09-02-2014, 03:15 PM | #1 |
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तुम रूठे रहे मैं मनाता रहा
चोट सीने पे रोज मैं खाता रहा ! दिए जखम तूने ता उम्र मुझे मैं अपने जखम सहलाता रहा ! रोया हूँ कितना तू ये क्या जाने बाहर से तो बस मुस्कुराता रहा ! एक बेवफा से प्यार की सजा तो हर रोज किश्तो में मैं पाता रहा ! लेकर सीने में गम का गुबार दुनिया को नामदेव हंसाता रहा ! सोमबीर ''नामदेव |
09-02-2014, 08:01 PM | #2 | |
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Re: तुम रूठे रहे मैं मनाता रहा
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
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