|
![]() |
#1 |
Diligent Member
![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() |
![]()
सासरौली की बहू
एक छोरा आपणी घर आळी नै ले कै सुसराड़ तैं उल्टा आपणे गाम में जावै था । वो साथ में आपणी घर आळी के लत्त्यां (कपड़ों) का ट्रंक भी ले रहया था । कोसळी रेलवे स्टेशन पै वे रेल की बाट में बैठे थे - एक ताई भी बैठी थी धोरै । ताई उसकी घर आळी गैल बतळावण लाग्गी, बोल्ली - बेटी कित जाओ सो ? बहू बोल्ली - ताई, सासरौली जाणा सै । ताई फिर बूझण लाग्गी - बेटी तू कित की सै ? बहू बोल्ली - ताई, मैं गुडियाणी की सूँ । ताई फेर बोल्ली - बेटी, सासरौली की बहू सै ? न्यूं सुणतीं हें छोरा बोल्या - ताई, जै या सारी सासरौली की बहू सै, तै मैं के खामखाँ यो ट्रंक सिर पै धरीं हांडूं सूं ? |
![]() |
![]() |
![]() |
#2 |
Diligent Member
![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() |
![]()
"चौधरण मर ली"
एक बै एक जाट भाई अपनी एक नई रिश्तेदारी में चल्या गया, साथ में उसका नाई भी था । नई रिश्तेदारी थी, खातिरदारी में फटाफट गरमा-गरम हलवा हाजिर किया गया । दोनूं सफर में थक रहे थे, भूख भी करड़ी लाग रही थी । हलवा आते ही दोनूंआं नै चम्मच भरी और मुंह में गरमा-गरम हलवा धर लिया । ईब इतना गरम हलवा ना निगल्या जा और ना बाहर थूक्या जा ! बुरा हाल हो-ग्या, आंख्यां में आंसू आ-गे । नाई ने हिम्मत करी और बोल्या - "चौधरी, के हुया ?" जाट बोल्या - "भाई, जब घर तैं चाल्या था, तै थारी चौधरण बीमार सी थी, बस उस की याद आ-गी" । नाई की आंख्यां में भी पाणी देख कै जाट बोल्या - "ठाकर, तेरै के हुया ?" नाई बोल्या - चौधरी, मन्नै तै लाग्गै सै चौधरण मर ली !! Last edited by dipu; 01-07-2013 at 09:17 AM. |
![]() |
![]() |
![]() |
#3 |
Diligent Member
![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() |
![]()
"चवन्नी की मोल ए दे दे"
सुरते की सास घणी कंजूस थी । वो जब भी ससुराल जाता तो उसकी सास प्याज और चटनी रख देती और चटनी में घणी मिर्च होया करती । सुरते जिस जगह खाना खाने बैठता था, उसके पास एक खांड की बोरी भरी रखी थी । एक बै उसका मुंह घणा कसूता जळ-ग्या और वो खांड की बोरी की तरफ हाथ करके अपनी सास से बोला - "सासू जी, चवन्नी की (खांड) मोल ए दे दे !" |
![]() |
![]() |
![]() |
#4 |
Diligent Member
![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() |
![]()
रेल की पटड़ी !
एक गाभरू छोरा अपनी ससुराड़ गया । सुसराड़ के ठाठ देख कै उसनै सोच्या अक दो-चार दिन और ठहर ल्यूं । कई दिन पाच्छै उसके सुसरे नै पड़ौस की कई छोरी बुलाई अर बोल्या - ए छोरियो, इस मलंग नै डिगाओ हाड़े तैं, यो तै कत्ती-ए चिप-ग्या । आगलै दिन दोफाहरी में मलंग रोट खा कै ठाठ तैं सोवै था । उसकी साळी कहण लागी - जीजा, खड़ा हो ले, रेल का टाइम हो रहया सै । उसकी माड़ी-माड़ी आंख खुल्ली अर बोल्या - क्यूं रौळा कर रही सो, सोवण दो नै । वे फिर बोल्ली - जीजा, खाट छोड-कै उठ, रेल का टाइम हो रहया सै । मलंग नै जवाब दिया - "रेल चली जागी तै जाण दो - मेरी खाट के रेल की पटड़ी पै घाल राक्खी सै ?" |
![]() |
![]() |
![]() |
#5 |
Diligent Member
![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() |
![]()
छोरे की सुसराड़
एक बै एक छोरा आपणी सुसराड़ चाल्या गया आपनी रूस्सी ओड़ बहू नै ल्यावण । उसकी सासू न्यूं बोल्ली समझावण खातिर - बेटा, हाम थे जो तू बयाह दिया, ना तै तू इस लायक ना था । छोरा बोल्या - हाँ सासू जी, म्हारे खानदान में कदे मेरा बाबू ब्याहा गया ना, मेरा दादा ब्याहा गया ना । तमनै या बड़ी मेहरबानी करी अक मैं ब्याह दिया !! |
![]() |
![]() |
![]() |
#6 |
Diligent Member
![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() |
![]()
गादड के कान
एक बै…..एक गादडी के पाछे दो कुत्ते लागरे थे। वा भाज कै एक दूसरे गादड के बिल में बड गई। गादड बडा मसखरा था। वो आपणी बहू तै बोल्या…..पुछिये बहू नै…..क्यूं तंग पा री सै..? गादडी बोल्ली…….म्हारै छोरी के बटेऊ आरे सैं……अर आजै ले जाण की जिद कररे सैं। गादड छो में भर कै बोल्या…..मैं देखूं सूं उन्हें जा कै। अकड में गादड ने बिल तै मुंह बाहर काढा तै दोनूं कुत्तां नै उसके दोनूं कान पकड लिये। गादड झटका मार कै उलटा ए बिल में बडग्या। पर कान कुत्तां के मुंह में ही रह गये। भीतर दूसरी गादडी ने गादड की बहू तै कहा, पूछिये री…….मेरे पितसरे के कानां कै के होग्या….? गीदड बोल्या………बटेऊ तै घणें ऊंत सैं। वैं छोरी के धोखें में मन्नै ए ट्राली में गेर के ले जावैं थे। बडी मुश्किल तै पिंडा छुड़ा कै आया सूं…!! |
![]() |
![]() |
![]() |
#7 |
Diligent Member
![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() |
![]()
बात इसी सै अक एक बै एक बटेऊ धौळी कमीज़-पैंट पहर कै सुसराड़ जावै था । राह में एक गळी मैं एक सूअर गार (कीचड़) मै लोट रहया था । जब वो बटेऊ उस धौरे कै लिकड़ा, तै उस सूअर नै पूँछ हिला दी अर गार के छींटे उसकी धौळी पैंट पै जा लाग्गे ।
उस बटेऊ कै घणा छो उठ्या । वो भाज-के दूकान पै गया अर एक बिस्कुट का पकैट ल्याया, अर हाथ मै एक लाठी ठा ली । फेर उसनै बिस्कुट सुअर के चारूँ ओड़ नै गेर दिए । धोरै खड़ा एक ताऊ यो सारा नजारा देखै था । ताऊ बोल्या - भाई, यो तेरे लत्ते का काम कर-ग्या अर तू इसनै बिस्कुट खुवावै सै ? बटेऊ बोल्या - ताऊ, डट ज्या एक बै । बस न्यूँ बेरा पाट ज्याण दे अक इस साळे का मुँह कित-सिक सै, फेर तै इसके कूल्ले पै लाठी सेकणी सै !! |
![]() |
![]() |
![]() |
#8 |
Diligent Member
![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() |
![]()
दूध की घेट्टी पकड कै ल्यावै सै !!
एक बै बेद आपणी सुसराड़ गया । सुसराड़ मैं बटेऊ खास हो ए सै, तै उसकी सास्सू उस खात्तिर दूध ल्याई - एक खास शीशे के गिलास मैं (खास न्यूं अक पहल्यां शीशे के गिलास खास लोगां ताहीं बरते जाया करते)। गिलास कत्ती कान्यां ताहीं का भर राख्या था । बेद नै शीशे का गिलास कदे देख्या ना था । वो आपणी सास्सू तैं बोल्या: दूध नै क्याहें मैं घाल तै ले हे, इसकी घेट्टी पकडे ल्याण लाग री सै !! |
![]() |
![]() |
![]() |
#9 |
Diligent Member
![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() |
![]()
ऊत बटेऊ की ऊत सास
एक बै एक बटेऊ ससुराल गया । पहले ससुराल में साग-सब्जी, बूरा आदि में जब तक घी की धार डालते रहते थे जब तक कि मेहमान हाथ आगे कर के "बस, बस" कर के रोकता नहीं था । जब सास बूरा में घी डाल रही थी, तो बटेऊ परे-नै मुंह कर-कै बैठ-ग्या - कदे "बस-बस" ना करना पड़ जावै । पर सासू भी कम चालाक नहीं थी । वो उसका मुंह वापस घी-बूरा की तरफ घुमा कर उसको दिखाती हुई बोली - "रै देख, बटेऊ जितणा तै दिया सै घाल, अर पहलवानी करणी सै तै आपणै घरां जा करिये" !! |
![]() |
![]() |
![]() |
#10 |
Diligent Member
![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() |
![]()
नई बहू
रमलू के पड़ौस में एक नई बहू आई थी । रमलू हुक्के की चिलम भरण का ओडा (बहाना) ले कै रोज उस घर में चला जाया करता । कुछ दिन पाच्छै बहू आपणै पीहर चली गई, रमलू नै इस बात का बेरा ना था । रमलू चिलम ले कै पहुंच ग्या अर इंघे-उंघे नै देख कै बुढ़िया तैं बोल्या - ताई, आग सै ? ताई बोली - बेटा, आग तै कल बारह आळी गाडी में चली गई !! |
![]() |
![]() |
![]() |
Bookmarks |
Tags |
haryana, haryanvi jokes, haryanvi language, jokes |
|
|