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Old 28-09-2012, 04:27 PM   #1
Dark Saint Alaick
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Default स्वर कोकिला को शत शत नमन

मित्रो, आज भारत की स्वर-कोकिला लता मंगेशकर का जन्मदिन है ! पहले में उन पर अपने सूत्र 'कतरनें' में एक आलेख प्रस्तुत करने का मन बना रहा था, जैसा कि मैं हस्तियों के जन्मदिन पर अक्सर अब तक करता रहा हूं, लेकिन फिर ख़याल आया कि ऐसा करना उनके प्रशंसकों के साथ ज्यादती होगी, क्योंकि वे उनके बारे में अधिक से अधिक जानना चाहते हैं और इसी विचार के साथ जन्म ले रहा है यह सूत्र ! मुझे उम्मीद है कि यह आपकी अपेक्षाओं पर खरा उतरेगा ! धन्यवाद !

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Old 28-09-2012, 04:31 PM   #2
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Default Re: स्वर कोकिला को शत शत नमन



हिंदी फिल्मी गीतों में जिस आवाज का पर्याय रुमानियत, दर्द और इंसानी जज्बात हैं, उसी का नाम है लता दीनानाथ मंगेशकर। लता को बचपन से कला के रूप को गौर से देखने का मौका मिला। ऐसा इसलिए, क्योंकि उनके पिता दीनानाथ मंगेशकर रंगमंच से जुडे हुए थे। इसके कारण लता का ध्यान कला के प्रति और गहरा हुआ। हालांकि उन्होंने कॅरियर की शुरुआत अभिनेत्री बनकर की थी, लेकिन आज उनकी मूल पहचान में अभिनय की जगह संगीत ले चुका है। यह उनकी आवाज का जादू ही है कि जब उन्होंने वर्ष 1962 में भारत-चीन युद्ध में शहीद हुए सेनानियों की याद में एक कार्यक्रम में पं. प्रदीप का लिखा, ‘ऐ मेरे वतन के लोगो...’ गाया तो तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू भी अपने आंसू नहीं रोक पाए थे।
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Old 28-09-2012, 04:33 PM   #3
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Default Re: स्वर कोकिला को शत शत नमन

अभिनय से शुरू किया कॅरियर



इंदौर में मध्यवर्गीय मराठी परिवार में 28 सितम्बर, 1929 को जन्मीं लता के पिता दीनानाथ मंगेशकर मराठी रंगमंच से जुड़े हुए थे। लता ने पिता के साथ नाटकों में अभिनय शुरू किया और वह पिता से संगीत की शिक्षा लेने लगीं। लता ने उस्ताद अमानत अली खां भिंडी बाजार वाले से शास्त्रीय संगीत सीखना शुरू किया, लेकिन विभाजन के दौरान खां साहब पाकिस्तान चले गए। इसके बाद लता ने अमानत खां देवास वाले से संगीत की शिक्षा लेनी प्रारंभ की। 13 वर्ष की छोटी उम्र में ही लता के सिर से पिता का साया उठ गया और परिवार की जिम्मेदारी उन पर आ गई। इसके बाद उनका परिवार पुणे से मुम्बई आ गया। हालांकि लता को फिल्मों में अभिनय करना जरा भी पसंद नहीं था, लेकिन परिवार की जिम्मेदारी को उठाते हुए उन्होंने कॅरियर की शुरुआत 1942 में पहली बार फिल्म ‘मंगलगौर’ में अभिनय से की। वर्ष 1945 में लता की मुलाकात संगीतकार गुलाम हैदर से हुई। वह लता के गाने के अंदाज से काफी प्रभावित हुए और उन्होंने फिल्म निर्माता एस. मुखर्जी से कहा कि वह लता को फिल्म ‘शहीद’ में गाने का मौका दें। पचास के दशक में गुलाम हैदर की कही गई बात सच निकली और लता कई नामी-गिरामी संगीतकारों की चहेती गायिका बन गईं।
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Old 28-09-2012, 04:35 PM   #4
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Default Re: स्वर कोकिला को शत शत नमन

60 से 90 तक छाईं लता



अनिल बिस्वास, सलिल चौधरी, शंकर-जयकिशन, एसडी बर्मन, आरडी बर्मन, नौशाद, मदनमोहन, सी. रामचंद्र सरीखे संगीतकारों ने लता की प्रतिभा का लोहा माना। लता ने ‘दो आंखें बारह हाथ’, ‘दो बीघा जमीन,’ ‘मदर इंडिया’ और ‘मुगल-ए-आजम’ में भी गाने गाए हैं। इतिहास गवाह है कि 60 से लेकर 90 के दशक तक फिल्म जगत पर लता और उनकी बहन आशा ने दबदबा कायम रखा। वहीं, राज कपूर लता की आवाज से इस कदर प्रभावित थे कि उन्होंने लता को सरस्वती का दर्जा तक दे दिया था। 90 का दशक आते-आते लता कुछ चुनिंदा फिल्मों के लिए ही गाने लगीं। हाल के सालों में वह यश चोपड़ा की फिल्मों की आवाज बनीं। इससे पहले साहिर लुधियानवी के लिखे गीत और एसडी बर्मन के संगीत निर्देशन में लता ने कई हिट गाने गाए। साहिर के गीत पर लता ने वर्ष 1961 में फिल्म ‘हम दोनों’ के लिए ‘अल्लाह तेरो नाम...’ भजन गाया, जो बहुत लोकप्रिय हुआ। साठ के दशक में हेमंत दा के संगीत निर्देशन में ‘आनंद मठ’ के लिए लता ने ‘वंदे मातरम...’ गीत गाकर अलग पहचान बनाई। पचास के दशक में लता ने गीतकार राजेंद्र किशन के लिए सी. रामचंद्र की धुनों पर कई गीत गाए, जिनमें फिल्म ‘अनारकली’ के गीत ‘ये जिंदगी उसी की है...’, ‘जाग दर्द इश्क जाग...’ बेहतरीन मिसाल हैं। इसके अलावा सी. रामचंद्र के संगीत निर्देशन में लता ने प्रदीप के लिखे गीतों को भी अपनी आवाज दी।
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Old 28-09-2012, 04:41 PM   #5
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Default Re: स्वर कोकिला को शत शत नमन

विवादों से भी नाता



लता को एक बेहद साफ दिल इंसान माना जाता है। वह बहन आशा के बेहद करीब मानी जाती हैं। हालांकि अक्सर अफवाहों के बाजार में दोनों बहनों को एक-दूसरे का प्रतिस्पर्द्धी बताया जाता है, पर लता ने हमेशा आशा के प्रति प्रेम दिखाया है। वहीं, सिनेमाई संगीत के सुनहरे दौर की साक्षी रहीं लता का मानना है कि संगीत का मौजूदा दौर अलग है, इसलिए वह नए अंदाज से दूर हैं। लता और मोहम्मद रफी में रॉयल्टी को लेकर मतभेद हुआ। यह मतभेद इतना गहरा था कि दोनों ने कुछ वर्षों तक साथ गाना नहीं गाया। दोनों के बीच सुलह करवाने के लिए संगीतकार जयकिशन को आगे आना पड़ा। अब यह विवाद फिर से खबरों में है, क्योंकि हाल ही में एक इंटरव्यू में लता ने कहा था कि रफी ने उन्हें माफी पत्र लिखा था। इस बात से रफी के बेटे शाहिद रफी नाराज हो गए और उन्होंने इस बात को गलत बताते हुए कानूनी कार्यवाही की धमकी दी है।
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Old 28-09-2012, 04:44 PM   #6
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Default Re: स्वर कोकिला को शत शत नमन

गीतकार संग संगीतकार भी



लता की पहचान सर्वोच्च गायिका की है, लेकिन उनकी इस संगीतमय छवि को और बेहतर बनाता है उनका कुछ फिल्मों में संगीतकार के तौर पर काम करना। असल में लता ने वर्ष 1960 में मराठी फिल्म ‘राम राम पव्हाणा’ में पहली बार संगीतकार के तौर पर काम किया था, लेकिन इसके लिए उन्होंने अपना नाम बदल लिया और एक अन्य नाम ‘आनंद घन’ के नाम से संगीत दिया। संगीतकार के रूप में उनका यह सिलसिला वर्ष 1969 तक ही चला। इस दौरान उन्होंने केवल पांच फिल्मों में संगीत दिया और ये सभी फिल्में मराठी थीं। ‘राम राम पव्हाणा’ के बाद उन्होंने वर्ष 1963 में ‘मराठा तितुका मेलावा’, ‘मोहित्यांची मंजुला’, 1965 में ‘सधि मनासे’ और 1969 में ‘ताम्बडी माती’ में संगीत दिया। खास बात यह है कि वर्ष 1965 में ‘सधि मनासी’ को महाराष्ट्र राज्य की ओर से सर्वश्रेष्ठ संगीत का पुररस्कार मिला और इसी फिल्म के एक गीत ‘ऐरनिच्या देवा तुला...’ को सर्वश्रेष्ठ गीत का पुरस्कार मिला। फिल्मों में संगीत और गीतों को अपनी मखमली आवाज देने के अलावा लता ने चार फिल्मों का निर्माण भी किया। वर्ष 1953 में उन्होंने मराठी फिल्म ‘वादळ’ का निर्माण किया। इसी साल संगीतकार सी. रामचंद्र के साथ मिलकर उन्होंने हिंदी फिल्म ‘झांझर’ बनाई। सन 1955 में उन्होंने हिंदी फिल्म ‘कंचन’ बनाई और 1990 में गीतकार और निर्देशक गुलजार के साथ फिल्म ‘लेकिन’ बनाई। इस फिल्म के एक गीत के लिए लता को सर्वश्रेष्ठ गायिका का फिल्म फेयर पुरस्कार भी मिला था। वहीं, फिल्म भी कई श्रेणियों में पुरस्कार हासिल करने में सफल रही थी। इस संगीतमय फिल्म के संगीत निर्देशक उनके भाई हृदयनाथ मंगेशकर थे।
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Old 28-09-2012, 05:03 PM   #7
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Default Re: स्वर कोकिला को शत शत नमन

सम्मान-पुरस्कार

वर्ष 1958 में प्रदर्शित फिल्म ‘मधुमती’ के गीत ‘आ जा रे परदेसी..’ के लिए फिल्म फेयर !
वर्ष 1962 में फिल्म ‘बीस साल बाद’ के गीत ‘कहीं दीप जले कहीं दिल...’ के लिए फिल्म फेयर !
वर्ष 1965 में फिल्म ‘खानदान’ के गीत ‘तुम्हीं मेरे मंदिर, तुम्हीं मेरी पूजा...’ के लिए फिल्म फेयर !
वर्ष 1969 में फिल्म ‘जीने की राह’ के गीत ‘आप मुझे अच्छे लगने लगे...’ के लिए फिल्म फेयर !
वर्ष 1969 में पद्म भूषण !
वर्ष 1972 में फिल्म ‘परिचय’, वर्ष 1975 में ‘कोरा कागज’ और वर्ष 1990 में फिल्म ‘लेकिन’ के लिए नेशनल अवॉर्ड !
वर्ष 1974 में दुनिया में सबसे अधिक गीत गाने का गिनीज बुक रिकॉर्ड, अब तक गाए हैं कुल 30,000 से अधिक गीत !
वर्ष 1989 में दादा साहब फाल्के पुरस्कार !
वर्ष 1993 में फिल्म फेयर का लाइफ टाइम अचीवमेंट अवॉर्ड !
वर्ष 1994 में फिल्म ‘हम आपके हैं कौन’ के गीत ‘दीदी तेरा देवर दीवाना...’ के लिए फिल्म फेयर का विशेष पुरस्कार !
वर्ष 1997 में राजीव गांधी सम्मान !
वर्ष 1999 में पद्म विभूषण !
वर्ष 2001 में देश का सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न !

एक रोचक तथ्य

लता एकमात्र ऐसी जीवित शख्सियत हैं, जिनके नाम से पुरस्कार दिए जा रहे हैं !
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Old 28-09-2012, 05:11 PM   #8
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लता, संग्रहालय और सुमन के 40 साल



कहते हैं कि सुर सम्राज्ञी लता मंगेशकर के गले में मां सरस्वती साक्षात विराजी हुई हैं, तभी तो एक बार जिस गीत को लता दीदी अपनी आवाज दे देती हैं, उस गीत के बोल इतिहास के पन्नों में संगीत की अमिट स्याही के रूप में दर्ज हो जाते हैं। देश-दुनिया के लाखों-करोड़ों संगीतप्रेमियों को अपनी आवाज का मुरीद बनाने वाली लता दीदी के चाहने वालों की भी कोई कमी नहीं है। उनके प्रशंसकों में एक नाम सुमन चौरसिया का भी आता है। 62 वर्षीय इस शख्स ने अपनी इष्ट गायिका की मखमली आवाज वाले हजारों दुर्लभ ग्रामोफोन रिकॉर्ड दूर-दूर से ढूंढ़कर सहेजे हैं। ये ग्रामोफोन रिकॉर्ड लता की जन्मस्थली इंदौर के नजदीक पिगडम्बर में एक सार्वजनिक संग्रहालय की मिल्कियत हैं। यह सुर सम्राज्ञी की शान में उन्हीं के नाम से स्थापित अपनी तरह का इकलौता संग्रहालय है। गौरतलब है कि आधुनिक तकनीक के दौर में ग्रामोफोन आज गुजरे कल के भूले-बिसरे उपकरणों की फेहरिस्त में शामिल हैं।
‘लता दीनानाथ मंगेशकर ग्रामोफोन रिकॉर्ड संग्रहालय’ नामक इस संग्रहालय के कर्ता-धर्ता चौरसिया ही हैं, जो शहर के रेलवे स्टेशन पर खाने-पीने की चीजों का छोटा सा स्टॉल चलाते हैं। सुमन ने लता दीदी के इन रिकॉर्ड्स के अलावा पाकिस्तान, बांग्लादेश और अन्य पश्चिमी देशों के संगीत की अनमोल धरोहरों को भी संग्रहालय में बारीकी से संजोया है। संगीतप्रेमियों की मदद से इस संग्रह को चिरस्थायी बनाने के लिए सुमन ने चार साल पहले अपने संग्रह को संग्रहालय का आकार दिया था। धीरे-धीरे उनका यह शौक आखिरकार जुनून में तब्दील हो गया। सुमन गर्व से दावा करते हैं कि फिलवक्त उनके संग्रह में मौसिकी की महारानी लता दीदी की आवाज वाले करीब छह हजार से भी अधिक गीतों के दुर्लभ ग्रामोफोन रिकॉर्ड हैं। सुमन बताते हैं कि बरसों पहले जब लता के गाए पुराने गीत सुनने की चाह जगी तो मैं शौकिया तौर पर ग्रामोफोन रिकॉर्ड ढूंढ़ने लगा।
संग्रहालय में हिंदी के साथ मराठी, तमिल, मलयालम, बंगाली और गुजराती नगमें भी शामिल हैं। इन ग्रामोफोन रिकॉर्ड्स में लता दीदी पर फिल्माए गए पहले गीत से लेकर रेडियो के लिए उनके गाए गानों तक के अधिकांश रिकॉर्ड्स मौजूद हैं। हालांकि इस इकलौते संग्रहालय की बुनियाद में इस संगीतप्रेमी की करीब 40 साल की अथक मेहनत छिपी हुई है। कई रिकॉर्ड तो ऐसे हैं, जो बेहद कम संख्या में बाजार में उतारे गए थे। संग्रह में लता के गाए छह हजार से अधिक गीतों के अलावा लोक संगीत, गजल, कव्वाली और सूफी मौसिकी के 26,000 से भी अधिक ज्यादा नायाब ग्रामोफोन रिकॉर्ड मौजूद हैं, जो दुनियाभर के अलग-अलग स्थानों से बड़ी मेहनत के बाद संकलित किए जा सके हैं।
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एक बार जहर देकर जान लेने की हुई थी कोशिश



अपनी मधुर गायकी से श्रोताओं को आज भी मंत्रमुग्ध कर रहीं स्वर सम्राज्ञी लता मंगेशकर को एक समय धीमा जहर देकर जान से मारने की कोशिश की गयी थी। लता मंगेशकर के निकट सम्पर्क में रहीं प्रसिद्ध डोगरी कवयित्री और हिन्दी की प्रसिद्ध साहित्यकार पद्मा सचदेव की हाल ही में प्रकाशित संस्मरणात्मक पुस्तक 'ऐसा कहां से लाऊं' में इस घटना का जिक्र किया गया है। पद्मा सचदेव की इस पुस्तक में लता मंगेशकर ने बताया है कि यह घटना 1962 में हुई थी जब वह 33 वर्ष की थीं। एक दिन उठने पर उन्हें पेट में बहुत अजीब सा महसूस हुआ। इसके बाद उन्हें पतले पानी जैसी दो. तीन उल्टियां हुर्इं. जिनका रंग कुछ.कुछ हरा था। वह हिल भी नहीं पा रही थीं और दर्द से बेहाल थीं। तब डाक्टर को बुलाया गया. जो अपने साथ एक्सरे मशीन भी लेकर आया। दर्द बरदाश्त से बाहर होने पर डाक्टर ने उन्हें बेहोशी के इंजेक्शन लगाए। तीन दिन तक जीवन और मौत के बीच वह संघर्ष करती रहीं। उन्होंने बताया कि वह काफी कमजोर हो गयी थीं और तीन महीने तक बिस्तर पर पडी रहीं। उस दौरान वह कुछ खा भी नहीं पाती थीं। सिर्फ ठंडा सूप उन्हें पीने को दिया जाता था. जिसमें बर्फ के टुकडे पडे रहते थे। पेट साफ नहीं होता था और उसमें हमेशा जलन होती रहती थी। दस दिन तक हालत खराब होने के बाद फिर धीरे. धीरे सुधरी। डाक्टर ने उन्हें बताया कि उन्हें धीमा जहर दिया जा रहा था। इस घटना के बाद उनके घर में खाना पकाने वाला रसोइया किसी को कुछ बताए और पगार लिए बिना भाग गया। बाद में लता मंगेशकर को पता चला कि उस रसोइये ने फिल्म इंडस्ट्री में भी काम किया था। हिन्दी सिनेमा पर कई पुस्तकें लिख चुकीं लंदन निवासी लेखिका नसरीन मुन्नी कबीर के साथ साक्षात्कार में भी लता मंगेशकर ने इस घटना का उल्लेख किया था। उनके साक्षात्कार पर आधारित यह पुस्तक 2009 में प्रकाशित हुई थी। इस घटना के बाद घर में रसोई का काम उनकी छोटी बहन उषा मंगेशकर ने संभाल लिया और वही खाना बनाने लगीं। लता ने बताया है कि बीमारी के दौरान वह गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी के स्रेह को नहीं भूल सकतीं. जो पूरे तीन महीने तक हर रोज शाम छह बजे आकर उनके पास बैठते थे और जो कुछ वह खाती थीं वही खाते थे। वह कविताएं और कहानियां सुनाया करते थे। उन्होंने बताया कि पूरी तरह स्वस्थ होने के बाद उन्होंने सबसे पहले जो गीत रिकार्ड कराया. वह गीत था 'कहीं दीप जले कहीं दिल' जिसका संगीत हेमन्त कुमार ने दिया था। हालांकि इस पुस्तक में लता मंगेशकर को जहर देने की एक और घटना का जिक्र किया गया है, लेकिन यह उल्लेख उषा मंगेशकर के हवाले से है। उषा मंगेशकर ने पुस्तक में बताया है.. गीतकार शैलेन्द्र मर चुके थे। जब दीदी को जहर दिया तो वह मेरे ख्वाब में आए और कहने लगे. उषा मुझे माफ करो। ये मैंने नहीं किया। मैंने अपनी आंखों से अमुक को दीदी को जहर देते देखा है। मौत के बाद उनका मेरे ख्वाब में आना अजीब था।
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जन्मदिन पर विशेष बातचीत
संगीत का यह दौर कुछ अलग है, इसीलिए मैं इससे दूर हूं



सिनेमाई संगीत के सुनहरे दौर की साक्षी रही लता मंगेशकर का मानना है कि संगीत का मौजूदा दौर अलग है और उनके लिये नया है लिहाजा वह इससे दूर है । उन्होंने यह भी कहा कि गाना उन्होंने बंद नहीं किया, लेकिन वही गायेंगी जो उन्हें पसंद आए । लता ने कहा, ‘बदलाव दुनिया का दस्तूर है । मैने फिल्म इंडस्ट्री में 1947 से 1995 तक जो दौर देखा, वह अलग था । अभी का दौर अलग है, मेरे लिये नया है । यह बदलाव लाजमी भी है क्योंकि फिल्में और कलाकार तक अब बदल गए हैं । इसीलिये मैं इस दौर से दूर हूं।’ छत्तीस भाषाओं में और एक हजार से अधिक हिन्दी फिल्मों में गा चुकी सुर सम्राज्ञी ने हालांकि यह भी कहा कि उन्होंने गाना बंद नहीं किया है लेकिन अपनी पसंद से ही गाती हैं । उन्होंने कहा, ‘मैं गाना अब भी गाती हूं लेकिन जो मुझे अच्छा लगता है, बस वही।’ फिल्म उद्योग और संगीत में आये बदलाव को महसूस करने वाली लता के लिये कुछ रिश्ते नहीं बदले और उनमें से एक रिश्ता उनका और मशहूर फिल्मकार यश चोपड़ा का है ।
लता ने कहा, ‘मुझे आजकल बहुत गुस्सा आता है जब लोग पूछते हैं कि आपने यश चोपड़ा की अगली फिल्म 'जब तक है जान' में गाना क्यों नहीं गाया । मेरा और यशजी का रिश्ता पेशेवर नहीं, बल्कि भाई बहन का है । हम कभी गानों पर बात नहीं करते और उनके लिये नहीं गाने पर हमारा रिश्ता खत्म नहीं होगा।’ उन्होंने कहा, ‘हो सकता है कि फिल्म में ऐसी कोई परिस्थिति न रही हो कि मेरा गाना उसमें रहे। मैने उनकी हर फिल्म में गाया है और मैं कभी उन्हें मना नहीं करती हूं, लेकिन गाने या न गाने से हमारे रिश्ते पर कोई असर नहीं पड़ेगा।’ कई बड़े-बड़े फनकारों के साथ काम कर चुकी लता ने यह भी कहा कि फिल्म जगत में अमिताभ बच्चन ऐसे शख्स हैं, जिनकी वह बहुत इज्जत करती हैं। उन्होंने कहा, ‘मदन भैया (मदनमोहन), शंकर, जयकिशन, मजरूह साब और शैलेंद्र जैसे कई लोग मेरे करीबी थे । हमारा एक ग्रुप हुआ करता था । एक एक करके सब चले गए । मौजूदा समय में एक शख्स ऐसे हैं, जिनकी मैं बहुत इज्जत करती हूं और वह हैं अमिताभ बच्चन।’ लता ने कहा, ‘अमिताभ की शख्सियत में भारतीयता झलकती है । उनके पिताजी भी ऐसे ही थे । अमिताभ महान अभिनेता है, लेकिन कभी छोटी बात नहीं करते। मैं हिन्दी कविता पर काम करना चाहती हूं और उनसे इस बारे में जरूर राय लूंगी।’
कई गैर फिल्मी एलबम कर चुकी लता ने यह भी कहा कि इंटरनेट के आने के बाद संगीत उद्योग पर सबसे बुरा असर पड़ा है । उन्होंने कहा, ‘आजकल दुर्भाग्य की बात यह है कि संगीत कंपनियां घाटे में जा रही है क्योंकि इंटरनेट पर सब कुछ उपलब्ध है । रिकार्ड नहीं बिकते जिससे कंपनियों को नुकसान होता है और वे कलाकारों को उचित रायल्टी नहीं दे पाती । ऐसा पहले नहीं था।’ मौजूदा दौर के कलाकारों को क्या राय देंगी, यह पूछने पर उन्होंने कहा कि उनकी राय की कोई जरूरत ही नहीं है । उन्होंने कहा, ‘मैं क्या किसी को राय दूंगी । सभी अच्छा गा रहे हैं और लगातार गा रहे हैं । सुनिधि , श्रेया, सोनू , केके और दक्षिण के कुछ गायक बहुत अच्छा गा रहे हैं ।’ लता की आवाज को लोगों ने सरस्वती का वरदान माना और वह खुद भी ऐसा महसूस करती हैं। उन्होंने कहा, ‘भगवान ने मुझे अच्छी आवाज दी तो मैं भी यह मानती हूं कि यह वरदान ही है। उसके बाद मेहनत करके कलाकार काम अच्छा कर सकते हैं जो मैने भी किया । लोगों के प्यार ने मुझे लगातार अच्छा गाने की प्रेरणा दी और उसी वजह से मैं यहां तक पहुंच सकी।’
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