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11-11-2012, 07:48 AM | #1 |
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प्रतियोगी - विपिन बिहारी मिश्र
प्रतियोगी
विपिन बिहारी मिश्र अनुवाद - मधुसूदन साहा |
11-11-2012, 07:48 AM | #2 |
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Re: प्रतियोगी - विपिन बिहारी मिश्र
माँ-बाप ने बड़े शौक से विघ्नराज नाम रखा था।
उन्हें मालूम था कि बाबू विघ्नराज तालचर ट्रेन की तरह रुक-रुक कर एक-एक क्लास पार करेंगे। मैट्रिक पास करते-करते वह बीस वर्ष का हो गया। दूब घास की तरह चेहरे पर मूँछ-दाढ़ी उग आई। मन तितली की तरह उड़ने लगा। कॉलेज में तीन वर्ष पार करते न करते पूरा फेमस। सभी जान गए बाबू विघ्नराज को। परीक्षा हॉल में कलम के साथ-साथ चाकू भी चलाया, फिर भी लाभ नहीं हुआ एक दिन उसके जिगरी दोस्त अमरेश ने आकर समझाया, 'भाई, इस पढ़ाई से कोई लाभ नहीं होनेवाला है। मान लो, कांथ-कूथ कर किसी तरह हमलोगों ने बी.ए. पास कर लिया, तो भी ज़्यादा से ज़्यादा सब इंस्पेक्टर या हवालदार ही तो होंगे। रोज़ मंत्री को सौ सलाम ठोंकना होगा। बात-बात पर डाँट-फटकार और कदम-कदम पर ट्रांसफर की धमकी। |
11-11-2012, 07:48 AM | #3 |
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Re: प्रतियोगी - विपिन बिहारी मिश्र
इस गुलामी से तो अच्छा है चलो राजनीति करेंगे। वह किशोर है न अरे वही, हमारा नवला, तीन बार बी.ए. में फेल हुआ। आज एम.एल.ए. है। आगे-पीछे गाड़ी चक्कर काटती फिरती है। लक्ष्मी रात-दिन घर-आँगन में घुंघरू खनकाती रहती है। बड़े-बड़े ऑफिसर चारों पहर खुशामद करते रहते हैं।'
''लेकिन भाई अमरू, पॉलिटिक्स करना क्या इतना आसान है। आज जो लोग चारों खुर छूकर जुहार करेंगे वे ही लोग पान से चूना खिसकते मात्र जूते की माला पहनाने पर उतारू हो जाएँगे। लोगों ने उन्हें जूता का हार पहनाकर पूरा गाँव घुमाया था। मैंने अपनी आँखों से देखा था कि किस तरह सरपंच की बोलती बंद हो गई थी। उसी दिन मैंने मन ही मन कसम खा ली कि कुछ भी करूँगा किन्तु पॉलिटिक्स नहीं करूँगा'' |
11-11-2012, 07:49 AM | #4 |
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Re: प्रतियोगी - विपिन बिहारी मिश्र
''नहीं रे भाई नहीं, अगर ठीक से राजनीति करने का हुनर सीख लिया तो जूते का हार क्यों पहनेगा? लोग फूलों की माला लिए बाट जोहेंगे। बस चार-पाँच वर्ष पावर में रह जाने पर सिनेमा हॉल से लेकर पेट्रोल पम्प तक बनवा लेगा। उसके बाद सात पुस्त तक आराम से खीर-पूड़ी उड़ाता रहेगा। तू तैयार हो जा, बाकी इंतजाम मैं करूँगा। मेरी भाभी के मामू के लड़के के छोटे भाई के मौसिया ससुर का लड़का अरुण भाई पक्का पॉलिटीशियन है।
उससे एकाध साल की ट्रेनिंग लेने पर मंत्री, एम.एल.ए. खुद हमारे पास दौड़े आएँगे। हमारे हाथ में वोट है और जब हम लोग वोट जोगाड़ करेंगे तभी तो वे लोग एम.एल.ए. - मंत्री होंगे'' |
11-11-2012, 07:49 AM | #5 |
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Re: प्रतियोगी - विपिन बिहारी मिश्र
''नहीं अमरू, मंत्री की बात मत कर। एक बार गया था मंत्री से भेंट करने। दो घंटा इंतज़ार करना पड़ा और उसके बाद संतरी ने आकर गाय-गोरू की तरह खदेड़ दिया''
''ओह, तू तो हर जगह गोबर ही माखता है। यदि किसी सही आदमी को लेकर जाता तो वही संतरी तुझे सलाम बजाता। अरे भाई, मंत्री तो गुलाब के गाछ हैं। तू अगर फूल तोड़ने के बजाय काँटों में हाथ लगाएगा तो इसमें गुलाब गाँछ का क्या दोष है?'' |
11-11-2012, 07:49 AM | #6 |
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Re: प्रतियोगी - विपिन बिहारी मिश्र
अमरेश के तर्क के आगे विघ्नराज का कुछ नहीं चला। वह राजी हो गया। दोनों अरुण भाई के दरबार में पहुँचे। पैकेट से थोड़ा-सा पान पराग निकाल कर मुँह में डालते हुए अरुण भाई ने कहा,''वह सामने बिजली का खम्भा दिखलाई पड़ रहा है? जानते हो एक चींटी को उस पर चढ़ने में कितना समय लगेगा? वह सीधे तो ऊपर नहीं पहुँच सकती। कई बार गिरेगी, फिर उठेगी तब कहीं ऊपर पहुँच पाएगी। पॉलिटिक्स में भी उसी तरह उठोगे, गिरोगे और फिर चढ़ने की कोशिश करोगे, तब कहीं जाकर ऊपर पहुँच पाओगे। इसमें काफी वक्त लगता है। यहा एक रात में दाढ़ी लम्बी नहीं हो जाती। समय लगता है। राजनीति के सभी दाँव-पेंच सीखने पड़ते हैं। दक्षता प्राप्त करने के पहले हज़ार बार धरना, स्ट्राइक, घेराव, लाठी चार्ज के दौर से गुज़रना पड़ता है। जेल जाना पड़ता है क्या तुम लोग इसके लिए तैयार हो?''
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