20-06-2013, 12:21 AM | #1 |
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कविवर बिहारी के नीति-परक दोहे
(स्वर्गीय मुंशी देवी प्रसाद ‘प्रीतम’ के उर्दू अनुवाद सहित) 1. जो न जुगुति पिय-मिलन की, धुरि मुकुति-मुख दीन/ जो लहिये संग सजन तो, धरक नरक हू कीन// भावार्थ: ऐसी युक्ति के मुंह में धूल झोंकनी चाहिये, जो प्रीतम से मिलने की युक्ति न बताये. और अगर नरक में भी प्रीतम का साथ मिलता हो तो उसमे जाने का क्या डर? उर्दू नहीं गर यार जन्नत में तो वो नारे जहन्नुम है/ अगर दोज़ख में है प्यारा तो वो जन्नत से क्या कम है// (नारे जहन्नुम = नरक के समान) |
20-06-2013, 12:22 AM | #2 |
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Re: कविवर बिहारी के नीति-परक दोहे
2.
तंत्रिनाद कबित्तरस, सरस राग रति रंग/ अनबूड़े बूड़े तिरे , जे बूड़े सब अंग// भावार्थ: वीणा की झंकार, कविता का रस मधुर राग और प्रीति के रस में जो सर्वांग डूब गये, समझ लो वे ही इस संसार सागर से तर गये. इनके रसों में जो नहीं डूबे, वे वास्तव में भाव सागर में डूब गये समझिये. उर्दू बहारे हुस्ने मौसीकी, मज़ाके शैर मस्ताना/ नहीं डूबे सो डूबे औ’ तरे डूबे जो फरज़ाना// (मौसीकी = संगीत / शैर = कविता) Last edited by rajnish manga; 20-06-2013 at 11:00 AM. |
20-06-2013, 12:23 AM | #3 |
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Re: कविवर बिहारी के नीति-परक दोहे
3.
बसे बुराई जासु तन, ताहि को सनमान/ भलौ-भलौ कहि छोड़िये, खोते ग्रह जप दान// भावार्थ: दुनिया में बुरे का ही आदर होता है. यह अजीब बात है. ग्रह जब शुभ होता है तो उसके लिए न जप करते हैं न दान पुण्य. ऐसा अशुभ ग्रह के लिए ही किया जाता है. उर्दू है दस्तुरे परस्तिश ख़ास अहले फितनाओ शर का/ भले को कह भला छोड़ें व् पूजननहस अख्तर का// (परस्तिश = पूजना / फितनाओ शर का = उत्पात मचाने वाला / नहस = अशुभ / अख्तर = ग्रह) |
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