04-09-2013, 08:01 PM | #1 |
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चिंतनीय एवम सोचनीय प्रश्न
तब तक मेरी पत्नी की नीद भी खुल चुकी थी, मैं उसे ऐसे समेट कर छुपाने लगा जैसे अपनी बेटी को इस संसार की नज़रों से छुपाना चाहता हूँ। मेरी आँखों से आंसू की धार रुकने का नाम नहीं ले रही थी। बेटी की सुरक्षा को लेकर मन व्यथित था। असहाय था। फिर अचानक सोचने लगा, जब आज मैं उस बेटी के लिए इतना चिंतित हूँ, जिसका अभी जनम तक नहीं हुआ, तो उन माँ-बाप के ऊपर क्या बीत रही होगी जिनकी बेटियों के साथ सही में दुर्घटना घटित होती है। इस सोच मात्र से मेरी रूह कॉप जाती है। तो क्या हम अपने देश को कन्याओं के लिए सुरक्षित नहीं बना सकते? क्या हम यूँ ही कन्याओं को कटते पिसते देखते रहेंगे और कुछ नहीं करेंगे? क्या हमारी सरकार, हमारा प्रशासन, हमारा समाज इन परियों की रक्षा करने में समर्थ नहीं है? या करना नहीं चाहता? इन सब का उत्तर कभी हाँ में तो कभी न में मिला फिर कवि के हृदय से ये पंक्तिया फूट पड़ी: करें सुता को आज सुरक्षित एक भी दुहिता ना हो पीड़ित, सारी बिटियाँ तो हैं तेरी फिर काहे का भेद रे पगले, हर -एक बेटी की चीखों का, भरो दर्द तुम अपने हिरदय, गला काट दे उन दत्यों का, शपथ है तेरी माँ की पगले, गर है मानव चेतन तुझमे, रक्त धार है बहती तुझमे बेटी को कर निर्भय पगले, दैत्य नहीं तू नर है पगले, बेटी तो होती है बेटी, अपनी हो या और किसी की, कर हर बेटी का सम्मान, पशु न बन तू ऐ इंसान, हे माँ ! Jugunoo
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04-09-2013, 09:46 PM | #2 |
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Re: चिंतनीय एवम सोचनीय प्रश्न
मार्मिक!
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05-09-2013, 08:07 AM | #3 |
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Re: चिंतनीय एवम सोचनीय प्रश्न
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