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ठाडे बिटपर निकट कटिपर कर पीतांबर धारी ।
शंख चक्र दो हात बिराजे गोवर्धन गिरिधारी ॥
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मदन मुरत खुब सुरत बनी हे नटनागर ब्रजवासी ।
अतसीकुसुमसम कांति बिराजत मोर मुगुट गला तुलशी
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भीमाके तट निकट पंढरपुर अजब छत्र सुखदाई ।
टाल बिना और मृदंग बजावत संतनकी बादशाही ॥
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#4 |
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भजन पूजन करिकीर्तन निशिदिनी गावत हरिलीला ।
प्रेमसुखकू लंपट बैठकर पुंडलीक मतवाला ॥
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#5 |
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हमसफ़र जी कबीर के दोहे तो काफी अच्छे है, share करने के लिए थैंक्स.
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#7 |
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छाडे किया बैकुंठसुख हरी भाव भगतका भूका ।
कहत कबीर हरीसे मीठा लागत तुलशी बुका ॥
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#9 |
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भगत पुंडलीक उनोदे खातर बैकुंठ छोड आयो ।
भीमा किनारे पग जोगकर ठारा बीटपर रहायो ॥
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