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23-05-2015, 10:52 AM | #1 |
Diligent Member
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सवैया छन्द
सवैया छंद
______________________________ पाप यहाँ पर रोज बढ़े पर धीर धरे छुप के रहती है जुल्म हुआ इतना फिर भी चुप है कि नहीं कुछ भी कहती है झूठ कहे अगुवा जिस पे सब काज गवाँ कर के ढहती है सोच रहा यह भारत की जनता कितना कितना सहती है - आकाश महेशपुरी ______________________________ पता- वकील कुशवाहा 'आकाश महेशपुरी' ग्राम- महेशपुर, पोस्ट- कुबेरस्थान, जनपद- कुशीनगर. Last edited by आकाश महेशपुरी; 23-05-2015 at 01:49 PM. |
23-05-2015, 06:09 PM | #2 |
Super Moderator
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Re: सवैया छन्द
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जुल्म हुआ इतना फिर भी चुप है कि नहीं कुछ भी कहती है .. सोच रहा यह भारत की जनता कितना कितना सहती है बहुत सुंदर, आकाश जी. आम जनता की मनोदशा का सही चित्रण किया है आपने. धन्यवाद.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
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