22-05-2014, 10:59 PM | #1 |
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अध्यात्म: मनीषी की लोकयात्रा
(श्रेय: मदन शर्मा) डॉ. भगवती प्रसाद सिंह ने महामहोपाध्याय पं. गोपीनाथ कविराज के जीवन दर्शन पर एक पुस्तक की रचना की है ‘मनीषी की लोकयात्रा’। इसमें एक अध्याय ‘तत्त्व-विचार’ के अन्तर्गत ‘एक परलोकगत आत्मा का अनुभव वर्णन’ में कविराज जी के सम्फ में आई एक बंगाली महिला मग्नमयी देवी के दिवंगत पति बंकिम बाबू की आत्मा द्वारा लोक लोकान्तर में प्रत्यक्ष देखी हुई वस्तुओं और व्यक्तियों का वर्णन अपनी पत्नी को लिखवाये जाने का विवरण है। जो बडा दिलचस्प है। लिखा है – जब मेरी आत्मा देह से विच्छिन्न हो बाहर आकर खडी हो गई, तब हमने देखा कि कितनी ही ज्योतिर्मय आत्माएँ मेरे लिए उस लोक में प्रतीक्षा कर रही है।...मैं भी तैरता हुआ आलोक के देश में चलने लगा। नीचे झाँककर देखा, किसी को देख नहीं पाया। जो आत्माएँ मुझे ले जा रही थी, जाते-जाते कहा चलो, तुमको एक इतिहास प्रसिद्ध आत्मा के दर्शन कराएँ। मैं उनके साथ आकाश मण्डल में और ऊपर उठने लगा। कोटि कोटि सूर्य चन्द्र उचित होने पर भी कदाचित् इतना प्रकाश ना हो, जितना उस देश में है। घर, पेड, पक्षी, मनुष्य सभी आलोकमय जिधर दृष्टि डालता हूँ, उधर ही देवगण, आत्मागण, योगिनीवेष में स्त्र्यिाँ, सभी धर्म चर्चा कर रहे हैं। पृथ्वी की अपेक्षा यह अनंतधाम कितना अधिक शांतिमय है।...यहाँ विभिन्न प्रकार के देश हैं। यहाँ विभिन्न आत्माओं की श्रेणियाँ बंटी हुई हैं। उनमें रहने वालों की अवस्था कैसी है, यह समझना कठिन है। द्वितीय श्रेणी की आत्माओं की संख्या अधिक है। नाना प्रकार के पाप पुण्य का दण्ड भोगादि यहीं होता है।...हम लोग पुष्प के बिछौने और पुष्प के तकियों पर विश्राम करते हैं। यहाँ फल फूलों से वृक्ष सदा अवनत रहते हैं। इस लोक में निद्रा नहीं है।
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22-05-2014, 11:00 PM | #2 |
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Re: अध्यात्म: मनीषी की लोकयात्रा
पृथ्वी में सूर्योदय और सूर्यास्त के समय जैसा रक्तिम प्रकाश चतुर्दिक होता है। यहाँ का स्निग्धशीतल आलोक हम लोगों को प्रीति देता है। ज्योतिर्मय महापुरुष महात्मा रामकृष्णदेव कभी-कभी आकर धर्मज्ञान भक्ति विषयक उपदेश देते हैं।...यहाँ जो महात्मा लोग हैं, उनकी कार्यावली अद्भुत है। एक-एक समय एक-एक प्रकार का परिवर्तन देखते हैं। उनके सभी कार्यकलापों का मैं वर्णन नहीं कर सकता।...मृत्यु के बाद सब समाप्त नहीं होता। आत्मा रहती है। धर्म जीवन होने पर उसका शक्तिलोक में वास होता है और परम शांति मिलती है।
मृत्यु व मृत्यु पश्चात् परलोक के बारे में स्वामी अभेदानन्द जी का अध्ययन और अनुभूति बडी गहरी है। इस विषय पर विश्वभर में उनके भाषण हुए हैं। उन्होंने पुस्तक की रचना भी की है, Life Beyond Death ‘लाइफ बियोण्ड डैथ’ (मृत्यु के पार)। इस पुस्तक में एक स्थान पर उन्होंने लिखा है ‘मृत्यु पार का देश बडा रहस्यमय है - जहाँ न सूर्य है, न चन्द्र और न ही नक्षत्र्। इस देश में स्थूल कुछ भी नहीं है। वहाँ केवल सूक्ष्म भावना एवं सूक्ष्म चिन्ता का राज्य है। इस चिन्ता राज्य को ही मनोराज्य अथवा स्वप्नराज्य कहते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि रूप, रस, गंध, शब्द, स्पर्श का जो स्थूल भोग जगत् है जिसमें इंसान अपनी इन्द्रियों के माध्यम से उनका भोग करता है, मृत्यु होने पर परलोक गमन कर वहाँ भी विश्व की समस्त वस्तुओं के सूक्ष्म संस्कारों का भोग करता है।’’
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22-05-2014, 11:01 PM | #3 |
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Re: अध्यात्म: मनीषी की लोकयात्रा
मुसलसल साँसों का सफर। सफर के दो छोर। आगाज जन्म, अन्त मृत्यु। किन्तु मृत्यु के बाद क्या ? पुनर्जन्म ? या मृत्यु और पुनर्जन्म के मध्य कोई विश्राम ? और विश्राम कहाँ ? क्या इस भूलोक के अतिरिक्त भी ऐसा ही कहीं कोई लोक है ? आज तक इस शाश्वत प्रश्न का निश्चित उत्तर शेष है। उत्तर मिलता भी है तो महाग्रन्थों से। मनीषियों के अपने अनुभवों से। किन्तु किसी ने भी मृत्यु लोक से लौटकर आज तक मृत्यु के बाद का निश्चित उत्तर नहीं दिया है। परलोक का विवरण कहीं सत्य-सा प्रगट होता है तो कहीं शंका। कहीं कल्पना है तो कहीं कर्मफल। हर धर्म समुदाय जातियों की अपनी-अपनी मान्यता। अपनी-अपनी कल्पना। मृत्यु के बाद का लोक किसी की जन्नत है तो किसी का स्वर्ग।
जन्म लेने के पश्चात् हर प्राणी की अन्तिम नियति भले ही एक हो, किन्तु मृत्यु के बाद की नियति अलग-अलग है। संसार के अलग-अलग देशों के धार्मिक ग्रंथों और पवित्र् पुस्तकों में उसका अलग-अलग वर्णन है जो बडा दिलचस्प है। कुछ धर्मों को छोडकर अधिकतर धर्मों ने मृत्यु के पश्चात् आत्मा के अस्तित्व को स्वीकार किया है। भारत के अतिरिक्त यदि हम संसार की प्राचीनतम संस्कृतियों जैसे मिस्र, वेबिलान, चेलिडिया, ग्रीक या रोमन की बात करें तो उनके धार्मिक ग्रंथों में स्वर्ग और नरक की कल्पनाएँ अलग-अलग हैं।
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22-05-2014, 11:03 PM | #4 |
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Re: अध्यात्म: मनीषी की लोकयात्रा
ईसा से तीन हजार वर्ष पूर्व भी मिस्र में यह कहावत थी कि ‘आत्मा स्वर्ग जायेगी और शरीर पृथ्वी में जायेगा।’ इसी समय से मृत शरीर को औषधियों द्वारा संरक्षित रखने की प्रथा विश्व में प्रचलित हुई। इसके पीछे मिस्रवासियों की मूल धारणा यह थी कि स्थूल शरीर के किसी अंग के विकृत होने पर मृत आत्मा का भी वही अंग विकृत हो जाता है इसीलिये मिस्रवासी कब्र में मृत देह को अक्षत भाव से सुरक्षित रखने की चेष्टा करते थे। उनका यह भी विश्वास था कि पुण्यात्मा स्वर्ग जाती है तथा देवताओं के साथ रहकर खाद्य एवं पानी ग्रहण करती है। स्वर्ग में ये आत्माएँ रेशमी वस्त्र् और सफेद जूते पहनकर स्वर्ग के शक्तिमय क्षेत्र् में विचरण करती रहती हैं। स्नान आदि के लिये वहाँ अनेक नदी-सरोवर हैं। उनकी धारणा थी कि जो सुख पृथ्वी पर उपलब्ध है, वे सभी मिस्रवासियों को स्वर्ग में उपलब्ध थे।
ग्रीक सभ्यता के स्वर्ग को ‘इलिसियान फील्ड’ के नाम से सम्बोधित किया गया था। उनकी भी धारणा थी कि पुण्यात्मा मृत्यु के पश्चात स्वर्ग जाती है। स्वर्ग में वे वही कार्य करती है जिनका अभ्यास उन्ह पृथ्वी पर होता है। आत्माएँ वहाँ पर अपने स्वामी, पत्नी, माता-पिता बन्धु-बांधव आदि जिनकी मृत्यु हो चुकी है, उनके साथ रहकर अनन्तकाल तक सभी सुखों का उपभोग करती है। स्केण्डिनेविया वासियों में स्वर्ग ‘भालला’ के नाम से जाना जाता था। इस सभ्यता के निवासी युद्धप्रिय और योद्धा होते थे। उनकी धारणा थी कि मृत्यु के पश्चात उनकी आत्मा भोला के स्वर्ग देवता ओडिन के पास अस्त्र्-शस्त्र् लेकर जाती है। वहाँ वे शत्रु से युद्ध करती है। उसके योद्धा जख्मी होते हैं। किन्तु ओडिन देवता की शक्ति के चमत्कार से वे पुनः ठीक हो जाते हैं। यह युद्ध वहाँ निरन्तर चलता रहता है। वहाँ यह लोग वन शूकर का शिकार कर एक बडे भोज का आयोजन करते हैं। युद्ध और भोज निरन्तर अनन्त काल तक चलते रहते हैं।
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23-05-2014, 08:23 AM | #5 |
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Re: अध्यात्म: मनीषी की लोकयात्रा
स्वर्ग के बारे में अमेरिकन नीग्रो की धारणाएँ कुछ भिन्न थीं। चूँकि वे शिकार करने के शौकीन हुआ करते थे। इसलिए उनका स्वर्ग एक सुखकर शिकारगाह था, जहाँ वे निरन्तर शिकार करते रहते थे।
प्राचीन यहूदी जातियों के लोग मृत्यु के पश्चात् आत्मा के अस्तित्व में विश्वास नहीं करते थे। उनकी मान्यता थी कि उनके देवता ‘जिहोवा’ से प्राण वायु प्राप्त होती है और मृत्यु हो जाने के उपरान्त वह प्राण वायु जिहोवा में ही समाहित हो जाती है। किन्तु ईसा मसीह के पश्चात् पारस देश के अधिवासियों के सम्फ में आने पर इन्होंने मृत्यु के पश्चात आत्मा के अस्तित्व में विश्वास जताना प्रारम्भ कर दिया था। पारस के अधिवासी जरथुष्ट्र धर्मावलम्बी थे। उनका आत्मा में यकीन था। उनका विश्वास था कि मृत्यु के चौथे दिन प्रातःकाल को सभी की आत्मा कब्र त्याग कर उठती है, जो पुण्य आत्माएँ होती हैं वे स्वर्ग जाती हैं। उनकी मान्यताएँ नरक के बारे में भी थीं। उनका मानना था कि दुष्ट आत्माएँ नरक में जाती हैं। जहाँ उन्हें यातनाएँ मिलती हैं।
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23-05-2014, 08:26 AM | #6 |
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Re: अध्यात्म: मनीषी की लोकयात्रा
जन्नत या स्वर्ग के बारे में मुस्लिम सम्प्रदाय की मान्यताएँ भी बडी दिलचस्प हैं। उनका मानना है कि जो शख्स अल्लाह का हुक्म मानकर चलते हैं वे बहिश्त यानी स्वर्ग में जाते हैं। उनके स्वर्ग में घने छायादार पेड हैं, जहाँ साफ जल की नदियाँ हैं। वहाँ दूध, शहद और शराब की नदियाँ भी निरन्तर बहती रहती हैं, वहाँ बहुत खूबसूरत हूरें या परियाँ हैं। वे हूरें साकी होकर पुण्यात्माओं को छककर शराब पिलाती रहती हैं और उनके साथ विहार करती हैं।
बौद्ध मतावलम्बियों की धारणा भी स्वर्ग के बारे में कुछ ऐसी ही हैं। उनका मानना है कि ‘‘स्वर्ग एक ऐसा लोक है जहाँ ब्रह्मज्ञान को उपलब्ध व्यक्ति ब्राह्मण या ब्रह्मा जो भी नाम देना चाहो, उसे प्राप्त होता है। उस लोक का नाम ‘आभास्वर’ है। वहाँ कोई स्थूल भोजन नहीं करता। वहाँ लोग प्रेम का ही भोजन करते हैं। तुम कहते हो ना कभी कभी प्रीतिभोज दिया। वही प्रीतिभोज चलता है। तुम तो कहते भर हो प्रीतिभोज, किन्तु खिलाते हो वही स्थूल चीजें। सही अर्थों में प्रीतिभोज वहीं होता है, वहाँ प्रेम ही एक मात्र् भोजन है। वही एकमात्र् पोषण है, सूक्ष्म देह का। सुप्रसिद्ध विचारक जे. कृष्णामूर्ति गहन आध्यात्मिक अनुभूतियों से गुजरे हैं। उनकी प्रसिद्ध पुस्तक है - ‘फ्रीडम फ्राम द नोन’ (Freedom From The Known)। मृत्यु और उसके बाद की अवस्था के बारे में उनके विचार हैं, ‘‘आप उस चीज का सामना करने से डरते हैं जिसे मृत्यु कहा जाता है। मृत्यु है क्या चीज, यह आपको पता नहीं है। आपने इस सम्बन्ध में केवल आशाएँ और सिद्धान्त इकट्ठे कर रखे हैं। आप पुनर्जन्म या आत्मा के अस्तित्व में विश्वास करते हैं। जो देश और काल से परे एक आध्यात्मिक सत्ता मानी जाती है। मरने के बाद क्या होता है ?
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23-05-2014, 08:28 AM | #7 |
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Re: अध्यात्म: मनीषी की लोकयात्रा
यह जानने का वस्तुतः एक ही उपाय है कि आप मर जाएँ। शारीरिक रूप से नहींबल्कि मनोवैज्ञानिक रूप से। मरने का अर्थ है मन का पूर्णतः शून्य हो जाना। खाली हो जाना। अपनी प्रतिदिन की आकांक्षाओं सुखों-दुखों से खाली हो जाना। मृत्यु एक रूपान्तरण एक नवीनीकरण है, जहाँ विचार का अस्तित्व नहीं होता, क्योंकि विचार पुराना है। जहाँ मृत्यु है वहीं कुछ नया जन्म लेता है। ज्ञात से मुक्ति ही मृत्यु है और तब आपका जीना प्रारम्भ होता है।’’
भारत के प्राचीनतम ग्रंथ ऋग्वेद में मरणोपरान्त सत्ता की बात स्पष्ट रूप से वर्णित है। वेदों में ऐसे अनेक अनुच्छेद हैं। इनम कहा गया है कि मृत्यु के बाद सूक्ष्म आत्मा जहाँ जाती है, उसे पितृलोक कहते हैं। जिसके राजा यम हैं जो पहले मनुष्य थे, परन्तु वहाँ जाकर अमर हो गये। प्राचीन आर्य व हिन्दू केवल एक ही स्वर्ग में विश्वास करते हैं जिसे ब्रह्मलोक कहा जाता है, अर्थात् प्रजापति ब्रह्मा का राज्य। जो लोग शुभ कर्म करते हैं वे अपने शुभ कर्मों के कर्मफल भोगने तक वहीं रहते हैं। तत्पश्चात् अपनी कामना एवं कर्म के अनुसार इसी पृथ्वी पर जन्म लेते हैं, उनका यह भी विश्वास है कि चन्द्रलोक में पूर्व पुरुषों की प्रेतात्मा रहती है तथा चन्द्रमा से ही पृथ्वी पर प्राणों का बीज आता है। कर्मफल के समाप्त हो जाने पर सूक्ष्म अदृश्य शरीर आकाश से वायु में प्रवेश करता है। वायु से बादलों में, फिर वृष्टि के जल के साथ पृथ्वी पर आकर किसी खाद्य पदार्थ के साथ मनुष्य के शरीर में प्रवेश कर पुनः जन्म ग्रहण कर लेता है। अपना-अपना धर्म, अपनी-अपनी आस्थाएँ, अपनी-अपनी धारणाएँ। किन्तु एक बात स्पष्ट है कि लगभग सभी धर्म मृत्यु के बाद आत्मा के अस्तित्व एवं परलोक में विश्वास व्यक्त करते हैं। सत्य क्या है ? यह तो मृत्यु के बाद की अनुभूति ही बता सकती है कि परलोक या स्वर्ग का कहीं अस्तित्व है या नहीं ? या यह मनुष्य के जीवन में अभावों से निर्मित उसकी इच्छाओं का केवल फलपुंज है ? **
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23-05-2014, 06:00 PM | #8 |
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Re: अध्यात्म: मनीषी की लोकयात्रा
श्री महामहोपाध्याय पं. गोपीनाथ कविराज के जीवन दर्शन की रचना "मनीषी की लोकयात्रा" अध्यात्म मार्ग के राही के लीये यह सुंदर पथप्रदर्शक हें, ऐसे गम्भीर विषय पर सूत्र बनाने के लीये आपका हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ........
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23-05-2014, 09:00 PM | #9 |
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Re: अध्यात्म: मनीषी की लोकयात्रा
अच्छा सूत्र हें.
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23-05-2014, 10:02 PM | #10 | |
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Re: अध्यात्म: मनीषी की लोकयात्रा
Quote:
^^ ^ पं. गोपीनाथ जी कविराज के सम्मान में जारी डाक टिकट तथा एक पुस्तक कवर ^ पूज्य पं. गोपीनाथ जी कविराज भारतीय दर्शन के प्रकांड विद्वान् और ज्ञान-विज्ञान, परालौकिक ज्ञान तथा तंत्र-मंत्र के चलते फिरते विश्वकोश थे. वे कई प्रकार की सिद्धियों के प्रामाणिक प्रदर्शन कर सकते थे जैसे जैसे एक स्थान पर बैठे बैठे दूसरे स्थान पर जा कर उपस्थित होना और वहां की खबर लाना. लेकिन उन्होंने सस्ती लोकप्रियता के लिये चमत्कारों का कभी सहारा नहीं लिया. मुझे खुशी है कि आप भी उनके बारे में जानकारी रखते हैं और उनमे श्रद्धा रखते हैं. बहुत बहुत धन्यवाद.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) Last edited by rajnish manga; 23-05-2014 at 10:05 PM. |
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