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24-10-2015, 07:45 PM | #1 |
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भारतीय क्रिकेट में स्पिन गेंदबाजी के जादू
भारतीय क्रिकेट में स्पिन गेंदबाजी के जादूगर
(internet से संकलित सामग्री के आधार पर) भारतीय क्रिकेट की बात करें तो स्पिन गेंदबाजी का इतिहास भी खासा पुराना माना जायेगा। हम इस इतिहास को सुविधा के लिए चार दौर में बाँट सकते हैं। पहला दौर 1946 से 1960 का भारतीय क्रिकेट जो अभी अपने बचपन से गुजर रहा था। इस में बीनू मंनकंड जैसा आलराउण्डर मिला जो अपने स्पिन पर बल्लेबाजों को घुमाते थे ही साथ में बल्ले से भी जौहर दिखाते थे उन्हे लेग स्पिनर सुभाष गुप्ते और आफ स्पिनर गुलाम अहमद का साथ मिला। veenu mankad
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24-10-2015, 08:10 PM | #2 |
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Re: भारतीय क्रिकेट में स्पिन गेंदबाजी के जाद&a
भारतीय क्रिकेट में स्पिन के जादूगर
दूसरा दौर यह वह दौर था जब भारतीय फिरकी गेंदबाजों के सामने बड़े से बड़े बल्लेबाज पानी माँगते नजर आते थे यह दौर था प्रसन्ना, भागवत चंद्रशेखर, बिशन सिंह बेदी और वेंकट राघवन का जो की 1961 से 1982 तक रहा जिसे भारतीय फिरकी का स्वणॅ युग भी कहा जाता है। इस दौर में भारतीय टीम अकेली ऐसी टीम थी जो अपने स्पिनरों की बदौलत टेस्ट मैच जीतती थी। चंद्रशेखर और बेदी को तो फिरकी का जादूगर कहा जाता है। ये दोनो लेग स्पिनर तथा प्रसन्ना और राघवन ऑफ स्पिनर थे। बेदी प्रसन्ना और चंद्रशेखर की तिकड़ी के सामने बड़े से बड़ो ने घुटने टेक दिये थे। तीसरा दौर 80 से 90 के दशक मे दिलीप दोषी, शिवलाल यादव और मनिंदर सिंह का रहा। ये भले ही उस उँचाइ को ना छू पाए लेकिन उस विरासत को आगे बढाया। इसी दौर में नरेंद्र हिरवानी और शिवरामकृष्णन आए लेकिन ये मैच जिताऊ नही बन पाए। हिरवानी ने अपने पहले टेस्ट में वेस्ट इंडीज के खिलाफ 16 विकेट लेकर जो कमाल दिखाया उसे फिर वे दोहरा न सके। ^ Bishan Singh Bedi, Chandrashekhar and Prasanna
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24-10-2015, 08:35 PM | #3 |
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Re: भारतीय क्रिकेट में स्पिन गेंदबाजी के जाद&a
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चौथा दौर ^
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24-10-2015, 08:56 PM | #4 |
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Re: भारतीय क्रिकेट में स्पिन गेंदबाजी के जाद&a
भारतीय क्रिकेट में स्पिन गेंदबाजी के जादूगर
^
Mansur Ali Khan Pataudi & S. Venkataraghavan टैस्ट क्रिकेट की यदि बात की जाये तो वहाँ न तो तूफानी बल्लेबाजों की लंबी फेहरिस्त इतनी घातक होती है और न ही किसी करिश्माई कप्तान की चतुरायी भरी तिकड़में और न ही उम्दा स्तर का क्षेत्ररक्षण। असल में बल्लेबाजों की फौज के दम पर क्रिकेट के छोटे संस्करणों में जरूर सीमित कामयाबी हासिल की जा सकती है लेकिन क्रिकेट के दीर्घ और 'असली' संस्करण का शहंशाह बनने के लिए धारदार आक्रमण की कमी जरूर लक्ष्य में खलल डाल सकती है। वास्तव में टेस्ट मैचों में दूसरी टीम को दो बार आउट करने का काम किसी बेजान आक्रमण के दम पर अंजाम नहीं दिया जा सकता। चौकड़ी का स्वर्णिम दौर वापस मुद्दे पर लौटते हैं। वाकया चालीस बरस पहले का है जब मंसूर अली खान पटौदी की अगुआई में भारतीय टीम ने इंगलैंड का दौरा किया था जहां उसे सभी टेस्ट मैचों में हार का मुंह देखना पड़ा और प्रतिद्वंद्वी टीम खेल के हर विभाग में मेहमान टीम पर इक्कीस ही साबित हुई। सिवाय एक वजह के उस दौरे को भुला देना भी जायज ही ठहराया जाएगा।
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24-10-2015, 10:48 PM | #5 |
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Re: भारतीय क्रिकेट में स्पिन गेंदबाजी के जाद
My choice for the greatest of all the Indian spinners : Anil Kumble.
Other great Indian spinners; Chandrasekhar, Bedi, Prasanna, Subhash Gupte, Nadkarni Nadkarni would have been an ideal bowler to bowl the last few overs in Todays ODIs and T 20 matches to keep the batsman in check. He never took many wickets but his line and length was immaculate and he has perhaps bowled the maximum number of maiden overs. My choice for the group of greatest International spinners of all time: Lance Gibbs, Muthaiah Muraleedharan, Abdul Qadir, Shane Warne, GV |
25-10-2015, 09:27 PM | #6 |
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Re: भारतीय क्रिकेट में स्पिन गेंदबाजी के जाद&a
एजबेस्टन में खेला गया श्रृंखला का तीसरा टेस्ट एक ऐसे उदाहरण के तौर पर दर्ज हुआ जिसमें भारत के फिरकी गेंदबाजों की सर्वकालिक ख्यातिनाम चौकड़ी पहली बार एक साथ मैदान में उतरी जो अपने पूरे करियर में इसके बाद कभी एक साथ किसी एक टेस्ट में नहीं खेली। बाएं हाथ के फिरकी गेंदबाज बिशन सिंह बेदी, ऑफ स्पिनर इरापल्ली प्रसन्ना और एस वेंकटराघवन के अलावा अपनी किस्म के अनूठे लेग स्पिनर भागवत चंद्रशेखर की घूमती और झूमती गेंदो के जादू का दर्शकों को सिर्फ एक दफा ही एक साथ दीदार हो पाया।
इस चौकड़ी ने अपने नाम को बट्टा भी नहीं लगने दिया और अंग्रेज बल्लेबाजों को अपनी बलखाती गेंदों से खूब छकाते हुए 20 में से 18 अंग्रेज बल्लेबाजों को अपना शिकार बनाया। एक बल्लेबाज तेज गेंदबाज वेंकटरामन सुब्रमण्या की गेंद की भेंट चढ़ गया, जबकि एक बल्लेबाज रन के लिए शुरू की अपनी दौड़ को मुकम्मल नहीं कर पाया और रन आउट हो गया। उस अविस्मरणीय टेस्ट की यादगार यादों में डुबकी लगाते हुए बेदी कहते हैं, 'हम जानते थे कि दोनों छोरों से आला दर्जे की स्पिन गेंदबाजी के सामने बल्लेबाज कभी सहज नहीं हो पाते। मैच गंवाना निराशाजनक था लेकिन हम सभी ने बेहद उम्दा गेंदबाजी की।'
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25-10-2015, 09:31 PM | #7 |
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Re: भारतीय क्रिकेट में स्पिन गेंदबाजी के जाद&a
भले ही उस वक्त को याद करते हुए वह खुश हो सकते हों लेकिन देश में स्पिन गेंदबाजी की मौजूदा दशा और दिशा जरूर उनकी मुस्कराहट कम कर सकती है। वास्तव में अब आकर्षण के केंद्र की धुरी भारत की ओर से हट रही है, जहां इन चारों ने धीमी गति की गेंदबाजी के हुनर को संपूर्णता प्रदान करते हुए आसमानी बुलंदियों तक पहुंचाया।
हाल के समय के बेहतरीन फिरकी गेंदबाज शेन वॉर्न का ताल्लुक जहां ऑस्ट्रेलिया से रहा वहीं मुथैया मुरलीधरन का वास्ता श्रीलंका से। इस सुप्रसिद्घ चौकड़ी के बाद केवल अनिल कुंबले ही एक विश्वस्तरीय गेंदबाज के रूप में सामने आए और कुछ हद तक हरभजन सिंह को भी इस श्रेणी में रखा जा सकता है। इनके अलावा लक्ष्मण शिवरामकृष्णन और नरेंद्र हिरवानी जैसे नाम भी चमके लेकिन वे महज 'चार दिन की चांदनी' ही साबित हुए। बेदी इसके लिए एकदिवसीय और ट्वेंटी-20 क्रिकेट जैसे खेल के संक्षिप्त संस्करणों को दोषी ठहराते हैं। वह पूछते हैं, 'स्पिनरों को अधिक आक्रामक होने की जरूरत है लेकिन ये छोटे संस्करण पूरी तरह से उन्हें मार रहे हैं। वह कहते हैं, 'पिछले दो वर्षों में हरभजन सिंह की गेंदों को भांपना काफी आसान साबितहुआ है।' दूसरे शब्दों में कहें तो उनकी गेंदो में 'फिरकी की पहेली' कमहोती जा रही है। बेदी यहां तर्क देते हैं। अपने उत्कर्ष के दिनों में स्पिनगेंदबाजी चालाकी और चतुराई का मिश्रण होती थी। आमतौर पर स्पिनर बल्लेबाजोंको फंसाने के लिए सीमा रेखा के ऊपर से शॉट लगाने के लिए ललचाया करते थे।लेकिन एकदिवसीय और टी-20 मैच स्पिनरों को ऐसी आजादी नहीं लेने देते।
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25-10-2015, 10:00 PM | #8 |
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Re: भारतीय क्रिकेट में स्पिन गेंदबाजी के जाद&a
चौकड़ी में सबसे उम्रदराज प्रसन्ना उम्र के 71वें पड़ाव को पार कर चुके हैं। 49 टेस्टों में 189 विकेट हासिल करने वाले प्रसन्ना फिलहाल किसी आधिकारिक पद पर आसीन नहीं हैं वहीं चौकड़ी में सबसे ज्यादा मारक चंद्रशेखर भी फिलहाल किसी भी रूप में क्रिकेट से जुड़े नहीं हैं जिन्होंने महज 58 टेस्टों में 242 विकेट अपने नाम किए। समग्र रूप से घरेलू क्रिकेट में खेल की गुणवत्ता और विशेष रूप से स्पिन गेंदबाजी की परंपरा बेदी और प्रसन्ना दोनों को परेशान कर रही है।
प्रसन्ना कहते हैं, 'अच्छे स्पिनरों को दूसरे छोर से मदद की भी जरूरत होती है।' बेदी इसमें अपनी बात जोड़ते हैं, 'कुंबले के लिए हरभजन मौजूद रहे लेकिन अब हरभजन के लिए कौन मौजूद है? ' रविचंद्रन अश्विन, अमित मिश्रा और प्रज्ञान ओझा फिलहाल फिरकी गेंदबाज के रूप में भारतीय टीम के दरवाजे पर दस्तक दे रहे हैं। लेकिन क्या वे भारतीय स्पिन गेंदबाजी के गौरव को फिर से हासिल कर पाएंगे? प्रसन्ना कहते हैं, 'स्पिन गेंदबाजी काफी मुश्किल काम है और एक स्पिन गेंदबाज को हमेशा बल्लेबाज को पिच और दिमागी मोर्चे पर चालाकी से मात देने पर ध्यान लगाना चाहिए।' वेंकटराघवन कहते हैं, 'केवल प्रतिभा आदमी को आगे नहीं ले जाएगी।' वहीं बेदी का कहना है, 'कुछ अच्छे स्पिनर आ रहे हैं लेकिन उनमें महानस्पिनर बनने की मानसिक दृढ़ता का अभाव है।' अगर स्पिन के दिग्गजों की ऐसीराय है तो दुनिया के सबसे अमीर क्रिकेट बोर्ड को संभल जाना चाहिए। इसके लिएइन दिग्गजों के अनुभव का आश्रय लिया जा सकता है। यदि समय रहते इस समृद्घपरंपरा को नहीं सहेजा गया तो देश में स्पिन गेंदबाजी की विधा महज अतीत केपन्नों में दफन हो जाएगी।
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25-10-2015, 10:01 PM | #9 |
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Re: भारतीय क्रिकेट में स्पिन गेंदबाजी के जाद&a
कुंबले के उदय से बहुत पहले, बल्कि भारतीय स्पिनर चौकड़ी से भी पहले जिस जादुई भारतीय स्पिनर का नाम आता है उसका नाम है सुभाष गुप्ते.
सोबर्स अपनी आत्मकथा में लिखते हैं कि गुप्ते से अच्छे लेग स्पिन गेंदबाज़ को उन्होंने नहीं खेला. वो कहते हैं कि बेशक शेन वॉर्न आज के युग के सबसे अच्छे लेग स्पिनर माने जाते हों लेकिन उन्होंने उनसे बेहतर गेंदबाज़ के खिलाफ क्रिकेट खेली है. पॉली उमरीगर के अनुसार सुभाष गुप्ते दो तरह की गुगली गेंद करते थे. एक जब वह अपने दाहिने कान के पास अपना हाथ ले जाते थे और दूसरा जब वह हाथ को कान से दूर रखते थे. गुप्ते के पास वॉर्न से कहीं ज़्यादा विविधता थी और उनकी गुगली को समझ पाना किसी के बूते की बात नहीं थी. वॉर्न गेंद को बहुत अधिक टर्न करते थे लेकिन स्पिन गेंदबाजी में टर्न ही सब कुछ नहीं होता. लेंथ और दिशा भी उतनी ही महत्वपूर्ण होती है. वेस्ट इंडीज़ के तीन डब्लूज़ वॉरेल, वॉल्कॉट और वीक्स ने उनके खिलाफ रन जरूर बनाए थे लेकिन सुभाष ने उन्हें कई बार मुश्किलों में भी डाला था. उस ज़माने में वेस्ट इंडीज़ के विकेट स्पिन गेंदबाज़ों को बिल्कुल भी मदद नहीं करते थे लेकिन इसके बावजूद 1952 की सिरीज़ में उन्होंने वहाँ 27 विकेट लिए थे. **
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