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Old 07-10-2014, 09:29 AM   #1
rsmahanti
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Default कोई मुझे इस अनुच्छेद का अर्थ समझाएगा ?

मौत से लड़ना कोई मामूली काम नहीं है | ईश्वर ने तो मौत पैदा की ही थी, पर मौत तो मनुष्य भी पैदा करता है .............. एक तरफ जीवन के लिए लड़ता है और दूसरी तरफ मौत भी बाँटता है - यह द्वंद्व ही तो जीवन है ......... यह द्वंद्व और द्वैत ही जीवित रहने की शर्त है और अद्वैत या समानता तक पहुँचने का साधन और आदर्श भी | आध्यात्मिक अद्वैत जब भौतिकता की सतह पर आता है और मनुष्य के प्रश्न सुलझाता है तभी तो वह समवेत समानता का दर्शन कहलाता है .........

मनुष्य जीवन के लड़ता है तथा साथ में मौत भी बाँटता है यह तो समझ में आता है पर यह जीवन का द्वंद्व कैसे है ? यह समझ नहीं आ रहा | उसके बाद का तो कुछ भी समझ नहीं आ रहा | द्वंद्व और द्वैत को यहाँ किस अर्थ में प्रयोग किया है ? उसको अद्वैत से कैसे जोड़ा है , कुछ समझ में नहीं आ रहा | कोई हिंदी का विद्वान उपरोक्त अनुच्छेद की व्याख्या कर देगा मेरे लिए ? हृदयपूर्वक आभार रहेगा |
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Old 07-10-2014, 10:02 AM   #2
Rajat Vynar
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Talking Re: कोई मुझे इस अनुच्छेद का अर्थ समझाएगा ?

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मौत से लड़ना कोई मामूली काम नहीं है | ईश्वर ने तो मौत पैदा की ही थी, पर मौत तो मनुष्य भी पैदा करता है .............. एक तरफ जीवन के लिए लड़ता है और दूसरी तरफ मौत भी बाँटता है - यह द्वंद्व ही तो जीवन है ......... यह द्वंद्व और द्वैत ही जीवित रहने की शर्त है और अद्वैत या समानता तक पहुँचने का साधन और आदर्श भी | आध्यात्मिक अद्वैत जब भौतिकता की सतह पर आता है और मनुष्य के प्रश्न सुलझाता है तभी तो वह समवेत समानता का दर्शन कहलाता है .........

मनुष्य जीवन के लड़ता है तथा साथ में मौत भी बाँटता है यह तो समझ में आता है पर यह जीवन का द्वंद्व कैसे है ? यह समझ नहीं आ रहा | उसके बाद का तो कुछ भी समझ नहीं आ रहा | द्वंद्व और द्वैत को यहाँ किस अर्थ में प्रयोग किया है ? उसको अद्वैत से कैसे जोड़ा है , कुछ समझ में नहीं आ रहा | कोई हिंदी का विद्वान उपरोक्त अनुच्छेद की व्याख्या कर देगा मेरे लिए ? हृदयपूर्वक आभार रहेगा |
हिंदी के विद्वानों को चरने के लिए साहित्य की अच्छी और उत्कृष्ट हरी-हरी घास डालने के लिए हार्दिक आभार स्वीकार कीजिए. मैं बहुत सब्र से काम लेता हूँ. लालची बिलकुल नहीं हूँ. इसलिए पहले दूसरों को इस घास को चरने का मौका देता हूँ. सबके चरने के बाद जो भी रूखी-सूखी घास बचेगी वह मैं आकर गधे की तरह चर जाऊँगा.
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Old 07-10-2014, 10:17 AM   #3
Rajat Vynar
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Talking Re: कोई मुझे इस अनुच्छेद का अर्थ समझाएगा ?

साहित्य की हरी-हरी घास बाँटने के लिए ५१ पॉइंट्स नगद इनाम मेरी और से.
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Old 07-10-2014, 12:10 PM   #4
rajnish manga
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Default Re: कोई मुझे इस अनुच्छेद का अर्थ समझाएगा ?

हिंदी का कोई विद्वान यहाँ आ कर श्रीमान rsmahanti की इस पहेली को हल करना चाहे तो उसका स्वागत है.
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Old 07-10-2014, 04:04 PM   #5
rsmahanti
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Default Re: कोई मुझे इस अनुच्छेद का अर्थ समझाएगा ?

पॉइंट्स के लिए धन्यवाद रजत जी | काफी दिनों से यह अनुच्छेद मुझे परेशान कर रहा है | मुझे उम्मीद है कि इस फोरम में आप लोगों की सहायता से यह परेशानी हल हो जाएगी |
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Old 07-10-2014, 11:06 PM   #6
rsmahanti
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rsmahanti is on a distinguished road
Default Re: कोई मुझे इस अनुच्छेद का अर्थ समझाएगा ?

लगता है अभी मुझे और इंतज़ार करना पड़ेगा |
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Old 08-10-2014, 01:25 AM   #7
Arvind Shah
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Default Re: कोई मुझे इस अनुच्छेद का अर्थ समझाएगा ?

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Originally Posted by rsmahanti View Post
मौत से लड़ना कोई मामूली काम नहीं है | ईश्वर ने तो मौत पैदा की ही थी, पर मौत तो मनुष्य भी पैदा करता है .............. एक तरफ जीवन के लिए लड़ता है और दूसरी तरफ मौत भी बाँटता है - यह द्वंद्व ही तो जीवन है ......... यह द्वंद्व और द्वैत ही जीवित रहने की शर्त है और अद्वैत या समानता तक पहुँचने का साधन और आदर्श भी | आध्यात्मिक अद्वैत जब भौतिकता की सतह पर आता है और मनुष्य के प्रश्न सुलझाता है तभी तो वह समवेत समानता का दर्शन कहलाता है .........

मनुष्य जीवन के लड़ता है तथा साथ में मौत भी बाँटता है यह तो समझ में आता है पर यह जीवन का द्वंद्व कैसे है ? यह समझ नहीं आ रहा | उसके बाद का तो कुछ भी समझ नहीं आ रहा | द्वंद्व और द्वैत को यहाँ किस अर्थ में प्रयोग किया है ? उसको अद्वैत से कैसे जोड़ा है , कुछ समझ में नहीं आ रहा | कोई हिंदी का विद्वान उपरोक्त अनुच्छेद की व्याख्या कर देगा मेरे लिए ? हृदयपूर्वक आभार रहेगा |
मित्र यहां जीवन शब्द को दो अर्थो में बताया गया है —
पहला अर्थ — मृत्यु के विलोम के रूप में अर्थात जिवित
दूसरा अर्थ — खट्टे मिठे अहसासों के साथ एक जिवित प्राणी जो जीता है उसे जीवन कहा है ।

जीवित रहने के लिए एडी—चोटी का जोर लगाते हुए प्रयासरत रहना, साम—दाम—दण्ड—भेद द्वारा पूर्ण रूप से जीवित रहने में लगे रहना और मृत्यु को अनवरत परास्त करने के सम्मीलित प्रसास को ही द्वन्द या संघर्ष कहा गया है !....और इसी को द्वैत कहा गया है!

द्वैत और अद्वैत को सम्पूर्ण रूप से समझने के लिए तो यहां बहुत सारा लिखना पड़ेगा !

...पर संक्षेप में बताता हूं—

द्वैत और अद्वैत एक ही धागे के दो सिरे है , भाव का प्रकटीकरण द्वैत में होता है और अद्वैत में भाव बीज रूप में रहता है ।

दूसरे रूप में जो कुछ भैतिकिय रूप में सम्पन्न होता है वो द्वैत है और जो कुछ मानने के अर्थ में (अंगेजी के सपोज शब्द)लिया जाता है वो अद्वैत है ।

इसको एक और उदाहरण से समझते है —

" नदी तब तक नदी है जब तक दो किनारो से बंधी चल रही है , जैसे ही दो किनारो कि सीमाए समाप्त हुई वो सागर बन गयी। " यानि कि पूर्ण हो गयी अद्वैत को उपलब्ध हो गयी।

मतलब जब तक नदी दो किनारों से बधी होती है तब तक ही भोतिकिय रूपमें जानी और समझी जाती है सागर में मिलने के बाद नहीं !

आप द्वारा प्रस्तुत पेरे में द्वेत और अद्वैत का अर्थ यही है कि बिना द्वैत के अद्वैत को कोई मुल्य नहीं है ।

यहाँ मतलब ये है कि व्यक्ति कि बुद्धिगत आस्था शरण कहाँ पाती है , किसी की द्वैत में तो किसी की अद्वैत में। किसी कि अजान में तो किस कि कर्मकांड में। जो अद्वैत में डूब गया वो सूफी कलाम बन गया , मीरा के गीत बन गया।

मीरा ने कृष्णा से प्रेम करके द्वैत भाव बना दिया तो कबीर ने उस परम में अपनी लौ लगा के द्वैत में प्रवेश कर लिया , यानि की पूर्ण अद्वैत का अर्थ है दो का स्थान ही न रहना; पूर्ण ऊर्जा बन जाना। उस की ऊर्जा में मिलकर एकाकार हो जाना।
इस अर्थ में गहन से गहन अभ्यासी भी द्वैत में ही जी रहा है। ५ तत्व से निर्मित शरीर की सीमाओ में अद्वैत सम्भव ही नहीं। बस फर्क सिर्फ आस्था का है विश्वास का है और माध्यम का है ,अपने एक अर्थ द्वैत में व्यक्ति आस्था के माध्यमो में घिरे दीखते है जिसमे मूर्तियां मंदिर मस्जिद चर्च आदि शामिल है और दूजे अर्थ में बिना माध्यम के इस अभिव्यक्ति रुपी गंगा को बहने का रास्ता मिल जाता है जिनको सूफी , संत , बाउल आदि आदि नामो से जाना जाता है।

(उपर का कुछ पेरा समझाने के लिए नेट से लिया है)
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Old 08-10-2014, 04:50 PM   #8
rsmahanti
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rsmahanti is on a distinguished road
Default Re: कोई मुझे इस अनुच्छेद का अर्थ समझाएगा ?

मैं ठीक से समझा नहीं |

एक तरफ जीवन के लिए लड़ता है दूसरी तरफ मौत भी बाँटता है - यह द्वंद्व ही तो जीवन है |
उपरोक्त वाक्य में मौत बांटने से तात्पर्य मानव द्वारा फैलाई जा रही हिंसा से है ऐसा मेरा अनुमान है | एक तरफ जीवन के लिए लड़ना दूसरी तरफ हिंसा करना यह जीवन का द्वंद्व कैसे होता हो सकता है ? यह मनुष्य का विरोधाभासी स्वभाव है | पर जीवन का द्वंद्व कैसे है ? द्वंद्व शब्द को यहाँ किस अर्थ में प्रयोग किया गया है ?
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Old 08-10-2014, 09:19 PM   #9
Rajat Vynar
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Talking Re: कोई मुझे इस अनुच्छेद का अर्थ समझाएगा ?

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Originally Posted by rsmahanti View Post
मैं ठीक से समझा नहीं |

एक तरफ जीवन के लिए लड़ता है दूसरी तरफ मौत भी बाँटता है - यह द्वंद्व ही तो जीवन है |
उपरोक्त वाक्य में मौत बांटने से तात्पर्य मानव द्वारा फैलाई जा रही हिंसा से है ऐसा मेरा अनुमान है | एक तरफ जीवन के लिए लड़ना दूसरी तरफ हिंसा करना यह जीवन का द्वंद्व कैसे होता हो सकता है ? यह मनुष्य का विरोधाभासी स्वभाव है | पर जीवन का द्वंद्व कैसे है ? द्वंद्व शब्द को यहाँ किस अर्थ में प्रयोग किया गया है ?
मैं पहले ही समझ रहा था कि आपको समझ में नहीं आएगा. द्वैत और अद्वैत जैसे शब्दों के जाल में उलझाकर एक साधारण विषय को अत्यधिक गूढ़ (mystic) बना दिया गया है. द्वैत शब्द तो कुछ लोगों को दैत्य सरीखा भयानक और खतरनाक लग रहा होगा, जबकि ऐसा बिलकुल नहीं है. ऐसे विश्लेषण (analysis)से क्या लाभ जब विश्लेषण दिए गए गद्यांश (Prose Passage) से भी कठिन प्रतीत हो और विश्लेषण करने का मूल उद्देश्य ही समाप्त हो जाए. कोई बात वैज्ञानिकों की भाषा में उस क्षेत्र के वैज्ञानिकों को ही समझाना अच्छा लगता है. आम लोगों के लिए तो विश्लेषण इतना सरल और सुबोध होना चाहिए कि एक रिक्शेवाला भी पढ़कर एक घंटा तक वाह-वाह करने करे. अब उपरोक्त गद्यांश (Prose Passage) की हर पंक्ति का विश्लेषण सरल भाषा में करते हैं जिससे सभी लोग लाभान्वित हो सकें. गद्यांश का सबसे पहला वाक्य है- ‘मौत से लड़ना कोई मामूली काम नहीं है’. इसका अर्थ स्पष्ट है. आगे लिखा है- ‘ईश्वर ने तो मौत पैदा की ही थी, पर मौत तो मनुष्य भी पैदा करता है’. गद्यांश को समझाने के उद्देश्य से यहाँ पर ‘मनुष्य’ शब्द को बदलकर एक कहानी की नायिका का नाम ‘मानवी’ कर देते हैं. अब इसका अर्थ हुआ- भगवान तो मौत देता ही है लेकिन मानवी भी मौत देती है. गद्यांश में आगे लिखा है- ‘एक तरफ जीवन के लिए लड़ताहै और दूसरी तरफ मौत भी बाँटता है.’ गद्यांश को समझाने के उद्देश्य से यहाँ पर यह समझकर चलते हैं कि कहानी के नायक का नाम जीवन है. अब इस वाक्य का अर्थ हुआ- कहानी की नायिका मानवी जहाँ पर एक जीवन का प्रेम पाने के लिए बेताब रहती है वहीँ पर दूसरी और जीवन को जान से मारने के लिए भी तत्पर रहती है. गद्यांश में आगे लिखा है- ‘यह द्वंद्वही तो जीवन है’. इसका वाक्य का अर्थ हुआ- मानवी का यह बहुरूप ही कहानी का द्वंद्व (conflict) है जिसके कारण कहानी का नायक जीवन जीवित है. गद्यांश में आगे लिखा है- ‘यह द्वंद्व और द्वैत ही जीवित रहने की शर्त है और अद्वैत या समानता तकपहुँचने का साधन और आदर्श भी’. इसका वाक्य का अर्थ हुआ- मानवी का दोहरा व्यक्तित्व (द्वैत) रूपी कहानी का द्वंद्व ही कहानी के नायक जीवन के जिंदा रहने का कारण है क्योंकि जिंदा रहने पर ही यह पता चल पाएगा कि मानवी का वास्तविक एकल स्वरूप अर्थात अद्वैत क्या है? इसलिए जीवित रहने को अद्वैत अर्थात मानवी के वास्तविक रूप को समझने का साधन और आदर्श बताया गया है. गद्यांश में आगे लिखा है- ‘आध्यात्मिक अद्वैत जब भौतिकता की सतह पर आताहै और मनुष्य के प्रश्न सुलझाता है तभी तो वह समवेत समानता का दर्शनकहलाता है’. आध्यात्मिक अद्वैतसे यहाँ पर तात्पर्य है- ‘रहस्यमयी एकल स्वरूप’ और भौतिकता की सतह पर आने से तात्पर्य है- ‘यथार्थ के धरातल पर उतरना’ अर्थात ‘आमना-सामना होना’. अतः इस वाक्य का अर्थ हुआ- मानवी के दोहरे स्वरूप से जब जीवन का आमना-सामना होगा तभी मानवी के रहस्यमयी दोहरे स्वरूप में से वास्तविक एकल (इकलौता) स्वरूप सामने आकर जीवन के मस्तिष्क में उठ रहे सारे प्रश्नों को सुलझा देगा, इसीलिए यह दोनों का एक साथ होकर एक-दूसरे के वास्तविक मधुर एवं सौम्य स्वरूप का दर्शन कहलाता है. देखा आपने- गद्यांश के फिल्मीकरण की प्रक्रिया के पश्चात द्वैत-अद्वैत और समवेत समानता के दर्शन को समझना कितना आसान हो गया!
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Old 08-10-2014, 11:43 PM   #10
rajnish manga
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मित्र rsmahanti के मन का द्वंद्व यदि अभी तक न दूर हुआ हो तो मेरा उन्हें परामर्श है कि वह कमलेश्वर की कहानी ''चप्पल' को मनोयोगपूर्वक पढ़ें जहाँ से उक्त गद्यांश लिया गया है. कहानी के एक एक शब्द, एक एक प्रसंग, एक एक पात्र और कथानक को आगे बढ़ाने वाले सूत्र पर मनन करते हुये दिये गए गद्यांश को समझने का प्रयास करें.


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