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![]() 'जल' :.... ![]() Genre: ड्रामा, Director: गिरीश मलिक, Plot: इस फिल्मी फ्राइडे गिरीश मलिक डायरेक्टेड फिल्म ‘जल’ रिलीज हो चुकी है। फिल्म लीक से हटकर है, इसलिए यह कहना गलत नहीं होगा कि 'जल' दर्शकों की उस क्लास के लिए है, जो हॉल में सिर्फ एंटरटेनमेंट के लिए नहीं जाते। इस क्लास के दर्शकों की कसौटी पर फिल्म शायद खरी उतर सकती है। ‘जल’ का कॉन्सेप्ट अच्छा है, लेकिन फिल्म में कोई बड़ा स्टार नहीं है, जो फिल्म का सबसे वीक प्वाइंट है। फिल्म में पूरब कोहली, राहुल देव, तनिष्ठा चटर्जी और यशपाल शर्मा समेत कुछ और सितारे हैं, जिनके नाम पर फिल्म का सफल होना काफी मुश्किल है। कहानीः फिल्म ‘जल’ में दो कहानियां एक साथ चलती हैं। इनमें एक कहानी है विदेशी मैडम किम (साइदा जूल्स) की, जो गुजरात के बंजर और नमक से भरे रण कच्छ के पास गांव से सटी झील में पक्षियों को बचाने के लिए रिसर्च करती हैं। वहीं, दूसरी कहानी है झील के पास बसे दो ऐसे गांवों की, जो एक-दूसरे के दुश्मन हैं। ‘जल’ में विदेशी मैडम किम इस बात पर रिसर्च करती हैं कि यहां पक्षी क्यों मर रहे हैं। किम का गाइड रामखिलारी (यशपाल शर्मा) है। किम को अपने प्रोजेक्ट में जो भी जरूरत होती है, रामखिलारी उसे पूरा करता है। किम को अपनी रिसर्च के बाद पता चलता है कि समुद्र पार करते समय इन अप्रवासी पक्षियों के पंखो में नमक चिपक जाता है। इस वजह से यहां आकर पक्षियों और उनके बच्चों की मौत हो जाती है। किम पक्षियों को बचाने के लिए गांव वालों की मदद से झील बनाने का फैसला करती हैं। इस बीच किम को गांव वालों की आलोचनाओं का भी सामना करना पड़ता है। गांव वालों का कहना है कि गोरी मैडम को इंसान से ज्यादा पक्षियों की चिंता है। वैसे, जिस गांव के लोग किम की मदद करते हैं, वहां का एक आदमी है बक्का (पूरब कोहली)। बक्का का कहना है कि वो पानी का देवता है और वह बंजर जमीन से भी पानी निकालेगा। समय बीतता जाता है, लेकिन बक्का पानी निकालने में कामयाब नहीं होता पाता। उसकी कोशिशें हर बार नाकामयाब ही होती हैं। पीने के पानी को लेकर जिन दो गांवों में आपसी रंजिश है, उस रंजिश के बीच एक प्रेम कहानी भी पनपती है। बक्का दुश्मन गांव की लड़की केसर (कीर्ति कुल्हारी) से मुहब्बत करता है। वैसे, बक्का के गांव वालों को उस पर पूरा भरोसा है। उन्हें उम्मीद है कि पानी का देवता बक्का जहां कहेगा, वहीं पानी निकलेगा। इस बीच बक्का विदेशी मैडम किम की भी मदद करता है। अब बक्का बंजर जमीन से पानी निकाल पाता है या नहीं और क्या उसे उसकी मुहब्बत मिलती है, ये सब कुछ जानने के लिए आपको सिनेमाघर का रुख करना होगा। एक्टिंगः फिल्म में बक्का का किरदार निभाने के लिए पूरब कोहली ने काफी मेहनत की है। वहीं, कई रशियन और जर्मन फिल्मों में काम कर चुकीं साइदा जूल्स 'जल' में गोरी मैडम के अंदाज में खूब जमी हैं। यशपाल गाइड के रोल में फिट बैठते हैं। इन स्टार्स के अलावा तनिष्ठा चटर्जी, कीर्ति, कुल्हारी, रवि गोसाई, राहुल सिंह और रसिका त्यागी ने भी ठीक-ठाक रोल किया है। कीर्ति कुल्हारी ने फिल्म में कुछ बोल्ड सीन्स देकर सबका ध्यान अपनी ओर खींचने की कोशिश की है। वहीं, मुकुल देव को हर बार की तरह इस बार भी कुछ नया करने को नहीं मिला। निर्देशन: फिल्म के निर्देशक गिरीश मलिक हैं। 'जल' को लेकर गिरीश की तारीफ करनी होगी कि उन्होंने एक ऐसी फिल्म बनाने का साहस किया, जिसे ज्यादा दर्शक मिलना मुश्किल है। उनकी यह फिल्म एक खास क्लास के लिए है। गिरीश ने फिल्म के सभी स्टार्स से अच्छा काम लिया है। हालांकि, उनकी यह फिल्म आज के जमाने के हिसाब से काफी स्लो लगती है। फिल्म को देखते हुए कई बार ऐसा महसूस होता है कि कहीं हम कोई डॉक्युमेंट्री तो नहीं देख रहे हैं। क्यों देखें फिल्म? अगर आप लीक से हटकर कोई फिल्म देखना चाहते हैं और फिल्म को देखते हुए ज्यादा हंसना भी नहीं चाहते, तो इस फिल्म को देखने के लिए आप सिनेमाघर जा सकते हैं। बड़े पर्दे पर बड़े सितारों और एक्शन-कॉमेडी देखने वाले दर्शकों के लिए यह फिल्म नहीं है :......... साभार :.........
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![]() 'मैं तेरा हीरो' :.... ![]() Genre: कॉमेडी, Director: डेविड धवन, Plot: फिल्म में वरुण कभी सलमान को कॉपी करते नजर आते हैं तो अगले ही पल वो शाहिद और गोविंदा को कॉपी करते दिखते हैं। वरुण धवन की 'मैं तेरा हीरो' समाज को संदेश देती है कि अब समय आ गया है कि हम बेसिर-पैर की फिल्में देखना बंद करें, या फिर फिल्म निर्माता ऐसी फिल्में बनाना शुरू कर देंगे जिन्हें 15 मिनट भी बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। अगर आपने फिल्म देखने के दौरान 1 प्रतिशत भी दिमाग लगाया तो इस बात की पूरी संभावना है कि फिल्म खत्म होने के पहले आप सिनेमा हॉल से बाहर आ जाएंगे। निर्देशक डेविड धवन ने यह जताने की कोशिश की है कि सलमान खान, गोविंदा, शाहिद कपूर, अक्षय कुमार, इन सभी की एक्टिंग का मिक्सचर वरुण धवन में है, जबकि वो केवल उनकी कॉपी करते हैं। फिल्म शुरू होती है वरुण के डायलॉग के साथ। भाई कहते हैं, 'मुझ पर एक अहसान करना, मुझ पर कोई अहसान मत करना।' इसमें कोई शक नहीं कि पिता-पुत्र की जोड़ी ने सलमान की 'रेडी' से प्रभावित होकर 'मैं तेरा हीरो' बनाई है। फिल्म की लोकेशन के साथ-साथ एक्शन सीन भी कुछ हद तक सलमान की फिल्म से मेल खाते हैं। फिल्म के गाने और ट्रेलर से लग रहा था कि वरुण के पास ये अच्छा मौका होगा कि वो खुद को साबित कर नए एक्टर्स की लिस्ट में एंट्री मार लेंगे, लेकिन फिल्म देखने के बाद उनके फैन्स को निराश ही हाथ लगेगी। कैसा है डेविड धवन का निर्देशन : एक साथ काम कर रहे दोनों धवन, पिता-पुत्र की जोड़ी ने फिल्म में जरूरत से ज्यादा मसाला डालने की कोशिश की है। यह फिल्म भी डेविड धवन की पहले की फिल्मों कुछ अलग नहीं है। आप फिल्म के कुछ सीन देखकर ही जान सकते हैं कि आगे क्या होने वाला है। अगर बात करें बिना सिर पैर की कॉमेडी की, तो डेविड धवन की इस फिल्म में ये भरपूर है। कुछ सीन्स पर तो विश्वास करना तक मुश्किल है। एक्टिंग : 'मैं तेरा हीरो' की सबसे अच्छी बात यह है कि वरुण की अदाकारी ने फिल्म में पूरी तरह से एनर्जी भर दी है। वह एक अच्छे अभिनेता हैं और उनका स्क्रीन पर प्रदर्शन बेहतरीन है, लेकिन वह अपने पिता की फिल्म में खुद को साबित करने में असफल रहे। फिल्म में एक समय ऐसा लगता है कि वरुण कभी सलमान को कॉपी कर रहे हैं और एक वक़्त लगता है कि शाहिद कपूर और गोविंदा को। फिल्म में वरुण और इलियाना की केमेस्ट्री देखने लायक है। इसके लिए दोनों को एक-एक स्टार दिया जा सकता है। वरुण को अपने को-एक्टर्स रणबीर और रनबीर से सीखने की आवश्यकता है। बड़ा सवाल - क्या ये फिल्म देखनी चाहिए? : हम बस इतना कह सकते हैं- वरुण, भाई (सलमान) सही कहते हैं, 'हम पर एक अहसान करना, ये अहसान दोबारा मत करना।'' फिल्म न देखने के पांच कारण : 1. इस फिल्म में किसी भी तरह का सरप्राइज एलिमेंट नहीं है। 2. फिल्म में वरुण धवन, सलमान, गोविंदा और यहां तक कि शाहिद कपूर को कॉपी करते नजर आ रहे हैं। 3. फिल्म की स्टोरी हजम करने में दर्शकों को मुश्किल हो सकती है। 4. सेकंड हाफ में फिल्म बोरिंग है और देखते नहीं बनती। 5. फिल्म में ह्यूमर एलिमेंट मिसिंग है:......... साभार :.........
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![]() 'मैं तेरा हीरो' :.... ![]() Genre: ड्रामा, Director: सैयद अहमद अफजल, Plot: इस फिल्मी फ्राइडे सैयद अहमद अफजल डायरेक्टेड 'यंगिस्तान' फिल्म भी रिलीज हो गई है। फिल्म में जैकी भगनानी और नेहा शर्मा लीड रोल में हैं। एक नौजवान को उसके पिता के निधन के बाद फोर्स करते हुए भारत का प्रधानमंत्री बना दिया गया है। यह नौजवान राजनीति की जटिलता से अंजान है। इसके चलते इस यंग पीएम को कई प्रकार की दिक्कतों का भी सामना करना पड़ता है, लेकिन बाद में उसकी अच्छी नीतियां, चालाकी भरी राजनीति और रणनीतियां उसे देश का लोकप्रिय नेता बना देती हैं। हां, हमने वास्तविक जीवन में राजनीति में ऐसी स्थितियों को देखा है। इस तरह की स्टोरी पर बेस्ड हमने कई फिल्में और टीवी सीरियल्स भी देखे हैं। अब जैकी भगनानी स्टारर फिल्म ‘यंगिस्तान’ बॉक्स ऑफिस पर पुराने कॉन्सेप्ट के साथ किस्मत आजमाने को तैयार है, लेकिन असली सवाल तो ये है कि क्या दर्शक पुराने कॉन्सेप्ट वाली इस फिल्म को पसंद करेंगे। जैकी भगनानी का रोल कैसा है? क्या राहुल गांधी से मिलता है रोल? : जैकी भगनानी ने फिल्म में अच्छी परफॉर्मेंस दी है। फिल्म के कुछ एक सीन्स को छोड़ दिया जाए, तो ज्यादातर सीन्स में जैकी ने अपने किरदार के साथ अच्छा न्याय किया है। वैसे, इस बात पर आश्चर्य होता है कि उन्होंने अपने शुरुआती फिल्मी करियर में इस तरह की फिल्म में काम किया, जिसमें उन्होंने स्पीच देने और देश को बदलने की बात की है। फिल्म में जैकी ने अभिमन्यु कौल का किरदार निभाया है, जिसमें राहुल गांधी की झलक दिखाई पड़ती है। फिल्म में उन्होंने राहुल की तरह ड्रेस पहनी है और उन्हीं की तरह वह बात करते हुए स्पीच दे रहे हैं। इस फिल्म में प्रणव मुखर्जी और पी. चिदंबरम से मिलते-जुलते किरदार भी हैं। फिल्म में नेहा शर्मा कैसी हैं? : 'यंगिस्तान' में नेहा शर्मा ने अपने अभिनय से निराश किया है। वैसे, फिल्म में उनकी एक्टिंग से ज्यादा उनके किरदार को दोषी ठहराया जाना चाहिए। फिल्म में जिस-जिस सीन में नेहा हैं, उस-उस सीन में शायद आप अपने आसपास बैठे दोस्तों या फैमिली से बात करना पसंद करेंगे। फिल्म के एक सीन में ही नेहा थोड़ी अच्छी लगी हैं, जिसमें वह पीएम अभिमन्यु (जैकी भगनानी) को सुबह 4 बजे मटका कुल्फी खाने के लिए फोर्स करती हैं। फिल्म में कुछ नया है क्या ? : अभी चुनाव का समय है और हर फिल्ममेकर देश के मूड को भुनाना चाहता है। फिल्म की पूरी कहानी उम्मीद के मुताबिक है। फिल्म के क्लाइमैक्स का ज्यादातर लोग इंटरवल से पहले ही अंदाजा लगा सकते हैं। हालांकि, फिल्म में कहीं-कहीं ऐसे ट्विस्ट भी है, जिससे दर्शक फिल्म से आखिर तक जुड़े रहेंगे। कैसा है फिल्म का निर्देशन? : फिल्म के निर्देशक सैयद अहमद अफजल हैं। इनकी फिल्म पर अच्छी पकड़ रही है। हालांकि, कहीं-कहीं फिल्म की कहानी कमजोर जरूर है, लेकिन जैकी ने अपने रोल से उस कमी पर पर्दा डाला है। बड़ा सवाल- क्यों देखें यंगिस्तान ? : अगर आप इस बात को लेकर कंफ्यूज हैं कि इस सप्ताह रिलीज हुई फिल्मों में से आप किस फिल्म को देखें, तो निश्चित रूप से ‘यंगिस्तान’ फिल्म आपके लिए बेहतरीन ऑप्शन है। हां, इस फिल्म को अगर आप ज्यादा उम्मीद के साथ देखेंगे, तो शायद यह फिल्म आपको ज्यादा पसंद न आए :......... साभार :.........
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![]() 'ओ तेरी' :.... ![]() Genre: कॉमेडी, Director: उमेश बिष्ट, Plot: कॉमनवेल्थ घोटाले पर आधारित है ओ तेरी की कहानी? 'ओ तेरी' सलमान खान के जीजा अतुल अग्निहोत्री की फिल्म है, जिसमें एक अच्छे मुद्दे को भयानक तरीके से मार डाला गया है। एक ऐसी फिल्म जिसमें एक मृत बॉडी कई दिनों तक मुस्कुरा रही है, लेकिन सड़ नहीं रही है। एक ऐसी फिल्म जिसके लीड कैरेक्टर का नाम एड्स है। एक ऐसी फिल्म जिसमें हर चीज को अतिश्योक्तिपूर्ण तरीके से पेश किया गया है, जो आज के समय के हिसाब से सिर पर से जाता है। 'ओ तेरी' जैसी फिल्मों के लिए यह समय बिल्कुल भी सही नहीं है, जबकि देश में घोटालों का बाजार गर्म है। प्रोड्यूसर्स को देश के मूड को समझना चाहिए। आने वाले चुनावों का ध्यान रखना चाहिए। एक ही बार में सभी घोटालों को शामिल करने के प्रयास में डायरेक्टर उमेश बिष्ट ने इसे अव्यवस्थित और भ्रमित प्रसंग बना दिया है। हम समझते हैं कि यह एक हंसोड़ पटकथा है, लेकिन फिल्म में प्रमुख पात्रों का व्यवहार कुछ हजम नहीं होता है, खास तौर से जब वे कॉमिक मूड से सीरियस मूड में आते हैं। एक प्वाइंट के बाद हमें यह लगने लगता है कि इसके प्रमुख पात्र पीपी (पुलकित सम्राट) और एड्स (बिलाल अमरोही) क्या नई स्टूपिड हरकत करने वाले हैं। क्या कॉमनवेल्थ घोटाले पर पर आधारित है फिल्म? : फिल्म निर्माता इस बात का दावा कर सकते हैं कि इसकी कहानी किसी भी वास्तविक घोटाले पर आधारित नहीं है और इसके चरित्र वास्तविक जीवन के किसी भी चरित्र से संबंध नहीं रखते हैं, लेकिन इसमें लोगों और घोटालों से जुड़े हड़ताली दृश्य फिल्माए गए हैं। आप जिस भी घोटाले के बारे में सोचेंगे, उसे इस फिल्म में पाएंगे। नीरा राडिया के टेप कांड से कॉमनवेल्थ घोटाले तक, सभी घोटालों की खिचड़ी डायरेक्टर ने इस फिल्म में पकाई है। क्या यह एक देशभक्ति से भरी फिल्म है ? : डायरेक्टर ने फिल्म के माध्यम से देशभक्ति का संदेश देने की कोशिश की है और हर भारतीय को देश से जुड़ी समस्याओं के बारे में सोचने की सलाह दी है। हालांकि, फिल्म देखने के बाद हम सिर्फ यही सोचते हैं कि एक डेड बॉडी मुस्कुरा कैसे सकती है ? क्यों एक गे पॉलिटिशियन (विपक्ष का नेता) अपने पुरुष मित्र से मिलने के लिए एक घटिया होटल का सहारा लेता है ? हम समझ सकते हैं कि जब सलमान खान का नाम किसी फिल्म से जुड़ा होता है, तो हम ज्यादा दिमाग नहीं लगाते, लेकिन जब रील और रियल लाइफ में हड़ताली कैरेक्टर में इतनी असमानता हो तो पचाने में काफी मुश्किल होती है। लूलिया वंतूर का आइटम नंबर क्यों? : फिल्म में सलमान खान की कथित गर्लफ्रेंड लूलिया वंतूर का आइटम नंबर देखने को मिलता है। अब यह बात तो सिर्फ सलमान ही बता सकते हैं कि इस आइटम नंबर की ज़रूरत क्या थी। इतना ही नहीं, फिल्म में कुछ गानों को जबरदस्ती डाला गया है, ताकि कहानी लंबी खिंच सके। बड़ा सवाल : क्या आपको यह फिल्म देखनी चाहिए? : 'ओ तेरी' देखने के लिए आपको पैसे खर्च करने की ज़रूरत नहीं है। टीवी पर आने वाली न्यूज़ डिबेट करप्शन पर आधारित इस हंसोड़ फिल्म से ज्यादा एंटरटेनिंग होती है :......... साभार :.........
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![]() 'भूतनाथ रिटर्न्स' :.... ![]() Genre: हॉरर कॉमेडी, Director: नितेश तिवारी, Plot: इस फिल्मी फ्राइडे अमिताभ बच्चन स्टारर और साल 2014 की मोस्ट अवेटेड फिल्म ‘भूतनाथ रिटर्न्स’ रिलीज हो गई है। अमिताभ की इस फिल्म को देखने के बाद सबसे पहले यह फील होता है कि इस फिल्म का नाम ‘भूतनाथ रिटर्न्स’ होने के बजाय ‘इलेक्शन रिटर्न्स’ या फिर ‘एनी बडी कैन वोट’ होना चाहिए था। वहीं, इस फिल्म को देखकर ऐसा भी महसूस होता है कि नितेश तिवारी दूसरे हाफ में यह भूल गए हैं कि अमिताभ फिल्म में भूत की भूमिका निभा रहे हैं। नितेश के निर्देशन में बनी ‘भूतनाथ रिटर्न्स’ में कई खामियां हैं, लेकिन अमिताभ बच्चन, बोमन ईरानी और चाइल्ड आर्टिस्ट पार्थ भालेराव की परफॉर्मेंस फिल्म को देखने लायक बनाती है। ‘भूतनाथ’ का मूल विचार इस फिल्म के सीक्वल में खोया हुआ लगता है। फिल्म के शुरुआती 45 मिनट को छोड़ दिया जाए, तो ‘भूतनाथ रिटर्न्स’ एक गंभीर और राजनीतिक विषय पर आधारित फिल्म है। अमिताभ बच्चन फिल्म में स्पीच देते हुए लोगों को मतदान करने के बारे में समझाते हैं। इन शॉर्ट कहा जाए, तो वह फिल्म में चुनाव का प्रचार करते हुए दिख रहे हैं। वास्तव में, चुनाव आयोग वोटरों की संख्या बढ़ाने में इस फिल्म का उपयोग कर सकता है। वैसे, कुछ दिनों बाद आप ये सुनें कि ‘भूतनाथ रिटर्न्स’ एंटरटेनमेंट टैक्स फ्री हो गई है, तो आप चौंकिएगा मत। कहानी : 'भूतनाथ रिटर्न्स' की कहानी वहां से शुरू होती है, जब भूतनाथ दुनिया से विदा लेकर स्वर्ग पहुंच जाता है। यहां पर पहले से मौजूद भूत उसका मजाक उड़ाते हैं। सारे भूत, भूतनाथ (अमिताभ) को यह कहकर चिढ़ाते हैं कि वो एक बच्चे को नहीं डरा पाया और उसने कैसे भूतों का मजाक बना दिया। अब भूतनाथ काफी निराश है और वो भगवान से कहता है कि वो उन्हें एक और मौका दे खुद को साबित करने का। भगवान भी उनकी सुन लेते हैं और भूतनाथ को दोबारा धरती पर बच्चों को डराने के लिए भेज देते हैं। इस बार भूतनाथ की मुलाकात अखरोट (पार्थ) से होती है। अखरोट भूतनाथ को देख सकता है। अखरोट कई बार मुश्किलों में भी फंसता है, लेकिन भूतनाथ उसकी बार-बार मदद करता है और साथ में देश को सुधारने के प्रयास में भी जुट जाता है। भूतनाथ के काम में अखरोट और मिष्टी बेहुद (संजय मिश्रा) उनका पूरा साथ देते हैंं। फिल्म में कहीं-कहीं कुछ दिलचस्प मोड़ और कॉमेडी सीक्वेंस हैं, जिन्हें देखकर आप हंसने पर मजूबर हो सकते हैं। वैसे, भूतनाथ जी फिल्म में और क्या-क्या करते हैं, इसे जानने के लिए आपको सिनेमाघर का रुख करना पड़ेगा। क्या यह एक और राजनीतिक फिल्म है ? : देश के मूड को ध्यान में रखते हुए इस साल कई पॉलिटिकल फिल्में रिलीज हुई हैं, तो कुछ होंगी। ‘जय हो’, ‘यंगिस्तान’, ‘ओ तेरी’ जैसी कई और फिल्में हैं, जिन्हें राजनीति से रिलेट करते हुए बनाया गया है या बनाया जा रहा है। वैसे, ‘भूतनाथ रिटर्न्स’ भी इस लिस्ट में शामिल हुई एक और फिल्म है। फिल्म का आइडिया और कॉन्सेप्ट नया नहीं है। इस फिल्म में उन भ्रष्ट राजनेताओं को चैलेंज किया गया है, जो पात्र और ईमानदार नहीं होने के बावजूद चुनाव लड़ते हैं। फिल्म के क्लाइमैक्स में आम जनता को भ्रष्ट राजनीति का पाठ पढ़ाया जाता है। फिल्म की स्क्रिप्ट उम्मीद के मुताबिक है। यहां फर्क सिर्फ इतना है कि हीरो एक भूत है। हालांकि, निर्देशक नितेश तिवारी ने फिल्म को अच्छा बनाने की पूरी कोशिश की है। फिल्म में एक अच्छा संदेश है, जो शेयर करने लायक है। अमिताभ बच्चन का रोल कैसा है ? क्या वह फिल्म के बेस्ट एक्टर हैं ? नए बच्चों के साथ उनकी बॉन्डिंग कैसी है? : दूसरे पार्ट में अमिताभ की बॉन्डिंग बैक सीट पर है और राजनीति ड्राइविंग सीट पर। फिल्म में अमिताभ ने जबरदस्त अभिनय किया है। वहीं, बोमन ईरानी ने भी फिल्म में भ्रष्ट राजनेता के रोल को अच्छे से किया है। वह अभिनय के मामले में कहीं पीछे नहीं रहे हैं। हां, इस फिल्म का सबसे बड़ा स्टार चाइल्ड आर्टिस्ट पार्थ भालेराव है, जिसने शानदार एक्टिंग की है। शाहरुख खान और रणबीर कपूर भी फिल्म का हिस्सा हैं ? : शाहरुख खान और रणबीर कपूर फिल्म में कुछ ही सेकंड्स के लिए हैं। अनुराग कश्यप ने भी 'भूतनाथ रिटर्न्स' में कैमियो किया है। कैसा है फिल्म का म्यूजिक? : फिल्म के सिर्फ दो गाने ही ऐसे हैं, जो सुनने में अच्छे हैं। फिल्म के कुछ और सॉन्ग्स, फिल्म में बिना वजह के लगते हैं। इन गानों के बिना भी फिल्म बनाई जा सकती थी। बड़ा सवाल- क्यों देखें फिल्म? : यह एक अलग किस्म की फिल्म है, थीम के हिसाब से। इस फिल्म को आप अमिताभ बच्चन, बोमन ईरानी और चाइल्ड आर्टिस्ट पार्थ भालेराव के शानदार अभिनय के चलते देख सकते हैं। हां, इस फिल्म से ‘भूतनाथ’ जैसी उम्मीद मत रखिएगा। 'भूतनाथ रिटर्न्स' चुनावी मौसम में रिलीज हुई है और यह फिल्म पोल कैंपेन से डील भी करती है, इसलिए भी इस फिल्म को देखा जा सकता है। हालांकि, फिल्म में कई खामियां भी हैं, लेकिन अमिताभ, बोमन और पार्थ के अच्छे अभिनय के चलते वो ज्यादा हाइलाइट नहीं होती हैं :......... साभार :.........
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![]() 'टू स्टेट्स' :.... ![]() Genre: रोमांस/ड्रामा, Director: अभिषेक वर्मन, Plot :चेतन भगत के नॉवेल 'टू स्टेट्स' पर आधारित फिल्म टू स्टेट्स रिलीज़ हो गई है। कहानी : फिल्म की कहानी कृष मल्होत्रा (अर्जुन कपूर) और अनन्या स्वामीनाथन (आलिया भट्ट) के इर्द-गिर्द घूमती है।दोनों की मुलाकात आईआईएम, अहमदाबाद में होती है। दोनों एक-दूसरे से बेहद प्यार करने लगते हैं। कोर्स ख़त्म होते-होते दोनों शादी करने का फैसला कर लेते हैं, मगर असली मुसीबतों का दौर यहीं से शुरू होता है। आमतौर पर लड़का और लड़की राजी हों तो शादी हो जाती है, मगर इंडिया में ऐसा नहीं होता। यहां लड़का लड़की को प्यार करता है। लड़की लड़के को प्यार करती है। लड़की के परिवार के लिए भी लड़के को प्यार करना जरूरी है। लड़के के परिवार को भी लड़की को प्यार करना जरूरी है। लड़के के परिवार को लड़की का परिवार पसंद आना भी जरूरी है तो लड़की की फैमिली को भी लड़के की फैमिली पसंद आना जरूरी है। कृष-अनन्या की लव स्टोरी में भी यहीं से ट्विस्ट आता है। दोनों की फैमिली एक-दूसरे को फूटी आंख तक देखना नहीं चाहती। ऐसे में, इनकी लव स्टोरी किस अंजाम तक पहुंच पाती है, यह देखने के लिए आपको सिनेमाघर का रुख करना पड़ेगा। कैसी है एक्टिंग : पिछले दिनों आई कई बेसिर-पैर की फिल्मों के बीच 'टू स्टेट्स' दर्शकों के लिए एक राहत लेकर आई है। फिल्म में एक बढ़िया कहानी है और उससे भी ज्यादा दमदार कलाकारों की एक्टिंग है। अनन्या के किरदार में आलिया बेहतरीन लगी हैं। 'हाईवे' के बाद उन्होंने एक बार फिर साबित कर दिया है कि वह एक एक्टिंग के मामले में बहुत आगे जाने वाली हैं। इस फिल्म में उनकी परफॉरमेंस उन्हें बॉलीवुड की टॉप अभिनेत्रियों की लिस्ट में लाकर खड़ा कर देगी। वहीं, 'इशकजादे' और 'गुंडे' जैसी फिल्मों में रफ-टफ किरदार निभाने वाले अर्जुन ने कृष के रोल में जान डाल दी है। एक सीधे-सादे मासूम से कृष के रूप में अर्जुन को देखकर आप उनसे इम्प्रेस हुए बिना रह नहीं पाएंगे। आलिया के साथ अर्जुन की केमिस्ट्री भी शानदार है। बाकी कलाकारों में रोनित रॉय, अमृता सिंह और रेवती ने भी अपने किरदारों के साथ न्याय किया है। कैसा है निर्देशन : किसी नॉवेल पर फिल्म बनाना आसान नहीं होता, क्योंकि लोग फिल्म की कहानी से पहले से ही वाकिफ होते हैं। ऐसे में अभिषेक वर्मन तारीफ के काबिल हैं, जिन्होंने फिल्म का बिलकुल सटीक निर्देशन किया। अगर आपने चेतन भगत का नॉवेल पढ़ा भी है तो भी आप फिल्म से बोर नहीं होंगे। हां, जिन्होंने 'टू स्टेट्स' उपन्यास नहीं पढ़ा, उन्हें फिल्म देखने में और मजा आएगा। क्या देखने लायक है फिल्म ? ‘टू स्टेट्स’ एक कम्प्लीट फैमिली एंटरटेनिंग फिल्म है। फिल्म यूथ बेस्ड सब्जेक्ट पर आधारित है और इसमें मारधाड़, गाली-गलौच जैसा कुछ भी नहीं। अगर आपने नॉवेल पढ़ी है तो भी आप फिल्म को देख सकते हैं :......... दैनिक भास्कर के सौजन्य से :.........
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![]() 'देख तमाशा देख' :.... ![]() Genre: राजनीतिक व्यंग्य, Director: फिरोज अब्बास खान, Star Cast: सतीश कौशिक, गणेश यादव, तन्वी आजमी, विनय जैन, संतोष जुवेकर : Plot :फिल्म की कहानी एक आम आदमी के अंतिम संस्कार के इर्द-गिर्द घूमती नजर आती है। फिल्म में ऐसी कहानी को दर्शकों के सामने परोसा गया है, जो धार्मिक, सामाजिक, राजनीतिक और मीडिया के विरोधाभासों को उजागर करती है। कहानी : फिल्म की कहानी एक आम आदमी के अंतिम संस्कार के इर्द-गिर्द घूमती नजर आती है। किशन नाम का एक हिन्दू युवक धर्म परिवर्तन कर एक मुस्लिम लड़की से शादी करता है। इस दौरान वह अपना नाम हमीद रख लेता है। एक दिन एक नेता का भारी भरकम कट आउट भरभराकर किशन के ऊपर गिर पड़ता है, जिससे उसकी मौत हो जाती है। असली तमाशा यहीं से शुरू होता है। एक ओर हिन्दू जहां उसे किशन बताते हुए जलाने की बात करते हैं, तो वहीं मुस्लिम हमीद बताते हुए दफनाने को बोलते हैं। मामला इतना बिगड़ता है कि अदालत तक पहुंच जाता है। यहां किशन का जन्म, शादी, मृत्यु, यहां तक कि खतने का प्रमाणपत्र अदालत द्वारा मांगा जाता है। कोर्ट के इस आदेश के बाद घटनाएं घटती जाती हैं और सफेदपोशों के नकाब हटते जाते हैं। कैसी है एक्टिंग : सतीश कौशिक, विनोद यादव और तनवी आजमी ने काफी शानदार अभिनय किया है। फिल्म में सतीश कौशिक को छोड़कर कोई अन्य नामचीन कलाकार नहीं है, जिसकी कमी दर्शकों को खल सकती है। कैसा है निर्देशन : सभी जानते हैं कि फिरोज अब्बास खान 'गांधी माय फादर' और 'मेरी अमृता' जैसी फिल्मों के लिए नेशनल अवॉर्ड जीत चुके हैं। 'देख तमाशा देख' को उन्होंने कुछ इस तरह निर्देशित किया है कि ऑडियंस सोचने को मजबूर हो जाती है। उन्होंने बिना कोई फ़िल्मी प्रैक्टिकल किए बड़े ही सादगीपूर्ण तरीके से इसे पेश किया है। फिल्म के संवाद और डायलॉग्स बड़ी ही सूझबूझ के साथ लिखे गए हैं। क्या देखने लायक है फिल्म ? यदि आप सामाजिक और राजनीतिक व्यंग्य पसंद करते हैं, तो आप यह फिल्म देख सकते हैं। 'देख तमाशा देख' का तमाशा एक खास वर्ग के लिए है। यदि आप मसाला फिल्मों के शौकीन हैं, तो यह फिल्म आपके लिए नहीं है। :......... दैनिक भास्कर के सौजन्य से :.........
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![]() 'कांची' :.... ![]() Genre: ड्रामा/रोमांस, Director: सुभाष घई, Star Cast: मिष्ठी,कार्तिक तिवारी,ऋषि कपूर,मिथुन चक्रवर्ती,आदिल हुसैन,चंदन रॉय सान्याल : Plot :शो मैन के नाम से मशहूर सुभाष घई काफी लंबे समय बाद सिल्वर स्क्रीन पर 'कांची' के साथ उतरे हैं। कहानी : यह कहानी है एक मासूम लड़की कांची की जो जिंदगी को भरपूर जीना चाहती है। वह उत्तरांचल के छोटे से शहर कोशाम्पा में रहती है। उसे अपने लड़की होने पर गर्व है मगर बचपन से ही वह सुनती आ रही है कि लड़कियां ये नहीं कर सकतीं, वो नहीं कर सकतीं, यहां नहीं जा सकतीं,वहां नहीं जा सकतीं,गालियां नहीं दे सकतीं। यानी अपनी मर्जी से कुछ नहीं कर सकतीं। इतनी बंदिशों के बीच कांची का मन व्याकुल हो जाता है और वह सबसे केवल एक सवाल करती है कि लड़कियां जीती भी हैं या नहीं? वह ठान लेती है कि वह कुछ ऐसा करेगी जिससे वह समाज में अपने होने का अहसास करा सके ताकि लड़कियों के प्रति समाज की सोच बदल सके। कांची की इस अस्तित्व की लड़ाई में उसका सामना समाज के पावरफुल लोगों से होता है। उसकी लड़ाई में कई मुश्किल दौर आते हैं मगर वह इनसे नहीं घबराती और आगे बढ़ती जाती है। अच्छे-बुरे की लड़ाई में कांची की जीत होती या नहीं? इसे देखने के लिए आपको सिनेमाघर का रुख करना पड़ेगा। कैसा है निर्देशन : सुभाष घई जिस क्लास के निर्देशक माने जाते हैं, उसके हिसाब से उनकी यह फिल्म बेहद कमजोर है। यकीन नहीं होता कि 'कालीचरण','क़र्ज़', 'हीरो' ,'राम-लखन','परदेस' और 'ताल' जैसी बेहतरीन फिल्में बनाने वाले सुभाष जी 'कांची' जैसी कमजोर फिल्म बना सकते हैं। फिल्म की कहानी में नयापन नहीं और ऐसे सब्जेक्ट पर हम पहले भी कई फिल्में देख चुके हैं। हां, फिल्म में एक खास बात जरूर है कि सुभाष घई की पिछली फिल्मों की तरह इस फिल्म में भी महिला का किरदार बेहद सशक्त है। साथ ही इसमें देशभक्ति के कुछ दृश्य भी आपको देखने को मिलेंगे जैसे सुभाष घई की पिछली फिल्मों में देखने को मिले थे। कैसी है एक्टिंग : इसमें कोई शक नहीं कि इस फिल्म से डेब्यू कर रही मिष्ठी ने अच्छा काम किया है। वह एक दमदार किरदार में नजर आई हैं। पूरी फिल्म उनके ही इर्द-गिर्द घूमती है। परदे पर मिष्ठी विश्वास से भरी लगती हैं और उनकी एक्टिंग भी अच्छी है। वहीं, उनके प्रेमी का किरदार निभा रहे कार्तिक तिवारी ने ठीक-ठाक काम किया है। मिष्ठी और उनकी केमिस्ट्री अच्छी है और रोमांटिक सीन्स अच्छे हैं। क्यों देखें : अगर सुभाष घई की फिल्मों के फैन हैं तो आपको इस फिल्म से निराशा ही हाथ लगेगी। फिल्म में कलाकारों की एक्टिंग अच्छी है इसलिए इसे एक बार देखा जा सकता है :......... दैनिक भास्कर के सौजन्य से :.........
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![]() 'सम्राट एंड कंपनी' :.... ![]() Genre: सस्पेंस, Director: कौशिक घटक, Star Cast: राजीव खंडेलवाल, मदालसा शर्मा, गोपाल दत्त : Plot :फिल्म की कहानी है डिम्पी सिंह (मदालसा शर्मा) की जो अपने घर में होने वाली अजीबोगरीब घटनाओं से बेहद परेशान है। उसे लगता है कि घर में भूत प्रेत का साया है। कहानी : फिल्म की कहानी है डिम्पी सिंह (मदालसा शर्मा) की जो अपने घर में होने वाली अजीबोगरीब घटनाओं से बेहद परेशान है। उसे लगता है कि घर में भूत-प्रेत का साया है। इस मुसीबत का हल पाने के लिए वह डिटेक्टिव एजेंसी चला रहे सम्राट एंड कंपनी के हेड सम्राट(राजीव खंडेलवाल) से संपर्क करती है। सम्राट डिम्पी की मदद करने के लिए उसके घर आता है जहां उसे भी कुछ रहस्यमयी चीजें दिखाई पड़ती हैं। स्थिति तब और मुश्किल हो जाती है जब घर में एक व्यक्ति का मर्डर हो जाता है। इन सबके पीछे किसका हाथ है, आखिर क्यों हो रही हैं घर में अजीबोगरीब वारदातें? सम्राट इसी की पड़ताल करता है,क्या वह इसका कारण खोज पाता है? फिल्म में यही दिखाया गया है। कैसी है एक्टिंग : अपनी एक्टिंग स्किल्स से राजीव खंडेलवाल ने हमेशा ही अपने फैन्स को इम्प्रेस किया है। इस फिल्म में भी उनकी एक्टिंग बढ़िया है। डिटेक्टिव के रोल में राजीव बिल्कुल फिट बैठे हैं। नई एक्ट्रेस मदालसा शर्मा की एक्टिंग कमजोर है। क्यों देखें : राजीव की एक्टिंग फिल्म की USP है मगर फिल्म की कहानी कमजोर है. ऐसी फिल्मों में जबरदस्त सस्पेंस की उम्मीद की जाती है मगर इस फिल्म में आगे क्या होने वाला है आप आसानी से पहले ही भांप जाते हैं। कुल मिलाकर कहा जाए तो फिल्म अच्छी बन सकती थी मगर निर्देशक कहीं-कहीं चूक गए जिसकी वजह से फिल्म में वो बात नहीं आ पाई जिसकी आप उम्मीद करते हैं। ऐसी फिल्में सिनेमाघर में जाने के बजाए कुछ समय बाद टेलीविजन पर ही देख ली जाएं तो बेहतर रहता है :......... दैनिक भास्कर के सौजन्य से :.........
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