्बी से बनी है | हंसी इसलिए की दुनिया में कितने लोग शाकाहारी चाहकर भी नहीं रह सके | क्रोध इसलिए की ये भोले भाले लोगों के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है , जिन्हें इसकी सच्चाई मालूम भी नहीं | ये पूरी तरह से धूर्त बाज़ी है | अनजाने में कहीं न कहीं हम इस चर्बी का प्रयोग करतें ही हैं , ये हमारे आम जीवन में शामिल हो गया है | कितनी चीज़ें हैं जिन्हें हम चाहकर इस्तेमाल करने से रोक नहीं पायेंगे जैसे -नूडल्स, चिप्स, साबुन, टूथपेस्ट, शेविंग क्रीम, च्युंग गम, चॉकलेट, मिठाई, बिस्कुट, कोर्न फ्लैक्स, टॉफी, डिब्बाबंद खाद्य पदार्थ, दवाएं | भविष्य में आगे इसका इस्तेमाल बढ़ ही सकता है | इस आर्थिक युग में इसे पूरी तरह से रोक पाना संभव भी नहीं है | नमन जी की एक बात से कुछ हद तक सहमत हूँ की हम स्वदेशी वस्तुओं का प्रयोग करें , पर जहां जनता विदेशी वस्तुओं के इस्तेमाल को अपना स्टेटस समझती है वहाँ स्वदेशी वस्तुओं की क्या बिसात ! क्या इस तरह की चीप्स हमारे घरों में नहीं बनतीं , फिर भी हम सैफ अली खान के प्रचार करने के कारण इसे खाते हैं ओर गर्व महसूस करतें हैं | जिस प्रकार ये विदेशी कंपनियां इन चर्बियों का इस्तेमाल करतीं हैं तो इस बात की क्या गारंटी है की भारत में इसका इस्तेमाल कोई स्वदेशी कंपनी नहीं कर सकता , आखिर पैसे का युग है , कोई किसी हद तक जा सकता है |
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ये दिल तो किसी और ही देश का परिंदा है दोस्तों ...सीने में रहता है , मगर बस में नहीं ...
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12-10-2011, 04:33 PM | #7 |
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Re: जोर का झटका, धीरे से लगा ।
मैं सहमत हूँ रणवीर भाई
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घर से निकले थे लौट कर आने को मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए बिगड़ैल |
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