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28-08-2013, 07:54 AM | #1 |
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आजा हंस लें
आजा हंस लें ..............
बिल्कुल एक जैसे...
क्लास में एक लड़की गुस्से में ज़ोर-ज़ोर से चिल्ला रही थी, "सभी लड़के एक जैसे होते हैं... बिल्कुल एक जैसे..." रोहन ने लड़की के पास जाकर मासूमियत-भरे स्वर में कहा, "सभी लड़कों को ट्राई करने की तुझे ज़रूरत ही क्या थी...?
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मैं क़तरा होकर भी तूफां से जंग लेता हूं ! मेरा बचना समंदर की जिम्मेदारी है !! दुआ करो कि सलामत रहे मेरी हिम्मत ! यह एक चिराग कई आंधियों पर भारी है !! |
28-08-2013, 07:55 AM | #2 |
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Re: आजा हंस लें
इस परीक्षा में कैसे पास होंगे ?
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28-08-2013, 07:56 AM | #3 |
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Re: आजा हंस लें
एक रात, चार कॉलेज विद्यार्थी देर तक मस्ती करते रहे और जब होश आया तो अगली सुबह होने वाली परीक्षा का भूत उनके सामने आकर खड़ा हो गया।
परीक्षा से बचने के लिए उन्होंने एक योजना बनाई। मैकेनिकों जैसे गंदे और फटे पुराने कपड़े पहनकर वे प्रिंसिपल के सामने जा खड़े हुए और उन्हें अपनी दुर्दशा की जानकारी दी। उन्होंने प्रिंसिपल को बताया कि कल रात वे चारों एक दोस्त की शादी में गए हुए थे। लौटते में गाड़ी का टायर पंक्चर हो गया। किसी तरह धक्का लगा-लगाकर गाड़ी को यहां तक लाए हैं। इतनी थकान है कि बैठना भी संभव नहीं दिखता, पेपर हल करना तो दूर की बात है। यदि प्रिंसिपल साहब उन चारों की परीक्षा आज के बजाय किसी और दिन ले लें तो बड़ी मेहरबानी होगी। प्रिंसिपल साहब बड़ी आसानी से मान गए। उन्होंने तीन दिन बाद का समय दिया। विद्यार्थियों ने प्रिंसिपल साहब को धन्यवाद दिया और जाकर परीक्षा की तैयारी में लग गए। तीन दिन बाद जब वे परीक्षा देने पहुंचे तो प्रिंसिपल ने बताया कि यह विशेष परीक्षा केवल उन चारों के लिए ही आयोजित की गई है। चारों को अलग-अलग कमरों में बैठना होगा। चारों विद्यार्थी अपने-अपने नियत कमरों में जाकर बैठ गए। जो प्रश्नपत्र उन्हें दिया गया उसमें केवल दो ही प्रश्न थे - प्र. 1 आपका नाम क्या है ? (2 अंक) प्र. 2 गाड़ी का कौनसा टायर पंक्चर हुआ था ? ( 98 अंक ) अ. अगला बायां ब. अगला दायां स. पिछला बायां द. पिछला दायां
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28-08-2013, 07:58 AM | #4 |
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Re: आजा हंस लें
इससे सिध्द होता है कि.................
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28-08-2013, 07:58 AM | #5 |
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Re: आजा हंस लें
दर्शनशास्त्र की कक्षा में प्रोफेसर साहब भगवान के अस्तित्व के संबंध में पढ़ा रहे थे।
- क्या आप में से किसी ने भगवान की आवाज सुनी है ? प्रोफेसर ने छात्रों से सवाल किया।,कोई नहीं बोला । - क्या किसी ने भगवान को छुआ है ? फिर से, कोई नहीं बोला । - क्या किसी ने भगवान को देखा है ? जब इस बार भी छात्रों की ओर से कोई जवाब नहीं आया तो प्रोफेसर साहब बोले – इससे सिध्द होता है कि भगवान नहीं है । एक छात्र से नहीं रहा गया। उसने हाथ उठाकर प्रोफेसर से बोलने की अनुमति मांगी। अनुमति मिलने पर वह प्रोफेसर साहब की डेस्क के पास आकर छात्रों को संबोधित करते हुए बोला – क्या किसी ने प्रोफेसर साहब के दिमाग की आवाज सुनी है ? कोई नहीं बोला । - क्या किसी ने प्रोफेसर के दिमाग को छुआ है ? फिर से, कोई नहीं बोला। - क्या किसी ने प्रोफेसर के दिमाग को देखा है । कोई आवाज नहीं आई । तब छात्र ने निष्कर्ष बताया – इससे सिध्द होता है कि प्रोफेसर साहब ………… ।
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28-08-2013, 08:02 AM | #6 |
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Re: आजा हंस लें
तुम्हे मुझसे डर क्यों नहीं लगता ?
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28-08-2013, 06:51 PM | #7 |
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Re: आजा हंस लें
बेहतरीन कटाक्ष............................................ ...
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28-08-2013, 07:06 PM | #8 |
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Re: आजा हंस लें
बेटा: पापा राजनीति में क्या होता है?
बेटा: बेटा मान लो जो तेरी मम्मी घर चलाती है वह सरकार है, मैं कमाता हूं इसलिए मैं कर्मचारी, कामवाली काम करती है इसलिए वह मजदूर हुई और तुम देश की जनता हो और तुम्हारा छोटा भाई देश का भविष्य….. बेटा: अब मुझे राजनीति समझ आ गई पापा. कल रात मैंने देखा कर्मचारी मजदूर के साथ किचन में मजे ले रहा था, सरकार सो रही थी, जनता की किसी को फिक्र ही नहीं थी और देश का भविष्य रो रहा था.
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28-08-2013, 09:13 PM | #9 |
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Re: आजा हंस लें
आप सभी ने देव आनन्द की बेहद सफल और मशहूर फिल्म ‘गाइड' ज़रूर देखी होगी।
इस फिल्म में एक लोकप्रिय गाना है ‘गाता रहे मेरा दिल'। इस गाने में वहीदा रहमान एक गुलाबी साड़ी पहनती है और पूरे गाने के दौरान वो केवल यही साड़ी पहनती है। अब‚ जब हम देखते हैं कि अभिनेत्रियाँ एक गाने में हर एक लय के बाद कपड़े बदलती हैं ‚ सवाल यह उठता है कि वहीदा रहमान क्यों अपनी साड़ी पूरे गाने में नहीं बदलती। जवाब बिलकुल सीधा सा है और उसके ल्िए माथापच्ची करने की ज़रूरत नहीं है। जवाब गाने के पहले अंतरे में है। देव आनन्द यह पंक्ति गाते हैं "ओ मेरे हमराही‚ मेरी बाँह थामे चलना‚ बदले दुनिया ‘सारी' (साड़ी) तुम न बदलना।"...................................... ...
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28-08-2013, 09:16 PM | #10 |
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Re: आजा हंस लें
एक कम्प्यूटर सॉफ़्टवेयर डेवलपमेंट कम्पनी में एक ऑफिस बॉय काम करता था. वह सभी कर्मचारियों को चाय, कॉफ़ी इत्यादि पिलाया करता था. वह समर्पित इंसान था, परंतु वह अनपढ़ था, जिससे कभी कभी उसे मुश्किलों का सामना भी करना पड़ जाता था. अपने कठिन परिश्रम से वह लोगों का दिल जीत कर काम कर रहा था. एक दिन कंपनी में एक सर्कुलर जारी हुआ जिसमें प्रॉडक्टिविटी बढ़ाने के नाम पर उन सभी कर्मचारियों की छंटनी कर दी गई जो पढ़े लिखे नहीं थे. लिहाज़ा उस ऑफ़िस बॉय की नौकरी भी जाती रही. उसने जीवन यापन के लिए पुराने कम्प्यूटरों को खरीदने-बेचने का धंधा शुरू कर दिया.
उसका यह धंधा चल निकला और वह देखते ही देखते देश का सबसे बड़ा सेकण्ड हैण्ड हार्डवेयर दुकानों की शृंखला का मालिक बन गया. उसने अपने धंधे को डाइवर्सिफ़ाई करने के इरादे से ताबड़तोड़ सॉफ़्टवेयर कंपनियाँ खरीदने लगा. उसने वह सॉफ़्टवेयर कंपनी भी खरीद ली जिसमें से उसे ऑफ़िस बॉय के रूप में निकाल दिया गया था. उस कंपनी के काग़ज़ात उसके पास दस्तखत के लिए लाए गए. उसके होठों पर विद्रूपता की क्षीण सी मुस्कान उभरी. वह बोला – अगर मुझे दस्तखत करना आता होता तो इस कंपनी में मैं अभी भी ऑफ़िस बॉय ही बना रहता...............
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