20-05-2015, 10:40 PM | #1 |
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अगर चाहो खुशनुमा ज़िन्दगी ...bansi
अपने दिल की बात जान सकते हैं दुसरे की जान सकते नहीं हम सब के पास नाज़ुक सा दिल है पत्थर दिल कोई भी नहीं दिल के ज़ख्म तो दे सकते हैं ज़ख्मों को ठीक कर सकते नहीं रिश्तों से ही तो हम सब हैं क्यूँ कि हम इंसान हैं हैवान नहीं रिश्ते अगर निभायेंगे नहीं तो रिश्ते कायम रख पाएंगे नहीं न करेंगे इज़ज़त एक दुसरे कि तो खुद भी इज़ज़त पा सकेंगे नहीं दुखायेंगे दिल एक दुसरे का तो खुद भी खुश रह पाएंगे नहीं रिश्तों में कड़वाहट घोलेंगे तो रिश्तों में मिठास ला पाएंगे नहीं रिश्तों में मिठास होगी नहीं तो खुशमुना ज़िन्दगी जी पाएंगे नहीं अगर चाहो खुशनुमा ज़िन्दगी तो खुशियां बाँटना भूलना नहीं ‘बंसी’ हम सब इंसान हैं हम में से भगवान् कोई भी नहीं बंसी(मधुर) |
20-05-2015, 10:54 PM | #2 | |
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Re: अगर चाहो खुशनुमा ज़िन्दगी ...bansi
Quote:
bahut sarthak or sahi bat kahi hai aapne is kavita ke madhyam se bansi ji .. bahut bahut badhai .. |
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21-05-2015, 07:12 PM | #3 |
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Re: अगर चाहो खुशनुमा ज़िन्दगी ...bansi
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