|
06-12-2012, 08:38 PM | #1 |
Super Moderator
Join Date: Aug 2012
Location: Faridabad, Haryana, India
Posts: 13,293
Rep Power: 241 |
ग़ज़ल: और दुनियां में कुछ कमी न हुई
और दुनियाँ में कुछ कमी न हुयी.
दिन हुआ दिन में रौशनी न हुयी. सफर-ए-मंजिल ने ऐसा परीशां किया पास आ कर भी हमको खुशी न हुयी. तेरी नज़रों का हो गिला क्यों कर दुश्मनी दिल से दुश्मनी न हुयी. पास रह कर भी इतनी दूर हैं दिल गोया ये इक्कीसवीं सदी न हुयी. कहाँ पे जायेंगे काफ़िले ज़माने के, इसकी तस्दीक भी सही सही न हुयी. आखरी रोज़ हमपे ये राज़ फ़ाश हुआ, ज़िंदगी ढंग की ज़िंदगी न हुयी. न समझ आये यही बेहतर है ‘शरर’ हमसे क्योंकर भला नहीं न हुयी. Last edited by rajnish manga; 10-12-2012 at 11:00 PM. |
08-12-2012, 11:40 PM | #2 |
Super Moderator
Join Date: Nov 2010
Location: Sherman Oaks (LA-CA-USA)
Posts: 51,823
Rep Power: 182 |
Re: ग़ज़ल: और दुनियां में कुछ कमी न हुई
श्रेष्ठ सृजन, मेरे विचार से एक 'सही' विलुप्त हो जाए, तो ज्यादा मारक हो जाता है।
__________________
दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु |
08-12-2012, 11:52 PM | #3 |
Administrator
|
Re: ग़ज़ल: और दुनियां में कुछ कमी न हुई
मुझे यह समझ में नहीं आ रहा है यह ग़ज़ल मुझे अभी तक दिखा क्यों नहीं।
बहुत ही उम्दा रचना है रजनीश जी।
__________________
अब माई हिंदी फोरम, फेसबुक पर भी है. https://www.facebook.com/hindiforum |
09-12-2012, 12:24 AM | #4 |
Super Moderator
Join Date: Aug 2012
Location: Faridabad, Haryana, India
Posts: 13,293
Rep Power: 241 |
Re: ग़ज़ल: और दुनियां में कुछ कमी न हुई
सेंट अलैक जी, ग़ज़ल पढ़ने और पसंद करने के लिये आपका हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ. आपके आत्मीयतापूर्ण सुझाव के लिए शुक्रिया किन्तु मैं विनय पूर्वक बताना चाहूँगा कि काफी सोच विचार के बाद शे’र में दो बार सही लफ्ज़ का किया गया है. इसके दो कारण हैं. एक तो यह कि ऐसा करना शे’र की दोनों पंक्तियों के सन्तुलन के लिये ज़रूरी था. दूसरे, सही शब्द पर मैं अतिरिक्त ज़ोर देना मुनासिब समझता था जो इसे दो बार प्रयुक्त करने से ही संभव हो पाता. उदाहरण के लिये किसी नक़्शे में किसी खास बिंदु की ‘सही’ तस्दीक करने में और ‘सही-सही’ तस्दीक करने में फर्क दृष्टिगोचर होगा. तथापि भविष्य में आपका सुझाव मेरा मार्गदर्शन करता रहेगा.
|
09-12-2012, 01:44 AM | #5 | |
Super Moderator
Join Date: Nov 2010
Location: Sherman Oaks (LA-CA-USA)
Posts: 51,823
Rep Power: 182 |
Re: ग़ज़ल: और दुनियां में कुछ कमी न हुई
Quote:
मेरे ख़याल से आप मात्राओं का विचार कर रहे हैं, लेकिन ऊपरी पंक्ति का 'ये' अगर हटा दें, तो यह संतुलन कायम हो जाता है। एक बार पुनः विचार करें। आग्रह इसलिए कि ग़ज़ल मूलतः गायन की विधा है और इसकी रचना के समय हमें गायक का विशेष ध्यान रखना होता है। आपको ताज्जुब होगा कि मैं किसी ग़ज़ल का मूल्यांकन सदैव उसे गाकर ही करता हूं, और अधिकांश जगह मैंने खुद को कामयाब ही पाया है। किन्तु आप अपनी जगह दुरुस्त हैं। यदि सहमत न हों, तो कृपया मेरे सुझाव को दुराग्रह न मानते हुए नज़रअंदाज़ कर दें। धन्यवाद।
__________________
दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु |
|
10-12-2012, 11:22 PM | #6 | |
Super Moderator
Join Date: Aug 2012
Location: Faridabad, Haryana, India
Posts: 13,293
Rep Power: 241 |
Re: ग़ज़ल: और दुनियां में कुछ कमी न हुई
Quote:
सेंट अलैक जी, मैं आज बहुत खुश हूँ. आपसे प्रभावित तो मैं फोरम पर आने के दिन से ही हूँ किन्तु जिस प्रकार अपनेपन से आप सदस्यों द्वारा प्रेषित पोस्ट मनोयोगपूर्वक पढते हैं और उस पर अपनी निष्पक्ष किन्तु उद्देश्यपूर्ण टिप्पणी देते हैं वह अनोखा एवं अद्वितीय है. आपने मेरी ग़ज़ल को संवार कर मुझ पर बहुत उपकार किया है. मैं यह भी भली भांति जानता हूँ कि आप कितना व्यस्त रहते हैं. आपकी सम्मति सर आँखों पर, तदनुसार संशोधन कर दिया गया है. प्रसंगवश, मैं बताना चाहता हूँ कि उक्त शे’र मूल रूप से इस प्रकार रचा गया था: कहाँ पे जायेंगे ये खलकत-ओ-हुजूम-ए-बशर इसकी तस्दीक भी सही सही ना हुई. कृपया अनुग्रह बनाए रखें. |
|
11-12-2012, 12:29 AM | #7 | |
Super Moderator
Join Date: Nov 2010
Location: Sherman Oaks (LA-CA-USA)
Posts: 51,823
Rep Power: 182 |
Re: ग़ज़ल: और दुनियां में कुछ कमी न हुई
Quote:
__________________
दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु |
|
10-12-2012, 11:53 PM | #8 |
Exclusive Member
Join Date: Oct 2010
Location: ययावर
Posts: 8,512
Rep Power: 99 |
Re: ग़ज़ल: और दुनियां में कुछ कमी न हुई
हृदयग्राही प्रस्तुति है बन्धु, हमें कुछ और ऐसी ही प्रस्तुतियों की प्रतीक्षा है।
__________________
तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर । परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।। विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम । पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।। कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/ यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754 |
11-12-2012, 09:14 AM | #9 |
Member
Join Date: Mar 2012
Posts: 29
Rep Power: 0 |
Re: ग़ज़ल: और दुनियां में कुछ कमी न हुई
अच्छा काव्य संग्रह किया है, सुत्रधार और सूत्र संचालक बधाई के पात्र है
|
11-12-2012, 09:24 PM | #10 |
अति विशिष्ट कवि
Join Date: Jun 2011
Location: Vinay khand-2,Gomti Nagar,Lucknow.
Posts: 553
Rep Power: 35 |
Re: ग़ज़ल: और दुनियां में कुछ कमी न हुई
श्री rajnish Manga जी ; उत्तम ग़ज़ल पोस्ट करने का शुक्रिया किन्तु सेकेण्ड लास्ट पंक्ति के अन्त में प्रयुक्त शब्द ' शरर ' का औचित्य समझ में नहीं आया .
__________________
https://www.facebook.com/media/set/?...1&l=730169e4e8 Last edited by Dr. Rakesh Srivastava; 11-12-2012 at 11:31 PM. |
Bookmarks |
|
|