24-05-2013, 06:19 PM | #1 |
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माँ- एक एहसास
हर पहाड की बात है वो जो, ऊंचा भी और इठलाता । निकल सके सीना था चीरा, धरती को ना अपनाता ।। जब बीज हुआ तो बढ़ने को, बस माँ का कोख ही काम आया । था दर्द सहा और खून बहा, तब दुनिया में ये नाम आया ।। जब ली थी पहली हिचकी, इस दुनिया में और रोया था । तब कन्धा बस उस माँ का था, रख सर जिसपे वो सोया था ।। पानी में माँ का खून ही था, जिससे "उसको" कभी सींचा था । जब धूप कडी, और झुलसे ना, आँचल आपना तब खींचा था ।। हर किलकारी पे ख़ुशी लुटाती, हर आंसू पे रोती थी । सपने भी उसके हो सुंदर, सोच के वो न सोती थी ।। सांसो की सरगम हाँ माँ की, गीत तो "उसका " होता था । "करनी" थी उसकी, उसकी "मर्जी, वह प्यार न माँ का खोता था ।। अब बढ़ा हुआ, हाँ पर्वत है, पर क्योंकर माँ को भूल गया ? हर छोटी "उसकी" चोट में तो, माँ के सीने था शुल गया ।। आज आगे पीछे लोग जमा, महफ़िल में शोरोगुल होता। पर एक कलेजा ऐसा भी, चुप सिसक-सिसक के जो रोता ।। जिस माँ ने था जनम दिया, वह उसका ही तो इक हिस्सा । फिर काट के कैसे अलग किया? कितना अजीब "इसका" किस्सा ।। हाँ नाम है बेशक दुनिया में, पैसे की सेज पे सोता वो । पर नींद न उसकी आँखों में, लोरी माँ की है खोता वो ।। कुछ और ही मतलब रिश्तों का, जिनको कहता है, वो अपना । बस "मैं" तक सारे सीमित हैं, अपना मकसद,सपना अपना ।। अब सोच रहा अकेले में, हर रिश्ते का जब सच जाना । कंगाल है पाकर सबकुछ वो, इस बात को उसने अब माना ।। जब समझ चुका, क्यों बैठा है? अब देर न कर, जा घर अपने । तू होश में उसके है "कायम", है नींद में भी तेरे सपने ।। मोटी सी उसकी ऐनक में' तस्वीर तू अपनी पाएगा । बस मकसद बूढ़ी आँखों का, तू लौट के वापस आएगा ।। "अनध" तो छोटा, पर कहता, छोटी सी, फिर भी बात बडी । हर दौलत सोहरत बेमानी, जो माँ ना तेरे साथ खड़ी ।। न मतलब मंदिर मस्जिद का, न काशी काबा कiम आये । तीरथ हर पुरे हो जाएँ, जो मन में माँ का नाम आये ।। दान-पुण्य तो लाख वो कर ले, हर नमाज भी अदा करे । पर पाप ना उसके धुलने हैं, जो याद न माँ को सदा करे ।। "अनध"(1) की अर्जी है "ऊपर", वो दुनिया ऐसे सब कर दे । हाँ, नाम रहे उसका लेकिन, पर माँ को भी वो रब कर दे ।। अमिताभ कुमार तिवारी " अनध" |
24-05-2013, 08:45 PM | #2 |
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Re: माँ- एक एहसास
goood poem
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24-05-2013, 08:55 PM | #3 |
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Re: माँ- एक एहसास
सदा मातुर्नमोस्तुऽते ।
अनघ जी, जननी को समर्पित शब्द-सुमन की सु्न्दर बानगी प्रस्तुत करने के लिए आभार । |
24-05-2013, 09:04 PM | #4 |
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Re: माँ- एक एहसास
बन्धु, आपने कविता में एक स्थान पर संकेत (१) अवश्य किया है किन्तु इसका शब्दार्थ नहीं बताया है .... आपके कविनाम 'अनघ' का क्या अर्थ है .... क्या पापरहित है ? यदि उचित समझें तो कृपया अवश्य बताएं ,,,,,,,, धन्यवाद ।
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तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर । परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।। विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम । पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।। कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/ यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754 |
24-05-2013, 11:58 PM | #5 | |
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Re: माँ- एक एहसास
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अमिताभ जी, मैं आपका आभारी हूँ कि आपने ह्रदय की पूरी गहराई से 'मां' का जीवंत शब्द-चित्र बना कर फोरम के अन्य सदस्यों के साथ शेयर किया. इस सुन्दर काव्यात्मक अभिव्यक्ति के लिये मेरा धन्यवाद स्वीकार करें. |
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25-05-2013, 03:11 AM | #6 |
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Re: माँ- एक एहसास
Thanks you all for the appreciation. Anadh is actually one of the names of lord Shiv.
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