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15-05-2014, 04:02 PM | #1 |
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ग़ज़ल- मुझे आजकल नीँद आती कहाँ है
ग़ज़ल- मुझे आजकल...
मुझे आजकल नीँद आती कहाँ है कि यादोँ मेँ आ के वो जाती कहाँ है वो मय सी निगाहेँ अदाएँ नशीली है सबकुछ मगर वो पिलाती कहाँ है उसे चोर साबित करूँ मैँ कसम से पता जो चले दिल छुपाती कहाँ है नज़ारे बहुत हैँ जमाने मेँ लेकिन वो चेहरे से परदा उठाती कहाँ है लिखा आँसूओँ से जरा चल के देखूँ वो मेरे ख़तोँ को जलाती कहाँ है मैँ 'आकाश' जिसपे मरे जा रहा हूँ वो मुझको झलक भी दिखाती कहाँ है ग़ज़ल- आकाश महेशपुरी Aakash maheshpuri ॰॰॰ पता- वकील कुशवाहा 'आकाश महेशपुरी' ग्राम- महेशपुर पोस्ट- कुबेरस्थान जनपद- कुशीनगर उत्तर प्रदेश 09919080399 |
16-05-2014, 01:54 PM | #2 | |
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Re: ग़ज़ल- मुझे आजकल नीँद आती कहाँ है
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
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17-05-2014, 12:56 AM | #3 |
Diligent Member
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Re: ग़ज़ल- मुझे आजकल नीँद आती कहाँ है
आदरणीय रजनीश मांगा जी! आपकी प्रेरक प्रतिक्रिया के लिए सादर धन्यवाद्। नमन्!
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20-05-2014, 01:27 PM | #4 |
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Re: ग़ज़ल- मुझे आजकल नीँद आती कहाँ है
आकाशजी, बेहद खूबसूरत गज़ल है...धन्यवाद!
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21-05-2014, 07:48 AM | #5 | |
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Re: ग़ज़ल- मुझे आजकल नीँद आती कहाँ है
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मैं क़तरा होकर भी तूफां से जंग लेता हूं ! मेरा बचना समंदर की जिम्मेदारी है !! दुआ करो कि सलामत रहे मेरी हिम्मत ! यह एक चिराग कई आंधियों पर भारी है !! |
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21-05-2014, 07:49 AM | #6 |
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Re: ग़ज़ल- मुझे आजकल नीँद आती कहाँ है
इतनी जल्दी कहाँ नीँद मुझे आती है...! मैँ जागता हूँ और रात सो जाती है...! सुबह होते ही मैँ फिर बिखरने लगता हूँ...! एक रुह मुझे बार-बार ये कहते जाती है...! रात बाकी है अभी बात बाकी है...!
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