26-09-2011, 10:07 PM | #1 |
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एक जान की क्या कीमत रह गयी है..??
इस घटना से कई सवाल खड़े होते हैं जिनका जवाब देना जरूरी है...... १)) क्या उस व्यक्ति को ऐसी सजा मिलेगी कि आगे से कोई व्यक्ति किसी की जान की कीमत कम करके ना आंक सके......?? २) क्या शराब पीकर गाड़ी चलाने वाले को मर्डर की कोशिश करने की सजा दी जायेगी....?? ३) क्या हमारे देश में इस बहस की जरूरत है कि मौत की सजा होनी चाहिए कि नहीं क्योंकि मौत की सजा के बावजूद भी लोगों में इसका डर नहीं है..तो अगर मौत की सजा को खत्म कर दिया जाए तो क्या हाल होगा इस देश में...?? अब कुछ और अधिक महत्वपूर्ण सवाल......... १) क्या कुछ मंत्रियों के भाई और भतीजों की झोली भरने के लिए लाखों लोगों को घंटों टोल चुकाने के लिए खडा करना जरूरी है..?? २) क्या टोल चुकाने के लिए घंटे लाइन में बिना बात के खड़े रहने के बाद लोग अपने आपे में रह पाते हैं....?? ३) जब ये टोल प्लाजा नहीं थे तब हमने पेट्रोल और डीजल पर एक तरह का शुल्क (सेस) लगा कर इन सड़कों को खडा कर लिया तो क्या उसी शुल्क (सेस) से इनका रख रखाव करना भी मुश्किल है...??? ४) क्या पेट्रोल और डीजल पर प्रति लीटर की दर से एक दशक से अधिक वसूला जा रहा ये शुल्क एक सही और आसान तरीका नहीं है इस तरह के सड़क को इस्तेमाल करने के लिए पेट्रोल और डीजल का इस्तेमाल करने वाला हर वाहन ये शुल्क अपने आप भी चुका देता है...तो फिर क्या कारण है कि हमारे ही पैसे से बनी सडको के लिए हमसे और पैसा टोल के रूप में माँगा जाता है जबकि वो शुल्क अभी भी बदस्तूर जारी है..?? ५) कभी कभी टोल के आस पास रहने वाले लोगों को सड़क का थोड़ा सा हिस्सा इस्तेमाल करने के लिए भी पूरा टोल देना पड़ता है जबकि जो लोग उसी सड़क को कही ज्यादा दूरी तक इस्तेमाल करते हैं..बिना कोई टोल दिए क्यों उनका रास्ता दो टोल प्लाजा के बीच में पड़ता है....क्या ये व्यवस्था अन्यायपूर्ण नहीं है...?? ६) मेरे विचार से अगर किसी टेक्स की वसूली करने में असुविधा होती हो...तो उसका कोई सरल रास्ता ढूँढना जरूरी होता है...सरकार को शुल्क की वसूली के लिए लोगों का समय खराब करने की वजाय पेट्रोल और डीजल के लिए एक रुपया लीटर और ले लेना बेहतर है क्योंकि जो व्यक्ति जितना वाहन को चलाएगा उतना ही शुल्क स्वतः ही दे देगा...किसी को ज्यादा और किसी को कम शुल्क का अन्याय नहीं होगा और लोगो को तकलीफ भी नहीं होगा क्योंकि पेट्रोल भरवाते ही शुल्क अपने आप ही अदा हो जाएगा.... ७) तो क्यों उस टोल प्लाजा पर हुए इस मर्डर के लिए सरकार की दोषपूर्ण नीति दोषी नहीं है...?? ८) मित्रों जब आप दिल्ली में प्रवेश करते हैं तो वाहन पर दो तरह के शुल्क देने पड़ते हैं....एक टोल प्लाजा पर और एक दिल्ली में घुसने वाले वाले व्यवसायिक वाहनों का शुल्क...और जिन वाहनों को ये दोनों ही देने पड़ते हैं...वाहन ऐसा लगता है जैसे कि सरकार ने कोई गुंडागर्दी की फर्म खोल रखी हो.....क्या शुल्क वसूलने के लिए ये समय की बर्वादी उचित है...??
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26-09-2011, 11:20 PM | #2 | |
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Re: एक जान की क्या कीमत रह गयी है..??
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अनिल जी ने आज काफी विचारोतेजक सवाल उठाए जो उसमे तो कुछ ऐसे हैं की कभी कभी श्याद सभी के जेहन में आते होंगे.
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26-09-2011, 11:23 PM | #3 | |
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Re: एक जान की क्या कीमत रह गयी है..??
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पहले तो मामले की जांच होगी और फिर अगर वो व्यक्ति दोषी है तो उसे सजा जरुर होनी चाहिए. वैसे शराब पीकर कोई भी व्यक्ति अपने पुरे होशो हवाश में नहीं रहता, इसलिए शायाद फाशी की सजा नहीं मिले, फिर भी उम्र कैद की सजा के पुरे आसार दीखते हैं.
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26-09-2011, 11:28 PM | #4 |
Administrator
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Re: एक जान की क्या कीमत रह गयी है..??
इसे cold blooded murder नहीं कहा जा सकता, फिर भी कम से कम १० से १४ साल की सजा तो होनी ही चाहिए.
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26-09-2011, 11:31 PM | #5 | |
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Re: एक जान की क्या कीमत रह गयी है..??
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जहां तक मैंने खबर देखी है दोषी जो पकड़ा गया है वो संदिघ्ध ही है और वो हथियार जिससे मारा गया है नहीं मिल पाया है |बिना पक्के सबूत के तो उसे बेल भी मिल सकता है | जो गाडी पकड़ी गयी है वो वही है ये भी जांच के अंदर ही है | गलत तो हुआ ही है | इसमें सबसे ज्यादा दोषी पीकर गाडी चलाने वालों का है , खासकर वो जो अपराधी मानसिकता के होतें हैं | कानूनन फांसी की सज़ा तो नहीं मिलेगी पर इन्हें ऐसी सज़ा दी जानी चाहिए ताकि कुछ लोगों को इससे सीख मिल सके ...जैसे -भारी मुआवजा के साथ उम्रकैद |
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26-09-2011, 11:34 PM | #6 |
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Re: एक जान की क्या कीमत रह गयी है..??
मैं टोल टैक्स को तो गलत नहीं मानता ,लेकिन टोल टैक्स में लगने वाली लम्बी कतार को कम करने का कोई तरीका अवश्य खोजना चाहिए,रही बात मर्डर करने की तो हम रोज़ अख़बारों में पढ़ते है की फलां व्यक्ति ने शराब के पैसों के लिए अपने माँ,बाप ,बीवी या बुड्ढी दादी को मार दिया तो क्या उसके लिए भी सरकार जिमेवार होगी,जब हम किसी सुविधा का लाभ उठाते है तो उसका मूल्य तो चुकाना ही पड़ता है,यदि पेट्रोल या diesel का रेट बढ़ा भी दिया जाए तो भी सडकों की हालत नहीं सुधर सकती ,क्यूंकि हम सभी जानते है की सरकारी तन्त्र कैसे कार्य करता है !
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26-09-2011, 11:41 PM | #7 | |
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Re: एक जान की क्या कीमत रह गयी है..??
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ये हमारी खुद की नैतिक जिम्मेवारी बनती है की शराब पीकर गाडी न चलायें | पर गलती हो जाने पर दोषी को सज़ा ऐसी मिलनी चाहिए की समाज में कुछ सकारात्मक प्रभाव पड़े | मुझे इस मामले में टोल टेक्स वाली समस्या नगण्य दिखती है |
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26-09-2011, 11:44 PM | #8 | |
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Re: एक जान की क्या कीमत रह गयी है..??
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अपने यहाँ फाशी की सजा है लेकिन इससे कोई फर्क नही पड़ता क्योंकि हमारे देश में न्यायिक प्रक्रिया बहुत लम्बी और बकवास है और कभी- कभी सालों तक अपराधी केवल जेल में बंद अपने फैसले का इंतज़ार करते हैं. मौत के सजा से पहले ही मर जाते हैं. मृत्युदंड हटाने से न केवल अपराधियों में निर्भीकता बढ़ेगी बल्कि देश में हो रहे आपराधिक तत्व अधिक बढ़ जायेंगे. कितनी अजीब बात है की भारत की पूर्व प्रधान मत्री राजीव गाँधी की मौत के आरोपी बीस वर्षों से अपनी सजा का इंतजार कर रहे हैं और इन बीस वर्षों में देश में हुए आतंकवादी हमलों की संख्या बढ़ ही रही है. इसका अर्थ यह है कि कहीं न कहीं हमारी न्याय व्यवस्था असफल हो रही है और विदेशी ताकते हमें सोफ्ट स्टेट समझ रही हैं.
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26-09-2011, 11:57 PM | #9 | |
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Re: एक जान की क्या कीमत रह गयी है..??
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मैं तो कहता हूँ भारत के हर समस्या की जड़ यह बढती आबादी है,
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27-09-2011, 12:02 AM | #10 |
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Re: एक जान की क्या कीमत रह गयी है..??
अनिल भैय्या
नमस्कार इस मुद्दे पर मैँ भी अपने विचार रखना चहूँगा | मात्र 27 रूपयोँ के लिए किसी का जीवन ही समाप्त कर देना कदापि उचित नही है |ये रईसजादे किसी गरीब बोलना अपनी शान के खिलाफ समझते हैँ ये अपने दौलत के नशे मे इतना चूर रहते हैँ कि इन्हे अच्छे बुरे की समझ ही नही रहती है |मेरे हिसाब से इस रईसजादे को मौत के बदले मौत की सजा मिलनी चाहिए | लेकिन ऐसा नही होगा कुछ दिनोँ मे रईसजादा जमानत पर रिहा होकर आ जाएगा हाय ये हमारे देश का कानून और हमारी अपंग सरकार की दमनकारी नितियां जिसके चलते ये घटना हुई और एक मासूम को मात्र 27 रुपयोँ के लिए अपनी जान गवानी पड़ी | अभी कुछ दिनोँ पहले छत्तिसगढ़ राज्य मे रायपुर महानगर के कुम्हारी क्षेत्र मे एक टोल प्लाजा पर एक टूचपुंजिहा मंत्री से टोल की मांग की गई मंत्री ने टोल देने मे आनाकानी करी जिसमे टोल कर्मी गुंडागर्दी पर उतर आए मंत्री जी भी अपना पावर दिखाने के लिए अपने मित्रोँ , समर्धकोँ को बुला लिया जिसमे मंत्री जी की मंडली भारी पड़ी मारपीट के बाद टोल कर्मियोँ को मैदान छोड़कर भागना पड़ा टोल ऑफिस मे रखा उनका सभी सामना तोड़ फोड डाला गया दो तीन दिनोँ तक टोल प्लाजा बंद रहा | मेरा रोज का आना जाना है तो ऐसे वाक्या रोज देखने को मिलते हैँ | कुछ टोल प्लाजा ऐसे हैँ जिनकी वैधता समाप्त हो जाने के बाद भी प्रशासन , मंत्रियोँ की मिली भगत से अवैध वसूली गुंडागदीँ के बल पर आज भी जारी है | ऐसे मामलोँ मे सरकार आंखे फेरे बैठी रहती है |
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