09-08-2011, 08:34 AM | #1 |
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ღ॰॰॰ღ मेरी प्यारी प्यारी माँ ღ॰॰॰ღ
आप सभी से सहयोग की आशा रखता हूँ | धन्यवाद सिकंदर
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09-08-2011, 09:02 AM | #2 |
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Re: ღ॰॰॰ღ मेरी प्यारी प्यारी माँ ღ॰॰॰ღ
मेरी बगलों का पसीना
सहमकर उसके ब्लाऊज को भिगोता है - शर्मीले, सीले फूल मेरे पसीने के उसके ब्लाऊज पर। मैं पहनती हूँ उसके प्यास-नीले और जंगल-हरे और जले-संतरे के रंगों को जैसे वे मेरे हों मेरी माँ के रंग मेरी त्वचा पर एक धूल भरे शहर में मैं उसके कपड़ों में चलती फिरती हूँ मन ही मन हंसते हुए, इस बोझ से मुक्त कि आप जो पहनते हैं, वही आप हो जाते हैं: अपनी माँ के कपड़ों में न तो मैं ख़ुद हूँ न माँ हूँ लेकिन कुछ-कुछ उस छह साल की लम्छड सी हूँ जो अपनी उंगलियों पर माँ की सोने की अंगूठियाँ चढा लेती है, बड़ा सा कार्डिगन पहन लेती है - धूप और दूध की गंध से भरा - और प्यार में ऊंघती फिरती है, कमरों में जिनके पर्दे जून की शहद भरी रोशनी के खिलाफ खींच दिये गये हैं
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09-08-2011, 09:05 AM | #3 |
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Re: ღ॰॰॰ღ मेरी प्यारी प्यारी माँ ღ॰॰॰ღ
औरों को बोलने दो उसकी शर्म के बारे में,
मैं तो अपनी शर्म के बारे में बोलता हूँ । ओ जर्मनी, म्लान माँ ! तुम कितनी मैली हो अब जबकि तुम बैठी हो और इतरा रही हो कीचड़ सनी भीड़ में । तुम्हारा सबसे गरीब पुत्र बेजान होकर गिर पड़ा । जब भूख उसकी बर्दाश्त से बाहर हो गई । तुम्हारे अन्य पुत्रों ने अपने हाथ उसके खिलाफ़ उठा दिए । यह तो कुख्यात है । अपने हाथ इस तरह उठा कर, अपने ही भाई के विरुद्ध, वो तुम्हारे चारों तरफ़ घूमते हैं और तुम्हारे मुँह पर हँसते हैं । यह भी सर्वज्ञात है । तुम्हारे घर में दहाड़ कर झूठ बोले जाते हैं लेकिन सच को चुप रहना होगा क्या ऐसा ही है ? क्यों उत्पीड़क तुम्हारी प्रशंसा करते हैं दुनिया भर में, क्यों उत्पीड़ित निंदा करते हैं ? जिन्हें लूटा गया तुम्हारी तरफ़ उंगली उठाते हैं, लेकिन लुटेरा उस व्यवस्था की तारीफ़ करता है जिसका अविष्कार हुआ तुम्हारे घर में ! जिसके चलते हर कोई तुम्हें देखता है अपनी ओढ़नी का किनारा छुपाते हुए, जो कि खून से सना है उसी खून से जो तुम्हारे ही पुत्रों का है । तुम्हारे घर से उग्र भाषणों की प्रतिध्वनि को सुन कर, लोग हँसते हैं। पर जो भी तुम्हें देखता, अपनी छुरी पर हाथ बढ़ाता है जैसे कोई डाकू देख लिया हो । ओ जर्मनी, म्लान माँ ! क्या तुम्हारे पुत्रों ने तुम्हें मज़बूर कर दिया है कि तुम लोगों के बीच बैठो तिरस्कार और भय की वस्तु बन कर !
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09-08-2011, 09:12 AM | #4 |
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Re: ღ॰॰॰ღ मेरी प्यारी प्यारी माँ ღ॰॰॰ღ
सूखी लकड़ियां भीतर पहुंचाते हुए - १.फागू नामक स्थान वाली दिशा २. पहाड़ी शहतूत का वृक्ष ३. मृतक पर संबंधियों द्वारा डाला जाने वाला दो गज वस्त्र ४. रम्भाना
कहती है मां फागू की धूर१ चमक रही है पवन बह रही है कुछ ऐसी रात बरसेगी `यह आकाशवाणी है आगामी चौबीस घंटों में मौसम खुश्क रहेगा’ पर्जन्य ऋचा का पाठ सुनकर सो जाता हूं मैं अलस्सुबह जगाती है भीगी माँ उनींदी आखों कहता है गीला आँगन और कोने खड़ा बूंद-बूंद टपकता कीमू२ रात भर बरसी है माँ पंजे चाटती है बिल्ली पहले झण गुदगुदाता है माँ को अतिथि के आने का सुख दूसरे क्षण सताता है माँ को गाय के बाँझ रहने का दुख डाल पर कुड़कुड़ाता है कौआ अपने ही आप से कहती है माँ काट डालो यह कीमू खबर लाएगा कौआ मसरू३ एक भी नहीं रहा घर में धूर पर टंगी गेरूई बदली देख कुम्हलाते खेत निहारती साँस छोड़ती माँ बस निंबल रहेगा पूरे मास आकाश घिर आते हैं एकाएक सावनी बादल सांवली हो नाचती है धरती माँ की आंखों में उतरने लगती है भीतर चरने लगती है बच्छियों की बाश४ और टूटी सलेट टपक छत की खामोश हो जाती है धरती बादल की बाँहों में उड़ने लगते हैं पक्षी समूह दिशाओं को समेटती कहती है माँ बर्फ गिरेगी जानु-जानु माँ के शब्दों की टेर में गहरी नींद में सो जाता हूं मैं सुबह जागते ही पहले क्षण खुश है माँ आकाश उतर रहा है धरती पर पंखुरी-पंखुरी दूसरे क्षण उदास है माँ घास-पत्ती हाट-घराट सब कुछ छीन लेने को दबे पांव उतरा है आकाश दबती जा रही है धरती इंच-दर-इंच माँ के सुख में दरख्त टूट रहे हैं शाख-दर-शाख माँ के दुख में
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09-08-2011, 09:15 AM | #5 |
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Re: ღ॰॰॰ღ मेरी प्यारी प्यारी माँ ღ॰॰॰ღ
किसको चिन्ता किस हालत में
कैसी है अब माँ सूनी आँखों में पलती हैं धुंधली आशाएँ हावी होती गईं फ़र्ज़ पर नित्य व्यस्तताएँ जैसे खालीपन काग़ज़ का वैसी है अब माँ नाप-नापकर अंगुल-अंगुल जिनको बड़ा किया डूब गए वे सुविधाओं में सब कुछ छोड़ दिया ओढ़े-पहने बस सन्नाटा ऐसी है अब माँ फ़र्ज़ निभाती रही उम्र-भर बस पीड़ा भोगी हाथ-पैर जब शिथिल हुए तो हुई अनुपयोगी धूल चढ़ी सरकारी फाइल जैसी है अब माँ
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09-08-2011, 09:24 AM | #6 |
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Re: ღ॰॰॰ღ मेरी प्यारी प्यारी माँ ღ॰॰॰ღ
माँ नहीं होती है जब
तब वैसे तो कुछ नहीं होता पिताजी ऑफिस जाते है दादी माला फेरती है मनु कॉलेज जाता है... सब कुछ होता है पर जैसै फीका-फीका-सा लगता है बिना शक्कर की चाय जैसा। माँ नहीं होती है जब कोई डाँटता नहीं है, मनु रात को जब देर से लौटता है तब अधीर होकर बार-बार खिडकी से कोई झाँकता नहीं है, घड़ी की सुईयाँ बरछी-तलवार जैसी नहीं हो जातीं, किसी की व्याकुल आँखो से अभी गिरा कि अभी गिरेगा ऐसे अदृश्य आँसुओं की माला नहीं झूलती, गले में अटके हुए रोने की आड़ में डाँट को पीकर कोइ मनु से पूछता नहीं है "थक गया होगा, बेटा, थाली परोस दूँ क्या ?" माँ नहीं होती है जब सुबह वैसे ही होती है पर पूजाघर मैं बैठी दादी को दिये की बाती नहीं मिलती, भगवान को बूँदी के लड्डू का प्रसाद नहीं मिलता, पिताजी को गंजी, बटुआ, चाबी नहीं मिलते, रसोईघर में से छोंक लगाने की ख़ुशबू तो आती है पर उस में जली हुई सब्ज़ी की गंध घुल-मिल जाती है, पंछियों के लिए रखा पानी सूख जाता है पंछी बिना दाने के उड़ जाते हैं और तुलसी के पौधे सूख जाते है... माँ नहीं होती है जब तब वैसे तो कुछ नहीं होता, यानी कुछ भी नहीं होता है।
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09-08-2011, 09:50 AM | #7 |
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Re: ღ॰॰॰ღ मेरी प्यारी प्यारी माँ ღ॰॰॰ღ
माँ!
तुम्हारे सज़ल आँचल ने धूप से हमको बचाया है। चाँदनी का घर बनाया है। तुम अमृत की धार प्यासों को ज्योति-रेखा सूरदासों को संधि को आशीष की कविता अस्मिता, मन के समासों को माँ! तुम्हारे तरल दृगजल ने तीर्थ-जल का मान पाया है सो गए मन को जगाया है। तुम थके मन को अथक लोरी प्यार से मनुहार की चोरी नित्य ढुलकाती रहीं हम पर दूध की दो गागरें कोरी माँ! तुम्हारे प्रीति के पल ने आँसुओं को भी हँसाया है बोलना मन को सिखाया है।
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13-08-2011, 12:16 PM | #8 |
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Re: ღ॰॰॰ღ मेरी प्यारी प्यारी माँ ღ॰॰॰ღ
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14-08-2011, 03:22 PM | #9 |
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Re: ღ॰॰॰ღ मेरी प्यारी प्यारी माँ ღ॰॰॰ღ
Very nice .................
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14-08-2011, 04:40 PM | #10 |
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Re: ღ॰॰॰ღ मेरी प्यारी प्यारी माँ ღ॰॰॰ღ
बहुत बढ़िया.
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