07-04-2013, 10:09 PM | #1 |
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आदमीयत शराफ़त हया ले गई
अंतिका प्रकाशन से प्रकाशित मेरी पुस्तक "वक़्त की हथेली में " से एक ग़ज़ल :-
आदमीयत शराफ़त हया ले गई । वक़्त की मौज सब कुछ बहा ले गई ।। अम्न की झोंपड़ी एकता का महल । ज़ातो-मज़हब की आंधी उड़ा ले गई ।। शोखियाँ क़हक़हे महफ़िलें रौनकें । फ़ौज दंगाइयों की उठा ले गई ।। सुर्ख़ रुख़्सारो-लब शोख़ चंचल अदा । मुफ़्लिसी हर ख़ज़ाना चुरा ले गई ।। रूह इन्सानियत की तड़पती रही । लूट कर लाज ख़ूनी फ़िज़ा ले गई ।। एक रन्जूर उजड़ी हुई ज़िन्दगी । मौत 'जावेद' से और कया ले गई ।। ---हातिम जावेद |
08-04-2013, 12:20 PM | #2 | |
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Re: आदमीयत शराफ़त हया ले गई
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बहुत बहुत शुक्रिया, जावेद भाई. एक असरदार ग़ज़ल और सशक्त अभिव्यक्ति के लिए. उपरोक्त शे'र बतौरे ख़ास मुझे पसंद आये जिनमे बदलते हुए वक़्त का यथार्थ बखूबी आपने बयान किया है. ग़ज़ल का मक्ता खूबसूरत भी है और प्रभावशाली भी - एक रन्जूर उजड़ी हुयी जिंदगी, मौत जावेद से और क्या ले गई. |
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08-04-2013, 04:09 PM | #3 |
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Re: आदमीयत शराफ़त हया ले गई
अति श्रेष्ठ सृजन। पढवाने के लिए शुक्रिया, मित्र जावेद।
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु |
08-04-2013, 06:19 PM | #4 |
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Re: आदमीयत शराफ़त हया ले गई
मौजुदा हालात को बयां करती एक बेहतरीन गजल
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09-04-2013, 12:32 PM | #5 | |
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Re: आदमीयत शराफ़त हया ले गई
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09-04-2013, 12:40 PM | #6 |
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Re: आदमीयत शराफ़त हया ले गई
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09-04-2013, 12:50 PM | #7 |
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Re: आदमीयत शराफ़त हया ले गई
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09-04-2013, 03:50 PM | #8 | |
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Re: आदमीयत शराफ़त हया ले गई
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खूबसूरत गजल है
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मैं क़तरा होकर भी तूफां से जंग लेता हूं ! मेरा बचना समंदर की जिम्मेदारी है !! दुआ करो कि सलामत रहे मेरी हिम्मत ! यह एक चिराग कई आंधियों पर भारी है !! |
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09-04-2013, 11:02 PM | #9 |
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Re: आदमीयत शराफ़त हया ले गई
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