12-11-2012, 08:12 AM | #1 |
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अनुपमा का प्रेम - शरतचंद्र चट्टोपाध्याय
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12-11-2012, 08:12 AM | #2 |
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Re: अनुपमा का प्रेम - शरतचंद्र चट्टोपाध्याय
परन्तु सहयोगी उसे न जान सका। न जानने पर भी अनुमान का प्रेम उत्तरोत्तर वृद्धि पाने लगा। अमृत में विष, सुख में दु:ख, प्रणय में विच्छेद चिर प्रसिद्ध हैं। दो-चार दिन में ही अनुपमा विरह-व्यथा से जर्जर शरीर होकर मन-ही-मन बोली- स्वामी, तुम मुझे ग्रहण करो या न करो, बदले में प्यार दो या न दो, मैं तुम्हारी चिर दासी हूँ। प्राण चले जाएँ यह स्वीकार है, परन्तु तुम्हे किसी भी प्रकार नही छोड़ूंगी। इस जन्म में न पा सकूँ तो अगले जन्म में अवश्य पाऊंगी, तब देखोगे सती-साध्वी की क्षूब्द भुजाओं में कितना बल है। अनुपमा बड़े आदमी की लड़की है, घर से संलग्न बगीचा भी है, मनोरम सरोवर भी है, वहाँ चाँद भी उठता है, कमल भी खिलते है, कोयल भी गीत गाती है, भौंरे भी गुंजारते हैं, यहाँ पर वह घूमती फिरती विरह व्यथा का अनुभव करने लगी। सिर के बाल खोलकर, अलंकार उतार फेंके, शरीर में धूलि मलकर प्रेम-योगिनी बन, कभी सरोवर के जल में अपना मुँह देखने लगी, कभी आँखों से पानी बहाती हुई गुलाब के फूल को चूमने लगी, कभी आँचल बिछाकर वृक्ष के नीचे सोती हुई हाय की हुताशन और दीर्घ श्वास छोड़ने लगी, भोजन में रुचि नही रही, शयन की इच्छा नहीं, साज-सज्जा से बड़ा वैराग्य हो गया, कहानी किस्सों की भाँति विरक्ति हो आई, अनुपमा दिन-प्रतिदिन सूखने लगी, देख सुनकर अनु की माता को मन-ही-मन चिन्ता होने लगी, एक ही तो लड़की है, उसे भी यह क्या हो गया ? पूछने पर वह जो कहती, उसे कोई भी समझ नही पाता, ओठों की बात ओठों पे रह जाती। अनु की माता फिर एक दिन जगबन्धु बाबू से बोली- अजी, एक बार क्या ध्यान से नही देखोगे? तुम्हारी एक ही लड़की है, यह जैसे बिना इलाज के मरी जा रही है।
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12-11-2012, 08:12 AM | #3 |
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Re: अनुपमा का प्रेम - शरतचंद्र चट्टोपाध्याय
जगबन्धु बाबू चकित होकर बोले- क्या हुआ उसे?
- सो कुछ नही जानती। डॉक्टर आया था, देख-सुनकर बोला- बीमारी-वीमारी कुछ नही है। - तब ऐसी क्यों हुई जा रही है? - जगबन्धु बाबू विरक्त होते हुए बोले- फिर हम किस तरह जानें? - तो मेरी लड़की मर ही जाए? - यह तो बड़ी कठिन बात है। ज्वर नहीं, खाँसी नहीं, बिना बात के ही यदि मर जाए, तो मैं किस तरह से बचाए रहूंगा? - गृहिणी सूखे मुँह से बड़ी बहू के पास लौटकर बोली- बहू, मेरी अनु इस तरह से क्यों घूमती रहती है? - किस तरह जानूँ, माँ? - तुमसे क्या कुछ भी नही कहती? - कुछ नहीं।
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12-11-2012, 08:13 AM | #4 |
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Re: अनुपमा का प्रेम - शरतचंद्र चट्टोपाध्याय
गृहिणी प्राय: रो पड़ी- तब क्या होगा? बिना खाए, बिना सोए, इस तरह सारे दिन बगीचे में कितने दिन घूमती-फिरती रहेगी, और कितने दिन बचेगी? तुम लोग उसे किसी भी तरह समझाओ, नहीं तो मैं बगीचे के तालाब में किसी दिन डूब मरूँगी।
बड़ी बहू कुछ देर सोचकर चिन्तित होती हुई बोली- देख-सुनकर कहीं विवाह कर दो; गृहस्थी का बोझ पड़ने पर अपने आप सब ठीक हो जाएगा। - ठीक बात है, तो आज ही यह बात मैं पति को बताऊंगी। पति यह बात सुनकर थोड़ा हँसते हुए बोले- कलिकाल है! कर दो, ब्याह करके ही देखो, यदि ठीक हो जाए।
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12-11-2012, 08:13 AM | #5 |
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Re: अनुपमा का प्रेम - शरतचंद्र चट्टोपाध्याय
दूसरे दिन घटक आया। अनुपमा बड़े आदमियों की लड़की है, उस पर सुन्दरी भी है; वर के लिए चिन्ता नही करनी पड़ी। एक सप्ताह के भीतर ही घटक महाराज ने वर निश्चित करके जगबन्धु बाबू को समाचार दिया। पति ने यह बात पत्नी को बताई। पत्नी ने बड़ी बहू को बताई, क्रमश: अनुपमा ने भी सुनी। दो-एक दिन बाद, एक दिन सब दोपहर के समय सब मिलकर अनुपमा के विवाह की बातें कर रहे थे। इसी समय वह खुले बाल, अस्त-व्यस्त वस्त्र किए, एक सूखे गुलाब के फूल को हाथ में लिये चित्र की भाँति आ खड़ी हुई। अनु की माता कन्या को देखकर तनिक हँसती हुई बोली- ब्याह हो जाने पर यह सब कहीं अन्यत्र चला जाएगा। दो एक लड़का-लड़की होने पर तो कोई बात ही नही ! अनुपमा चित्र-लिखित की भाँति सब बातें सुनने लगी। बहू ने फिर कहा- माँ, ननदानी के विवाह का दिन कब निश्चित हुआ है?
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12-11-2012, 08:13 AM | #6 |
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Re: अनुपमा का प्रेम - शरतचंद्र चट्टोपाध्याय
- दिन अभी कोई निश्चित नही हुआ।
- ननदोई जी क्या पढ़ रहे हैं? - इस बार बी.ए. की परीक्षा देंगे। - तब तो बहुत अच्छा वर है। - इसके बाद थोड़ा हँसकर मज़ाक करती हुई बोली- परन्तु देखने में ख़ूब अच्छा न हुआ, तो हमारी ननद जी को पसंद नही आएगा। - क्यों पसंद नही आएगा? मेरा जमाई तो देखने में ख़ूब अच्छा है। इस बार अनुपमा ने कुछ गर्दन घुमाई, थोड़ा सा हिलकर पाँव के नख से मिट्टी खोदने की भाँति लंगड़ाती-लंगड़ाती बोली- विवाह मैं नही करूंगी। - माँ ने अच्छी तरह न सुन पाने के कारण पूछा- क्या है बेटी? - बड़ी बहू ने अनुपमा की बात सुन ली थी। खूब जोर से हँसते हए बोली- ननद जी कहती हैं, वे कभी विवाह नही करेंगी। - विवाह नही करेगी? - नही।
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12-11-2012, 08:13 AM | #7 |
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Re: अनुपमा का प्रेम - शरतचंद्र चट्टोपाध्याय
- न करे? - अनु की माता मुँह बनाकर कुछ हँसती हुई चली गई। गृहिणी के चले जाने पर बड़ी बहू बोली- तुम विवाह नही करोगी?
अनुपमा पूर्ववत गम्भीर मुँह किए बोली- किसी प्रकार भी नहीं। - क्यों? - चाहे जिसे हाथ पकड़ा देने का नाम ही विवाह नहीं है। मन का मिलन न होने पर विवाह करना भूल है! बड़ी बहू चकित होकर अनुपमा के मुँह की ओर देखती हुई बोली- हाथ पकड़ा देना क्या बात होती है? पकड़ा नहीं देंगे तो क्या ल़ड़कियां स्वयं ही देख-सुनकर पसंद करने के बाद विवाह करेंगी? - अवश्य! - तब तो तुम्हारे मत के अनुसार, मेरा विवाह भी एक तरह की भूल हो गया? विवाह के पहले तो तुम्हारे भाई का नाम तक मैने नही सुना था। - सभी क्या तुम्हारी ही भाँति हैं?
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12-11-2012, 08:13 AM | #8 |
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Re: अनुपमा का प्रेम - शरतचंद्र चट्टोपाध्याय
बहू एक बार फिर हँसकर बोली- तब क्या तुम्हारे मन का कोई आदमी मिल गया है? अनुपमा बड़ी बहू के हास्य-विद्रूप से चिढ़कर अपने मुँह को चौगुना गम्भीर करती हुई बोली- भाभी मज़ाक क्यों कर रही हो, यह क्या मज़ाक का समय है?
- क्यों क्या हो गया? - क्या हो गया? तो सुनो... अनुपमा को लगा, उसके सामने ही उसके पति का वध किया जा रहा है, अचानक कतलू खाँ के किले में, वध के मंच के सामने खड़े हुए विमला और वीरेन्द्र सिंह का दृश्य उसके मन में जग उठा; अनुपमा ने सोचा, वे लोग जैसा कर सकते हैं, वैसा क्या वह नही कर सकती? सती-स्त्री संसार में किसका भय करती है? देखते-देखते उसकी आँखें अनैसर्गिक प्रभा से धक्-धक् करके जल उठीं, देखते-देखते उसने आँचल को कमर में लपेटकर कमरबन्द बाँध लिया। यह दृश्य देखकर बहू तीन हाथ पीछे हट गई। क्षण भर में अनुपमा बगल वाले पलंग के पाये को जकड़कर, आँखें ऊपर उठाकर, चीत्कार करती हुई कहने लगी- प्रभु, स्वामी, प्राणनाथ! संसार के सामने आज मैं मुक्त-कण्ठ से चीत्कार करती हूँ, तुम्ही मेरे प्राणनाथ हो! प्रभु तुम मेरे हो, मैं तुम्हारी हूँ। यह खाट के पाए नहीं, ये तुम्हारे दोनों चरण हैं, मैने धर्म को साक्षी करके तुम्हे पति-रूप में वरण किया है, इस समय भी तुम्हारे चरणों को स्पर्श करती हुई कह रही हूँ, इस संसार में तुम्हें छोड़कर अन्य कोई भी पुरुष मुझे स्पर्श नहीं कर सकता। किसमें शक्ति है कि प्राण रहते हमें अलग कर सके। अरी माँ, जगत जननी...!
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12-11-2012, 08:14 AM | #9 |
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Re: अनुपमा का प्रेम - शरतचंद्र चट्टोपाध्याय
बड़ी बहू चीत्कार करती हुई दौड़ती बाहर आ पड़ी- अरे, देखते हो, ननदरानी कैसा ढंग अपना रही हैं। देखते-देखते गृहिणी भी दौड़ी आई। बहूरानी का चीत्कार बाहर तक जा पहुँचा था- क्या हुआ, क्या हुआ, क्या हो गया? कहते गृहस्वामी और उनके पुत्र चन्द्रबाबू भी दौड़े आए। कर्ता-गृहिणी, पुत्र, पुत्रवधू और दास-दासियों से क्षण भर में घर में भीड़ हो गई। अनुपमा मूर्छित होकर खाट के समीप पड़ी हुई थी। गृहिणी रो उठी- मेरी अनु को क्या हो गया? डॉक्टर को बुलाओ, पानी लाओ, हवा करो इत्यादि। इस चीत्कार से आधे पड़ोसी घर में जमा हो गए।
बहुत देर बाद आँखें खोलकर अनुपमा धीरे-धीरे बोली- मैं कहाँ हूँ? उसकी माँ उसके पास मुँह लाती हुई स्नेहपूर्वक बोली- कैसी हो बेटी? तुम मेरी गोदी में लेटी हो। अनुपमा दीर्घ नि:श्वास छोड़ती हुई धीरे-धीरे बोली- ओह तुम्हारी गोदी में? मैं समझ रही थी, कहीं अन्यत्र स्वप्न- नाट्य में उनके साथ बही जा रही थी? पीड़ा-विगलित अश्रु उसके कपोलों पर बहने लगे। माता उन्हें पोंछती हुई कातर-स्वर में बोली- क्यों रो रही हो, बेटी?
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12-11-2012, 08:14 AM | #10 |
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Re: अनुपमा का प्रेम - शरतचंद्र चट्टोपाध्याय
अनुपमा दीर्घ नि:श्वास छोड़कर चुप रह गई। बड़ी बहू चन्द्रबाबू को एक ओर बुलाकर बोली- सबको जाने को कह दो, ननदरानी ठीक हो गई हैं। क्रमश: सब लोग चले गए।
रात को बहू अनुपमा के पास बैठकर बोली- ननदरानी, किसके साथ विवाह होने पर तुम सुखी होओगी? अनुपमा आँखें बन्द करके बोली- सुख-दुख मुझे कुछ नही है, वही मेरे स्वामी हैं... - सो तो मैं समझती हूँ, परन्तु वे कौन हैं? - सुरेश! मेरे सुरेश... - सुरेश! राखाल मजमूदार के लड़के? - हाँ, वे ही। रात में ही गृहिणी ने यह बात सुनी। दूसरे दिन सवेरे ही मजमूदार के घर जा उपस्थित हुई। बहुत-सी बातों के बाद सुरेश की माता से बोली- अपने लड़के के साथ मेरी लड़की का विवाह कर लो। सुरेश की माता हँसती हुई बोलीं- बुरा क्या है? - बुरे-भले की बात नहीं, विवाह करना ही होगा!
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