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15-11-2015, 09:26 PM | #1 |
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गॉडोह की प्रतीक्षा
अन्तर्जाल में 'क्रोध नियंत्रण और प्रबन्धन' के तमाम लेख पढ़-पढ़कर हमें ऐसा प्रतीत होने लगा जैसे वह दिन दूर नहीं जब एक 'क्रोधमुक्त विश्व' की स्थापना हो जाएगी और 'क्रोध करना' एक विलुप्तप्रायः कला हो जाएगी तथा आने वाली पीढ़ी को 'क्रोध करना' सिखाने के लिए गाँव-गाँव में स्कूल-कॉलेज खोलने होंगे। क्रोध के अस्तित्व पर मँडरा रहे भयानक खतरे को भाँपकर हमारे दोनों कान के साथ सिर के बाल भी खड़े हो गए और हमने प्रण लिया कि हम क्रोध बढ़ाने के उपायों का व्यापक प्रचार और प्रसार करेंगे जिससे आने वाली पीढ़ी क्रोध करने का परमसुख लेने से वंचित न रह सके।
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15-11-2015, 09:27 PM | #2 |
Diligent Member
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Re: गॉडोह की प्रतीक्षा
क्रोध बढ़ाने के उपायों पर किए गए विशेष शोध के उपरान्त हमने पाया कि आप जितनी अधिक भाषाओं के जानकार होंगे, आपको क्रोध भी उतना अधिक आएगा। उदाहरण के लिए यदि मैं आपको तमिल भाषा में बुरा-भला कहूँ तो आपको बिल्कुल क्रोध नहीं आएगा, क्योंकि आपको तमिल भाषा आती ही नहीं। यही नहीं, क्रोध आने के लिए किसी भी भाषा पर जबरदस्त पकड़ का होना भी बहुत ज़रूरी है, क्योंकि हो सकता है कि सामने वाला अत्यधिक साहित्यिक भाषा में भला-बुरा कहकर आपको क्रोधित होने का सुअवसर प्रदान कर रहा हो और अपने अल्पज्ञान के कारण बात आपके सिर के ऊपर से गुज़र जाए और क्रोध करने का स्वर्णिम अवसर आपके हाथ से निकल जाए! अतः 'क्रोध करने के लिए किसी भी भाषा पर जबरदस्त पकड़' की उपयोगिता को देखते हुए प्रस्तुत है 'भाषा पकड़ बनाओ, अपना क्रोध बढ़ाओ' कार्यक्रम के प्रथम अध्याय में 'गॉडोह की प्रतीक्षा' की सुन्दर व्याख्या- (क्रमशः)
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15-11-2015, 10:19 PM | #3 |
Special Member
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Re: गॉडोह की प्रतीक्षा
शुरुआत तो काफी मजेदार लग रहा है।
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घर से निकले थे लौट कर आने को मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए बिगड़ैल |
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