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24-02-2013, 12:56 AM | #1 |
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मुहब्बत ही न जो समझे वो जालिम...
तलत महमूद को जन्म दिवस पर आदरांजलि
मुहब्बत ही न जो समझे वो जालिम... हिंदी फिल्मी दुनिया में कई अजर अमर गायक आए जिन्होंने अपनी आवाज से लाखों करोड़ों दिलों पर राज किया। ऐसे ही एक गायक तलत महमूद जिनको मखमली (रेशमी) आवाज का जादूगर कहा जाता था। यह कहना गलत नहीं है कि भगवान ने इंसान को दिल दिया और इस दिल को रुलाने-तड़पाने के लिए तलत महमूद नामक मुलायम हथियार जमीन पर भेज दिया। दर्द महमूद के गीतों की आत्मा है। परम सुख और दिली खुशियों से महमूद का दूर का रिश्ता तक नहीं था। अपार दुख और व्यथा उनके गीतों का स्थाई भाव रहा है। गजल गायक के रूप कॅरियर की शुरुआत करने वाले तलत महमूद की आवाज उस दौर के अन्य गायकों से बिल्कुल अलग और अनोखी थी। जहां आवाज का उतार-चढाव उनके गायन की विशेषता थी, वहीं उन्होंने अपने आप को उस जमाने के सजीले और आकर्षक नायकों में भी शुमार किया।
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु |
24-02-2013, 12:57 AM | #2 |
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Re: मुहब्बत ही न जो समझे वो जालिम...
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24-02-2013, 12:58 AM | #3 |
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Re: मुहब्बत ही न जो समझे वो जालिम...
जीवन परिचय
तलत महमूद का जन्म लखनऊ (उत्तर प्रदेश) के एक खानदानी मुस्लिम परिवार में 24 फरवरी,1924 को मंजूर महमूद के घर हुआ था। तीन बहन और दो भाईयों के बाद तलत महमूद छठी संतान थे। घर में संगीत और कला का सुसंस्कृत परिवेश उनको मिला। महमूद को कुदरत ने रेशमी आवाज से नवाजा था। उनकी आवाज की अनोखी लरजिश ने उनको सिने - गजल गायिकी में एक अलग मुकाम दिलाया। मारिस म्यूजिक कालेज से संगीत की शिक्षा के दौरान महज 16 साल की उम्र में उनको आॅल इंडिया रेडियो पर गाने का मौका मिला। कहते हैं हीरे की परख जौहरी ही जानता है। वैसे ही वर्ष 1941 में एचएमवी ने उनकी आवाज में पहला एलबम निकाला। सब दिन एक समान नहीं होते। उनकी गजल ‘तस्वीर तेरी दिल मेरा बहला न सकेगी’ ने उनकी पहचान हिंदुस्तान के कोने-कोने में फैला दी। 9 मई,1998 को दुनिया से रुखसत हुए महमूद साहब की याद उनके लाखों प्रशंसकों के दिलों में आज भी जिंदा है और हमेशा रहेगी।
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24-02-2013, 01:00 AM | #4 |
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Re: मुहब्बत ही न जो समझे वो जालिम...
बुआ ने पहचाना हुनर
बुआ को तलत की आवाज की पसंद थी। भतीजे तलत प्रोत्साहन पाकर गायन के प्रति आकर्षित होने लगे। इसी रुझान के चलते मोरिस संगीत विद्यालय (वर्तमान में भातखंडे संगीत विद्यालय) में दाखिला लिया। उनकी गायिकी का अंदाज अलग था। जब वह अपनी मखमली आवाज से अनोखे अंदाज में गजल गाते थे तो गजल की असली मिठास का अहसास होता था। उनकी भाषा पर अच्छी पकड़ थी और उनको पता था कि किस शब्द पर जोर देना है।
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24-02-2013, 01:00 AM | #5 |
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Re: मुहब्बत ही न जो समझे वो जालिम...
छह रुपए में पहला गीत
मात्र 16 वर्ष की उम्र में महमूद ने लखनऊ के आकाशवाणी में गजल गायन शुरू कर दिया था। इसी दौरान ‘एचएमवी’ नई आवाज की तलाश में थी और यह खोज तलत के रूप में पूरी हुई। तलत ने वर्ष1944 में छह रुपए की राशि पर अपना पहला गाना रिकॉर्ड करवाया। ‘तस्वीर तेरी दिल बहला ना सकेगी...’ जैसे लोकप्रिय गाने ने उनको रातों रात स्टार बना दिया। तलत के इस रिकॉर्ड ने रिकॉर्ड तोड़ बिक्री की। दूसरे ही साल महमूद ने एक के बाद एक चार गाने रिकॉर्ड किए गए। इससे बाद तो उनकी किस्मत ही चमक गई और कई फिल्मों में गाने के आॅफर उनको आने लगे। इसके बाद महमूद ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
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24-02-2013, 01:01 AM | #6 |
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Re: मुहब्बत ही न जो समझे वो जालिम...
हीरो बनने का ख्वाब
फिल्मों में गाना गाने के दौरान ही महमूद ने फिल्मों में हीरों बनने का ख्वाब भी संजोया। सुरीले गायन और आकर्षक व्यक्तित्व वाले महमूद ने बतौर नायक कोलकाता से फिल्म कॅरियर शुरू किया और करीब 16 फिल्मों में अभिनय किया। उनके पहुंचने के पहले ही उनकी आवाज की खनक बॉलीवुड तक पहुंच चुकी थी। यह वह दौर था जब गायक फिल्मों में अभिनेता भी होता था। उन्होंने हिंदी की 13 फिल्मों और तीन बांग्ला फिल्मों में अभिनय किया था। महमूद ने 17 भारतीय भाषाओं में गाने गाए थे। महमूद अभिनय तो कर रहे थे लेकिन उनका गायन दबता जा रहा था। दरअसल कैमरे के सामने वह तनाव में आ जाते थे जबकि गायन में सहज महसूस करते थे। ऐसे में उन्होंने सिर्फ अपने गायन को ही केंद्र में रखा।
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24-02-2013, 09:00 AM | #7 |
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Re: मुहब्बत ही न जो समझे वो जालिम...
तलत महमूद g के बारे मे विस्तार से जानकारी प्रदान कराने के लिए शुक्रिया ..............
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रोते-रोते हँसना सीखो ....! खुद हँसों औरों को भी हँसाओ, गम को जिन्दगी से दूर भगाओ,क्यों की हँसना ही जिन्दगी है |Read Forum Rules./Do not Spam./Respect Other members.
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24-02-2013, 06:37 PM | #8 |
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Re: मुहब्बत ही न जो समझे वो जालिम...
ये हवा, ये रात, ये चांदनी,
तेरी इक अदा पे निसार हैं, मुझे क्यों न हो तेरी आरजू, तेरी जुस्तजू में बहार है तुझे क्या खबर है, ओ बेखबर .. तेरी इक नज़र में है क्या असर .. जो गजब में आये तो कहर है, जो हो मेहेरबां तो करार है मुझे क्यों न हो तेरी आरजू, तेरी जुस्तजू में बहार है तेरी बात बात है दिल नशीं .. कोई तुझ से बढ़ के नहीं हसीं .. है कली कली पे जो मस्तियाँ .. तेरी आँख का ये खुमार है मुझे क्यों न हो तेरी आरजू, तेरी जुस्तजू में बहार है
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तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर । परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।। विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम । पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।। कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/ यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754 |
24-02-2013, 06:54 PM | #9 |
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Re: मुहब्बत ही न जो समझे वो जालिम...
सीने में सुलगते हैं अरमां
आँखों में उदासी छाई है ये आज तेरी दुनिया से हमें तकदीर कहाँ ले आयी है सीने में सुलगते हैं अरमां ... कुछ आँख में आँसू बाकी हैं, जो मेरे गम के साथी हैं, जो मेरे गम के साथी हैं, अब दिल है न दिल के अरमां हैं, अब दिल है न दिल के अरमां हैं बस मैं हूँ मेरी तन्हाई है, सीने में सुलगते हैं अरमां ... ना तुझसे गिला कोई हमको ना कोई शिकायत दुनिया से, ना कोई शिकायत दुनिया से, दो चार कदम जब मंजिल थी, दो चार कदम जब मंजिल थी किस्मत ने ठोकर खाई है सीने में सुलगते हैं अरमां .... कुछ ऐसी आग लगी मन में, जीने भी न दे, मरने भी न दे, जीने भी न दे, मरने भी न दे, चुप हूँ तो कलेजा जलता है, चुप हूँ तो कलेजा जलता है, बोलूँ तो तेरी रुसवाई है, सीने में सुलगते हैं अरमां ....
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24-02-2013, 07:02 PM | #10 |
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Re: मुहब्बत ही न जो समझे वो जालिम...
हमसे आया न गया, तुमसे बुलाया न गया,
फासला प्यार में दोनों से, मिटाया न गया वो घड़ी याद है, जब तुम से मुलाक़ात हुयी, इक इशारा हुआ, दो हाथ बंधे, बात हुई, देखते, दखते दिन ढल गया और रात हुयी, वो समा आज तलक दिल से भुलाया न गया हमसे आया न गया, तुमसे बुलाया न गया, फासला प्यार में दोनों से, मिटाया न गया क्या खबर थी कि मिले हैं तो बिछड़ने के लिए, किस्मतें अपनी बनायी हैं बिगड़ने के लिए, प्यार का ख्वाब सजाया था, उजड़ने के लिए, इस तरह उजड़ के फिर हमसे बसाया न गया हमसे आया न गया, तुमसे बुलाया न गया, फासला प्यार में दोनों से, मिटाया न गया याद रह जाती हैं, और वक्त गुजर जाता है, फूल खिलता ही है, और खिल के बिखर जाता है, सब चले जाते हैं, कब दर्द-ए-जिगर जाता है, दाग जो तूने दिया, दिल से मिटाया न गया । हमसे आया न गया, तुमसे बुलाया न गया, फासला प्यार में दोनों से, मिटाया न गया
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