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27-11-2013, 11:25 AM | #1 |
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हिम्मते मरदा :.........
हिम्मते मरदा, मददे खुदा..... मित्रों इस सूत्र में ऐसे व्यक्तियों की जानकारी दी जाएँगी, जिनमे शारिरीक कमियों के बावजूद हौसले बुलंद हैं........
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27-11-2013, 11:38 AM | #2 |
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Re: हिम्मते मरदा :.........
बहादुर बाला के हौसले का सम्मान...... अरुणिमा सिन्हा को मिलेगा माटी रतन पुरस्कार...... लखनऊ। 26 नवंबर (एजेंसी) एक पैर से एवरेस्ट फतह करने वाली बहादुर बाला अरुणिमा सिन्हा को 'माटी रतन' पुरस्कार के लिए चुना गया है. अरणिमा को यह सम्मान अमर शहीद अशफाकउल्ला खां के शहीद स्थल फैजाबाद के जेल में एक समारोह में दिया जाएगा. जेल में ही 19 दिसंबर 1927 को अशफाकउल्ला खां को बहुचर्चित काकोरी कांड का दोषी मानते हुए फांसी पर लटकाया गया था. मशहूर शायर मुनव्वर राणा, अदम गोण्डवी और अनवर जलालपुरी जैसे प्रतिष्ठित लोगों को यह पुरस्कार दिया जा चुका है.....
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27-11-2013, 11:46 AM | #3 |
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Re: हिम्मते मरदा :.........
बहादुर बाला के हौसले का सम्मान...... अरुणिमा सिन्हा को मिलेगा माटी रतन पुरस्कार...... इस वर्ष अरुणिमा सिन्हा के साथ उर्दू के मशहूर शायर बेकल उत्साही और साहित्यकार अष्टभुजा शुक्ला को सम्मानित किया जाएगा. सन 1998 में स्थापित शहीद अशफाकउल्ला शोध संस्थान प्रतिवर्ष अपने क्षेत्र में अग्रणी रहने वाले 5 लोगों को सम्मानित करता है, लेकिन इस बार यह सम्मान केवल 3 लोगों को ही दिया जाएगा | शहीद अशफाकउल्ला खां शोध संस्थान की ओर से आयोजित होने वाले इस सम्मान समारोह में अरुणिमा सिन्हा को सम्मानित करने के पीछे आयोजक सूर्यकान्त पाण्डेय का कहना है कि बहादुर बाला समारोह स्थल के नजदीक अकबरपुर के शहजादपुर की रहने वाली है और एक दुर्घटना में अपना बायां पैर गंवा देने के बावजूद वह हिम्मत नहीं हारी और दूसरों को जिन्दगी जीने की नसीहत दे डाली. पाण्डेय ने कहा कि अरणिमा बालिकाओं के लिए एक आदर्श है इसलिए भी उसे सम्मानित करने का निर्णय संस्थान की कमेटी ने लिया.......
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27-11-2013, 12:03 PM | #4 |
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Re: हिम्मते मरदा :.........
बहादुर बाला के हौसले का सम्मान...... अरुणिमा सिन्हा को मिलेगा माटी रतन पुरस्कार...... एवरेस्ट फतह किया लेकिन पुलिस से हार गई अरुणिमा..... विश्व की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट नापने वाली अपाहिज अरुणिमा सिन्हा ने भले दुनिया में अपने जज्बे का डंका बजाया, विकलांगों के लिए मिसाल कायम की मगर कभी होनहार खिलाड़ी रही यह बाला अपनी ही पुलिस से हार गई। जिस वारदात के कारण अरुणिमा को अपना एक पैर गंवाना पड़ा, बरेली जीआरपी ने उसे झूठा करार दे दिया। करीब डेढ़ साल तक जांच पड़ताल चली। तमाम लोगों के बयान हुए। इसके बावजूद मुकदमे को फर्जी साबित कर फाइनल रिपोर्ट लगाकर गुपचुप तरीके से फाइल बंद कर दी। 12 अप्रैल 2011 की मनहूस रात को अरुणिमा ताउम्र नहीं भूल पाएगी। उत्तर प्रदेश के अंबेडकर नगर में रहने वाली अरुणिमा सिन्हा इसी रात पद्मावत एक्सप्रेस में सवार होकर लखनऊ से दिल्ली जा रही थी। वह नौकरी की तलाश में निकली थी। बकौल अरुणिमा, ट्रेन में गेट पर कुछ लोगों ने उससे बदतमीजी की। लूटपाट के बाद तड़के साढ़े चार बजे लुटेरों ने उसे चलती ट्रेन से फेंक दिया। दो घंटे तक वह रेलवे ट्रैकपर पड़ी रही.......
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27-11-2013, 12:04 PM | #5 |
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Re: हिम्मते मरदा :.........
बहादुर बाला के हौसले का सम्मान...... अरुणिमा सिन्हा को मिलेगा माटी रतन पुरस्कार...... एवरेस्ट फतह किया लेकिन पुलिस से हार गई अरुणिमा..... साढ़े छह बजे चनेहटी के पास लोगों ने उसे देखा, तब जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया। इलाज के दौरान अरुणिमा की एक टांग काटनी पड़ी। पहले तो पुलिस मामले को टालने में जुटी रही। यह पता लगने पर कि अरुणिमा एथलीट है और नेशनल प्लेयर है, तब जीआरपी ने आनन-फानन में लूट व हत्या के प्रयास का मुकदमा दर्ज किया। नेशनल खिलाड़ी के साथ हुई घटना का मामला दिल्ली और लखनऊ तक में गूंजा। उसके बाद तमाम बड़ी हस्तियां उससे मिलने बरेली के जिला अस्पताल पहुंची। अखिलेश यादव से लेकर सांसद मेनका गांधी तक ने उसकी मदद की। रेलवे बोर्ड के आला अधिकारी भी जांच को पहुंचे। कई दिनों तक मामला मीडिया में छाया रहा। बावजूद इसके बरेली जीआरपी शुरू से ही इस मामले में उल्टा रुख अपनाती रही। जीआरपी ने अपनी जांच के दौरान करीब तीन दर्जन से ज्यादा लोगों के बयान दर्ज किए। जांच के दौरान पता चला कि हादसे में अरुणिमा का मोबाइल भी गिर गया था.......
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27-11-2013, 12:06 PM | #6 |
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Re: हिम्मते मरदा :.........
बहादुर बाला के हौसले का सम्मान...... अरुणिमा सिन्हा को मिलेगा माटी रतन पुरस्कार...... एवरेस्ट फतह किया लेकिन पुलिस से हार गई अरुणिमा..... करीब दो महीने बाद पुलिस के हत्थे अरुणिमा का मोबाइल व सिम लगा। चनेहटी के पास ही रहने वाले एक रिक्शा चालक के पास से अरुणिमा दोनों चीजें बरामद हुईं। रिक्शा चालक ने बताया कि 12 अप्रैल का सुबह वह घर जा रहा था, तभी उसे एक मोबाइल मिला। जीआरपी ने अरुणिमा के मोबाइल की कॉल डिटेल निकलवाई। उससे भी कुछ हासिल नहीं हो सका। इसके बाद पुलिस उसके एसएमएस की डिटेल निकलवाना चाहती थी। लिहाजा सिम को सीबीआइ की लैब में भेजा गया। जीआरपी की पूरी जांच सीबीआइ की लैब रिपोर्ट पर टिककर रह गई थी। करीब छह महीने बाद जब रिपोर्ट आई तो पुलिस को मायूसी हाथ लगी। रिपोर्ट में कोई एसएमएस न भेजना पाया गया। इसके बाद जीआरपी पूरी तरह से निराश हो गई। लुटेरों को पकड़ने के बजाए जीआरपी ने मुकदमे को झूठा साबित करते हुए कुछ महीनों पहले फाइनल रिपोर्ट लगाकर केस बंद कर दिया। एसपी रेलवे आरके भारद्वाज का कहना है कि अरुणिमा ने जो बयान दिए गए थे वह जांच में झूठे पाए गए। तमाम पहलुओं पर गौर करने के बाद ही मुकदमे में फाइनल रिपोर्ट लगाई गई है.......
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27-11-2013, 12:13 PM | #7 |
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Re: हिम्मते मरदा :.........
बहादुर बाला के हौसले का सम्मान...... एवरेस्ट से भी ऊंचे हैं इरादे..... बचपन में मैंने एक कहानी पढी थी कि एक आदमी के पास जूते नहीं थे और इसके लिए वह हमेशा अपने भाग्य को कोसता रहता था। एक रोज उसने किसी ऐसे व्यक्ति को देखा, जिसके पैर ही नहीं थे। यह देखकर उसे अपनी भूल का एहसास हुआ। वह कहानी मेरे मन को छू गई और उससे मिली सीख को मैंने अपने जीवन में उतारने की पूरी कोशिश की। मुश्किलों भरा बचपन : जब मैं दस साल की थी, तभी मेरे पिता, हरेंद्र कुमार सिन्हा का स्वर्गवास हो गया। वह आर्मी में हेड कांस्टेबल थे। मेरी मां ज्ञान बाला सिन्हा सरकारी सेवा में थीं। वह बेहद जुझारू स्त्री हैं। उन्होंने मुझे जिंदगी से प्यार करना सिखाया। स्कूल-कॉलेज के दिनों से ही मुझे स्पोर्ट्स से बेहद लगाव था। मैं फुटबॉल की नेशनल प्लेयर थी। इसके अलावा कॉलेज की टीम से राष्ट्रीय स्तर पर वॉलीबॉल भी खेलती थी। मैं अंतरराष्ट्रीय स्तर की खिलाडी बनना चाहती थी। इसके लिए मैं जी जान से मेहनत कर रही थी.......
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27-11-2013, 12:16 PM | #8 |
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Re: हिम्मते मरदा :.........
बहादुर बाला के हौसले का सम्मान...... एवरेस्ट से भी ऊंचे हैं इरादे..... नहीं भूलती वह काली रात कॉलेज के बाद मैंने सीआइएसएफ में जॉब के लिए आवेदन किया था और वहीं इंटरव्यू देने के लिए 11 अप्रैल 2011 को लखनऊ से दिल्ली जाने वाली ट्रेन में बैठी थी। भीड ज्यादा होने की वजह से जनरल बोगी में मुझे दरवाजे के पास सीट मिली थी। वहीं तीन-चार लडके खडे थे। उन्होंने मेरे गले का चेन खींचने की कोशिश की और विरोध करने पर मुझे चलती ट्रेन से नीचे फेंक दिया। वह दृश्य याद कर के आज भी मेरे रोंगटे खडे हो जाते हैं। उस वक्त तकरीबन रात के दो-ढाई बज रहे होंगे। इतनी चोट के बावजूद मैं पूरे होश में थी। जब मैं गिरी थी, उसी वक्त बगल से दूसरी ट्रेन गुजर रही थी, जो मेरे बाएं पैर पर चढ गई। जब मैंने उठने की कोशिश की तो देखा कि मेरा बायां पैर थाईज के पास से कट कर जींस के बाहर निकल आया था। खुद को बचाने के लिए मैं पटरियों के बीच की खाली जगह में सीधी लेट गई। जब भी मुझे ट्रेन की आवाज सुनाई देती तो अपने हाथों को कटने से बचाने के लिए मैं उन्हें ऊपर उठा लेती। इस बीच कई बार ट्रेनें मेरे ऊपर से गुजरीं। जब भी कोई ट्रेन मेरे करीब पहुंचती तो उसके भयंकर शोर से मेरी सांसें थम जातीं। वो तीन घंटे मेरे लिए युगों समान थे। सुबह छह बजे के आसपास गांव वालों ने मुझे देखा और वहां से उठा कर बरेली जिला अस्पताल ले गए। उस वक्त भी मैं पूरे होश में थी, उनके पूछने पर मैंने उन्हें अपने घर का फोन नंबर भी बताया। वहां डॉक्टरों ने सबसे पहले मेरे आधे कटे पैर को सर्जरी द्वारा शरीर से अलग किया, वरना इन्फेक्शन की वजह मेरी जान को खतरा हो सकता था। मेरा सिर फटा हुआ था, रीढ की हड्डी और कमर में तीन-तीन फ्रैक्चर थे। इसके अलावा दाएं पैर और हाथ में भी फ्रैक्चर था। वह छोटा अस्पताल था। इसलिए मुझे वहां से लखनऊ लाया गया, लेकिन मेरी गंभीर हालत को देखते हुए मुझे एयर एंबुलेंस से दिल्ली भेज दिया गया। वहां मुझे एम्स के ट्रॉमा सेंटर में लगभग चार महीने तक रखा गया.......
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27-11-2013, 12:17 PM | #9 |
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Re: हिम्मते मरदा :.........
बहादुर बाला के हौसले का सम्मान...... एवरेस्ट से भी ऊंचे हैं इरादे..... अपमान से आहत मन : इसी दौरान मुझे टीवी के न्यूज से मालूम हुआ कि कुछ लोग यह सवाल उठा रहे थे कि मैं राष्ट्रीय स्तर की खिलाडी ही नहीं हूं तो फिर मुझे इलाज की बेहतर सुविधाएं क्यों दी जा रही हैं? कुछ सरकारी अधिकारियों ने तो इस दुर्घटना को मनगढंत कहानी बताकर यहां तक कहा कि मैं बेटिकट यात्रा कर रही थी और टीटी को देखकर घबराहट में चलती ट्रेन से कूद गई। मुझे घायल होने से भी कहीं ज्यादा दुख ऐसी झूठी और अपमानजनक बातों से पहुंचा। अस्पताल में पडी-पडी अकसर मैं यही सोचती कि अब मुझे कोई ऐसा बडा कार्य करना होगा ताकि मेरी सच्चाई पर सवाल उठाने वाले लोगों का मुंह बंद हो जाए। इसीलिए मैंने माउंट एवरेस्ट पर जाकर तिरंगा फहराने का निर्णय लिया। मैंने देश की पहली महिला पर्वतारोही बछेंद्री पाल के बारे में सुना था। वह टाटा स्टील एडवेंचर फाउंडेशन की अध्यक्ष हैं और लोगों को पर्वतारोहण की ट्रेनिंग देती हैं। मैंने बडी मुश्किल से उनका मोबाइल नंबर ढूंढ कर अस्पताल से ही उन्हें फोन किया और उनसे कहा कि मैं आपसे मिलने जमशेदपुर आ रही हूं। उपचार के बाद मेरे बायें पैर की जगह कृत्रिम पैर लगाया गया और दाएं पैर की सर्जरी करके उसमें भी दो रॉड लगाए गए थे। मेरे मन में माउंट एवरेस्ट पर जाने का ऐसा जुनून सवार था कि एम्स से अपने घर जाने के बजाय एक अटेंडेंट को साथ लेकर बछेंद्री जी से मिलने सीधे जमशेदपुर चली गई। मुझे देखकर वह हैरत में पड गई। उन्होंने मुझसे कहा कि ऐसी हालत में अगर तुम इतने ऊंचे इरादे के साथ यहां तक आ गई हो तो समझो कि तुमने माउंट एवरेस्ट फतह कर लिया। अब तुम्हें केवल लोगों को यह दिखा देना है कि शारीरिक अक्षमता तुम्हारा कुछ भी नहीं बिगाड सकती.......
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27-11-2013, 12:19 PM | #10 |
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Re: हिम्मते मरदा :.........
बहादुर बाला के हौसले का सम्मान...... एवरेस्ट से भी ऊंचे हैं इरादे :..... चल पडी मंजिल की ओर : अपना लक्ष्य हासिल करने के लिए मैंने सबसे पहले उत्तरकाशी स्थित नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ माउंटेनियरिंग से पर्वतारोहण का बेसिक कोर्स किया। इस ट्रेनिंग के दौरान मैंने उत्तरकाशी के सूर्या टॉप, बरुआ टॉप, बंदर पूंछ और डोडी ताल जैसी पहाडियों पर कई बार चढाई की। फिर 28 मार्च 2013 को मैं अपने दल के साथ दिल्ली से काठमांडू पहुंची। शरीर और दिमाग को वातावरण के अनुकूल बनाने के लिए माउंट एवरेस्ट की चढाई से पहले पर्वतारोही आसपास की कई चोटियों पर बार-बार चढाई करते हैं। हम लोगों ने भी ऐसा ही किया। फिर अपने टीम लीडर लवराज धर्मशक्तु के नेतृत्व में हमने 16 मई 2013 को चढाई शुरू की। हमारे रास्ते में कैंप-1 से कैंप-4 तक चार पडाव थे। प्रतिदिन दो-चार घंटों का ब्रेक लेते हुए हम 20 मई को कैंप-4 पहुंचे। वहां थोडी देर सुस्ताने के बाद हमने सुबह साढे ग्यारह बजे से माउंट एवरेस्ट के लिए चढाई शुरू की, जिसकी ऊंचाई 8,848 मीटर है। वह रास्ता बेहद फिसलन भरा और दुर्गम था। दोनों तरफ हजारों फीट गहरी खाई थी। खुद को डीहाइड्रेशन से बचाने के लिए हमारे लिए जबर्दस्ती ज्यादा पानी पीना जरूरी होता है। ऐसे में यूरिनेशन की वजह से मुझे बहुत परेशानी होती थी। इतनी ऊंचाई पर चढाई की वजह से स्त्रियों के शरीर में हॉर्मोन का संतुलन बिगड जाता है और वहां अचानक पीरियड्स की शुरुआत हो जाती है। मेरे साथ भी यही हुआ, लेकिन मैं इसके लिए पहले से तैयार थी। इसलिए मुझे ज्यादा दिक्कत नहीं हुई। जब मैं अपने लक्ष्य से कुछ घंटे की दूरी पर थी तभी हिलेरी स्टेप के पास मेरे ऑक्सीजन का सिलिंडर खाली होने लगा। जब मैंने वॉकी-टॉकी पर अपने आयोजक से बातचीत के दौरान सिलिंडर खाली होने का अंदेशा जताया तो वह मुझसे लौटने का आग्रह करने लगे। मैंने कहा कि मंजिल के इतने करीब पहुंचकर मैं वापस नहीं लौट सकती। तभी मैंने देखा कि एक विदेशी पर्वतारोही थकान की वजह से बीच रास्ते से ही लौट रहा था। वापस लौटने के लिए उसके पास पर्याप्त ऑक्सीजन था। वजन उठाने की परेशानी से वह एक भरा सिलिंडर वहीं छोडकर जा रहा था। मैंने उससे सिलिंडर मांग लिया और उसी के सहारे मंजिल तक पहुंच गई। वहां तिरंगा फहराने केबाद हमने वापसी की तैयारी शुरू कर दी.......
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