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23-05-2012, 03:24 PM | #1 |
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मीडिया स्कैन
मित्रो। मेरा यह नया सूत्र आप तक अंतर्राष्ट्रीय मीडिया की आवाज़ पहुंचाने के लिए है अर्थात संसार भर के समाचार पत्र विभिन्न वैश्विक मुद्दों पर क्या अभिमत प्रकट कर रहे हैं, मेरा यह सूत्र प्रतिदिन आपको यह बताएगा। किन्तु इसमें मैं बहुत सारी प्रविष्ठियां नहीं करूंगा, प्रतिदिन सिर्फ एक या दो अखबारों का किसी एक विषय पर नज़रिया ही इसमें संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत होगा, ताकि आप सभी उस पर गहन चिंतन कर सकें और शेष विश्व से निरंतर जुड़े रहें। मुझे उम्मीद है कि वैश्विक राजनीति और घटनाक्रम में रूचि रखने वालों के लिए मेरा यह सूत्र उपयोगी साबित होगा। धन्यवाद।
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु Last edited by Dark Saint Alaick; 27-05-2012 at 10:57 PM. |
23-05-2012, 03:26 PM | #2 |
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Re: मीडिया स्कैन
रेलवे के विकास की उम्मीद जागी
बीमार बांग्लादेश रेलवे में जान डालने की जद्दो-जहद के लिए नए संचार मंत्री ओबैदुला क्वादर को शुक्रिया। दशकों से रेलवे नजरअंदाज होती रही है। जाहिर है, हुकूमत की तरफ से कोताही बरती गई। अब उम्मीद जगी है। रेलगाड़ियों की तादाद बढ़ेगी और वक्त की पाबंदी का ख्याल रखा जाएगा। ये हुकूमत के दावे हैं, जो पैशनगोई ज्यादा लगते हैं, लेकिन अगर इनकी तुलना रेलवे के सामर्थ्य से की जाए। जैसे रेलगाड़ियां बड़ी तादाद में मुसाफिरों और सामानों को ढोती हैं और पड़ोसी मुल्कों में आवाजाही के इस साधन की तरक्की को देखें, तो ये दावे समंदर में कुछ बूंद भर हैं। वैसे उम्मीद जो जगी है, उसे पाने के लिए मंत्री को लंबा सफर तय करना होगा। अगर वाकई रेलवे को हालिया वक्त के बराबर लाना है, तो सबसे पहले इस महकमे व इसके कामकाज में आमूलचूल बदलाव लाने होंगे। मसलन, जरूरत के मुताबिक काबिल लोगों को बहाल करना होगा, रेलवे का जाल और फैलाना होगा, बेहतर रखरखाव व्यवस्था करनी होगी। रेलवे बजट बढ़ाना होगा। -द डेली स्टार बांग्लादेश का अखबार
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23-05-2012, 03:30 PM | #3 |
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Re: मीडिया स्कैन
सागर में संग्राम
दक्षिण चीन सागर और उसके संसाधनों को लेकर विवाद बढ़ते जा रहे हैं। फिलीपींस, वियतनाम, चीन और दूसरे देश जो इसके इर्द-गिर्द हैं, कई बार इस पर अपना एकाधिकार जता चुके हैं या इसके द्वीपों पर अपनी संप्रभुता का दावा पेश कर चुके हैं। वे इस समुद्र में युद्धाभ्यास करने के साथ दूसरे क्रिया-कलापों को भी अंजाम देते हैं और संसाधनों को लेकर भी उन्होंने कई सर्वेक्षण किए हैं। यही नहीं वे समुद्री कानून और मुद्दों की संयुक्त राष्ट्र की विशेषज्ञ एजेसियों के सामने भी इस सागर पर अपना हक जता चुके हैं, जबकि इन देशों के बीच एक मौन सहमति है कि हक जताने के अलावा संसाधनों के साझा विकास के पक्ष में माहौल कायम रखा जाए। अब यह मौन सहमति टूट गई है और दक्षिण चीन सागर को लेकर विवाद गहरे हो गए हैं। निकट भविष्य में इनके दूर होने के आसार भी नहीं दिखते। वास्तविकता यह है कि ताकत की आवाज ऊंची होती है। इस पूरे मामले में ताइवान एक सॉफ्ट पावर है; जो बस, गठबंधन बनाने और उसमें शामिल होने की हैसियत रखता है। इसे भी बेहतर तरीके से करने के लिए कूटनीतिक चतुराई की जरूरत पड़ेगी। हाल के वर्षों में कई समुद्री विवाद उपजे हैं और उनमें सबसे ऊपर दक्षिण चीन सागर का विवाद है। - ताईपेई टाइम्स ताइवान का प्रमुख अखबार
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24-05-2012, 05:42 PM | #4 |
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Re: मीडिया स्कैन
तालमेल की जरूरत
अफगानिस्तान के साथ हमारे रिश्ते कई स्तरों पर हैं। इसलिए भी हमारी विदेश नीति के एजेंडे पर अमेरिकी हावी रहते हैं। दरअसल पूरे अफगान मामले में कई खिलाड़ी एक साथ शामिल हैं। इनकी राहें जुदा-जुदा हैं पर चाल लगभग एक समान। हाल ही में एक बैठक हुई जिसमें अफगानिस्तान में नाटो फौज के कमांडर और पाकिस्तान व हिन्दुस्तान के आर्मी चीफ शामिल हुए। इसमें सरहद पर अमन-चैन को पुख्ता करने पर जोर डाला गया। दोनों तरफ के नुमाइंदे इस बात को जानते-समझते हैं कि सरहदी इलाकों में आपसी तालमेल की सख्त जरूरत है क्योंकि इन इलाकों में अक्सर जंग जैसा माहौल बना रहता है जिससे दोनों ही तरफ गलतफहमियां पैदा होती हैं। बहरहाल यह गुफ्तगू फौज से फौज की रही। वैसे यह गुफ्तगू इस लिहाज से बिल्कुल अलग कही जा सकती है कि इसके कामकाज का तरीका कूटनीतिक नहीं बल्कि उससे काफी अलग था। उसमें तो मैदान-ए-जंग की हकीकत पर तब बहस होती है जब कोई गलती कर बैठता है। जैसे पिछले साल नवम्बर महीने में अमेरिकी फौज से गलती हुई थी। यही नहीं कूटनीतिक नक्शे पर बहुत कुछ साफ-साफ नहीं दिखता। पल भर में जंग जैसा माहौल बन जाता है। -द न्यूज पाकिस्तान का प्रमुख अखबार
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24-05-2012, 05:44 PM | #5 |
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Re: मीडिया स्कैन
ओबामा के दावे
शिकागो के नाटो सम्मेलन में बराक ओबामा के दावे झूठे थे। उन्होंने कहा कि अगले दो वर्षो में जब अमेरिकी फौज अफगानिस्तान में अपनी भूमिका खत्म कर चुकी होगी तो जैसा कि हम समझते हैं कि युद्ध वहां पूरी तरह से खत्म हो जाएगा। अव्वल तो अमेरिकी फौज कभी यह समझ ही नहीं पाई कि अफगानिस्तान में उसकी भूमिका क्या थी और उसकी लड़ाई किसके खिलाफ है। पिछले साल ही जनरल स्टेनली मैकक्रिस्टल ने इन खामियों को कबूला था। वह अफगानिस्तान में अमेरिकी फौज की कमान संभाल रहे थे। उन्होंने आतंक विरोधी अभियान और राष्ट्र निर्माण से जुड़े विराधाभासों को दूर करने की कोई कोशिश नहीं की। दूसरी बात जब नाटो अफगानिस्तान से निकलने की तैयारी में है तब वाशिंगटन की ओर से यह बयान ठीक नहीं। क्या वहां सचमुच शांति बहाल हो गई है? यह तो अफगान बाशिंदे ही बेहतर पता पाएंगे। कोई भी व्यक्ति अमेरिकी राष्ट्रपति से इतनी उम्मीद तो कर ही सकता है कि वह एक्जिट स्ट्रेटजी के नाम पर कुछ सम्मानजनक कदम उठाएं, लेकिन जैसा कि अमेरिकी कूटनीतिज्ञ हेनरी किसिंजर महसूस करते हैं कि एक्जिट स्ट्रेटजी अब 'एक्जिट' तक सिमट गई है। -द गार्जियन ब्रिटेन का प्रमुख अखबार
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26-05-2012, 01:49 AM | #6 |
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Re: मीडिया स्कैन
सबक तो सीखें
क्या पाकिस्तान कभी यह सीखेगा कि किसी भी तरह की पाबंदी का उल्टा असर होता है और ये पाबंदियां आखिरकार हमें मजाक का विषय ही बनाती हैं। क्या कायदा-कानून बनाने वाले हमारे रहनुमा कभी यह कबूल करेंगे कि दुनिया की चौकीदारी करने की कोशिश बेकार है। इन सवालों के जवाब हैं - नहीं। एकाध साल पहले की ही बात है। लाहौर हाईकोर्ट के निर्देश पर पाकिस्तान टेलीकम्युनिकेशंस अथॉरिटी (पीटीए) ने 800 वेबपेजों और यूआरएल्स पर रोक लगा दी थी। इनमें फेसबुक और विकीपीडिया के वे हिस्से भी शामिल थे, जिनमें ईशनिंदा से जुड़ी चीजें थीं। पीटीए के इस कदम की काफी नुक्ताचीनी हुई थी और वह मजाक बनकर रह गया, क्योंकि उन वेबसाइटों तक पहुंचने के अनगिनत रास्ते थे, जिन पर पाबंदी लगाई गई थी। इंटरनेट पर काबू करने का एक ही रास्ता है कि पूरे पाकिस्तान को इससे विलगा दिया जाए और ऐसी सूरत में पीटीए को पीछे हटना पड़ा था, लेकिन इस वाकये से कोई सबक नहीं सीखा गया। इन आहत करने वाली सामग्रियों को लेकर पाकिस्तान भी वैसा ही कुछ कर सकता है, जो दुनिया के दूसरे इलाकों में होता है यानी उन्हें महत्व ही नहीं दीजिए। सेंसरशिप और पाबंदी से समस्या दूर नहीं होगी। -द डॉन पाकिस्तान का प्रमुख अखबार
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27-05-2012, 10:56 PM | #7 |
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Re: मीडिया स्कैन
एक और विस्तार
संविधान सभा का कार्यकाल पांचवीं बार बढ़ाने की सिफारिश की गई है। पहले भी जब राजनीतिक पार्टियों ने संविधान सभा के कार्यकाल बढ़ाने के फैसले लिए तो लोगों में आक्रोश दिखा। कई लोग मानते हैं कि नेपाल की राजनीतिक पार्टियां तय वक्त में संविधान तैयार करने में अक्षम हैं। यह एक बड़ी विफलता है। पार्टियां अपने राजनीतिक कर्तव्य से मुंह चुरा रही हैं। दलील यह भी दी जा रही है कि कार्यकाल बढ़ाने की सिफारिश असंवैधानिक है, क्योंकि यह सुप्रीम कोर्ट के फैसले की चुनौती है, जिसमें कहा गया है कि संविधान सभा का चौथा कार्यकाल ही आखिरी होगा। इससे अधिक निराशा की बात क्या हो सकती है कि राजनीतिक पार्टियां नेपाली जनता को यह समझाने में विफल हैं कि समय-सीमा खत्म होने को है और उनकी तैयारियां अधूरी हैं। ऐसे में उन शीर्ष नेताओं की जिम्मेदारी बढ़ जाती है, जो संविधान सभा का कार्यकाल बढ़ाने के पक्ष में हैं। उन्हें अगले विस्तार की प्रासंगिकता बतानी होगी। माओवादी नेता पुष्पकमल दहल प्रचंड और प्रधानमंत्री बाबूराम भट्टराई ने हाल में राजनीतिक व्यावहारिकता दिखाई है। वे कहते रहे कि निर्धारित तारीख आखिरी होगी पर अब ऐन मौके पर वे मुकर रहे हैं। इससे जनता की नजरों में उनकी साख घटी है। -द काठमांडो पोस्ट नेपाल का प्रमुख अखबार
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29-05-2012, 02:12 PM | #8 |
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Re: मीडिया स्कैन
कब्जे में एक देश
साठ साल में चीन अधिकृत तिब्बत उपनिवेश का सबसे कामयाब उदाहरण है। ऐसे वक्त में जब पुराने साम्राज्य ढह रहे हैं, चीन की फौज तिब्बत पर काबिज है। यही नही, औपनिवेशिक शक्तियां अपने प्रारब्ध को लेकर आश्वस्त हैं। वे इस मुल्क को चीनी लोगों से भर रहे हैं। विद्रोह के सभी तरीके कुचल दिए गए हैं। हालांकि पिछले साल कुछ तिब्बतियों ने आत्मदाह भी किए। यकीनन वे त्रासद और भयावह घटनाएं थीं। बहरहाल निर्वासित सरकार अब स्वायत्तता की मांग कर रही है न कि स्वतंत्रता की। और उन्हें यह भी मिलने की रत्ती भर उम्मीद नहीं है। बावजूद इन सबके यह सोचना गलत होगा कि दलाई लामा अपने मकसद में विफल रहे। वह एक राजनीतिज्ञ हैं, जिनके पीछे न तो कोई फौज है और न ही देश। वह एक धर्मगुरु हैं, जो अपने मठों का दौरा नहीं कर सकते और जिनके समर्थकों पर दुश्मनों की निगाहें हैं। सबसे बढ़कर तो यह कि वह जो सिखाते हैं और मानते हैं आधुनिक सोच-समझवालों के लिए वे निरर्थक हैं। फिर भी वह एक वैश्विक शख्सियत हैं। एक ऐसे शख्स हैं, जो अहिंसा के लिए खड़ा है और सत्य पर अडिग है। अन्य धर्मगुरुओं में यह प्रबंधन नहीं दिखता है। इस पूरी प्रक्रिया में उन्होंने यह साबित किया कि तिब्बत एक देश है, जो अब भी चीन के कब्जे में है। -द गार्जियन ब्रिटेन का प्रमुख अखबार
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30-05-2012, 02:22 AM | #9 |
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Re: मीडिया स्कैन
सही है नाराजगी
अपनी मौत से कई साल पहले लादेन ने पाकिस्तान में सैनिक छावनी वाले इलाके में शरण ली थी। अलकायदा सरगना की मौजूदगी के बारे में पाक खुफिया विभाग या फौज को जानकारी नहीं थी, यह सफेद झूठ है, लेकिन अमेरिकी स्पेशल फोर्स ने ओसामा को मार गिराया। पाकिस्तान सरकार इस बात पर अड़ गई कि दुनिया के सबसे मोस्ट वॉन्टेड शख्स को उसने नहीं छिपाया था। पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी ने तो यहां तक कहा कि आतंकियों के हाथों किसी और देश को इतना नुकसान नहीं हुआ, जितना पाकिस्तान को हो रहा है। बावजूद इसके उन लोगों के साहस और देशभक्ति की सराहना होनी चाहिए, जिन्होंने ओसामा को ढूंढ़ने में मदद की, लेकिन इसके एवज में एक पाक डॉक्टर शकील आफरीदी को 33 साल की सजा सुनाई गई है। उनके विरुद्ध फ्रंटियर क्राइम रेगुलेशन के तहत मुकदमा चला। कोई जज नहीं नियुक्त हुआ। सुनवाई एक स्थानीय प्रशासनिक अधिकारी द्वारा संचालित हुई। तुलनात्मक अंतर देखिए कि ओसामा को पनाह देने के आरोप में न तो किसी की गिरफ्तारी हुई और न ही किसी पर मुकदमा चला। शायद डॉ. आफरीदी को बचाने के लिए अमेरिकियों को और कदम उठाने चाहिए थे, लेकिन आफरीदी के साथ जो सलूक हुआ उस पर अमेरिकी नाराजगी सही है। - द टेलीग्राफ ब्रिटेन का प्रमुख अखबार
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31-05-2012, 10:57 PM | #10 |
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Re: मीडिया स्कैन
तालिबान की ताकत
जैसे-जैसे अमेरिकी फौज लौट रही है, तालिबान की ताकत बढ़ती जा रही है। रिपोर्टों के मुताबिक गजनी, कंधार, हेलमंद और दूसरे इलाकों में दहशतगर्दी बढ़ी है। पिछले महीने काबुल और अफगानिस्तान के दूसरे सूबों में आतंकी घटनाएं घटीं। जाहिर है कि तालिबान के मंसूबे कारगर हो रहे हैं। अमेरिकी सीनेट इंटेलिजेंस कमेटी अध्यक्ष डी. फेनस्टेन ने एक इंटरव्यू में कहा है, मेरे विचार में तालिबान की ताकत बढ़ती जा रही है। फेनस्टेन के साथ हाउस इंटेलिजेंस कमेटी के अध्यक्ष माइक रोजर्स भी थे और वह भी उनके विचार से सहमत दिखे। दोनों पिछले हफ्ते अफगानिस्तान के दौरे पर थे। खैर, ऐसे बयान कि तालिबान का सफाया हो चुका है या शांति-सुलह कार्यक्रमों ने तालिबान को कई धड़ों में बांट दिया है; बस, कहने भर को अच्छे लगते हैं। हकीकत यह है कि अब तालिबान करजई हुकूमत को जड़ से उखाड़ फेंकने की जुगत में है। आशंका बढ़ गई है कि अंतर्राष्ट्रीय फौज जाने के बाद वहां तालिबान, हक्कानी नेटवर्क और अल-कायदा के दहशतगर्दो की तादाद बढ़ेगी। रिपोर्ट्स के मुताबिक पड़ोसी मुल्क में हजारों दहशतगर्दों को तैयार किया जा रहा है। तालिबान ने मुस्लिम मुल्कों से इमदाद मांगी है। -डेली आउटलुक अफगानिस्तान का प्रमुख अखबार
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