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28-12-2013, 09:57 PM | #1 |
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सुखनवर (महान शायर व उनकी शायरी)
सुखनवर (महान शायर व उनकी शायरी)
Sukhanvar (Great Urdu Poets & their Poetry) एक झलक ^ मित्रो, हम इस सूत्र में विभिन्न स्रोतों से प्राप्त ग़ज़लों, नज्मों और कविताओं को प्रस्तुत करेंगे. आशा है इस आयोजन में मुझे आपका सहयोग पहले की तरह ही मिलता रहेगा. सूत्र की शुरुआत हम फैज़ अहमद 'फैज़' की एक मशहूर ग़ज़ल से कर रहे हैं. Last edited by rajnish manga; 09-10-2014 at 11:47 PM. |
28-12-2013, 10:03 PM | #2 |
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Re: लौह-ओ-कलम (स्याही और कलम)
लौह-ओ-कलम
फैज़ अहमद 'फैज़' मेरा फ़ोरम के सभी मित्रों से निवेदन है कि वे फैज़ साहब के कलाम को निम्नलिखित सूत्र पर और विस्तारपूर्वक पढ़ सकते हैं और उसका आनन्द ले सकते हैं:हम परवरिश-ऐ-लोह-ओ-कलम करते रहेंगे, http://myhindiforum.com/showthread.php?t=5187 Last edited by rajnish manga; 30-12-2013 at 10:20 PM. |
28-12-2013, 10:51 PM | #3 | |
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Re: लौह-ओ-कलम (स्याही और कलम)
Quote:
फैज़ अहमद 'फैज़' साहब की बेहतरीन नज्मो मेसे एक .........
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*** Dr.Shri Vijay Ji *** ऑनलाईन या ऑफलाइन हिंदी में लिखने के लिए क्लिक करे: .........: सूत्र पर अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दे :......... Disclaimer:All these my post have been collected from the internet and none is my own property. By chance,any of this is copyright, please feel free to contact me for its removal from the thread. |
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21-04-2014, 06:06 PM | #4 |
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Re: लौह-ओ-कलम (स्याही और कलम)
धन्यवाद,आपने हम फेज जी ,परवीन शाकिर से रूबरू कराया / बहूत अच्छा
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25-04-2014, 12:24 AM | #5 |
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Re: लौह-ओ-कलम (स्याही और कलम)
कैसर-उल-जाफ़री साहब की निम्नलिखित ग़ज़ल मुझे बहुत पसंद है. मैं चाहता हूँ कि आप भी ग़ज़ल को पढ़ कर इसका मज़ा ले.
ग़ज़ल शायर: कैसर-उल-जाफ़री तू अपने फूल से होठों को रायगां मत कर अगर वफ़ा का इरादा नहीं तो हाँ मत कर तू मेरी शाम की पलकों से रोशनी मत छीन जहां चराग़ जलाये, वहां धुआं मत कर फिर उसके बाद तो आँखों को संग होना है मिली है फुरसते-गिरियाँ तो रायगां मत कर छलक रहा है तिरे दिल का दर्द चेहरे से छुपा छुपा के मुहब्बत को, दास्तां मत कर कसम की कोई ज़रुरत नहीं मुहब्बत को तुझे कसम है, खुदा को भी दरमियां रखना छलक उठे सरे-महफ़िल कभी, तो क्या होगा तू आंसुओं को भी खलवत का राज़दां मत कर ये ज़िन्दगी है, कोई मकबरा नहीं ‘कैसर’ सुकूने-दिल का तसव्वुर भी तू यहां मत कर (रायगां = व्यर्थ / संग = पत्थर / फुरसते-गिरिया = रोने की फुरसत / सरे-महफ़िल = सभा के बीच / खलवत = एकांत / राज़दां = राज़ का साथी / सुकूने-दिल = दिल का चैन / तसव्वुर = कल्पना)
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25-04-2014, 01:17 AM | #6 |
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Re: लौह-ओ-कलम (स्याही और कलम)
कुँवर अखलाक मुहम्मद खान ‘शहरयार’
(1936 – 2012) कुँवर अख़लाक मोहम्मद खाँ उर्फ "शहरयार" का जन्म 6 जून 1936 को आंवला, जिला बरेली में हुआ। वैसे उनके पूर्वज चौढ़ेरा बन्नेशरीफ़, जिला बुलंदशहर के रहने वाले थे। वालिद पुलिस अफसर थे और जगह-जगह तबादलों पर रहते थे इसलिए आरम्भिक पढ़ाई हरदोई में पूरी करने के बाद इन्हें 1948 में अलीगढ़ भेज दिया गया. वे अपने कैरियर के अंतिम पड़ाव वे में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के उर्दू विभाग के चेयरमैन पद तक पहुंचे और वहीँ से रिटायर हुये। शहरयार ने अपनी शायरी के लिए एक नए निखरे और बिल्कुल अलग अन्दाज़ को चुना—और यह अन्दाज़ नतीजा था और उनके गहरे समाजी तजुर्बे का, जिसके तहत उन्होंने यह तय कर लिया था कि बिना वस्तुपरक वैज्ञानिक सोच के दुनिया में कोई कारगर-रचनात्मक सपना नहीं देखा जा सकता। उसके बाद वे अपनी तनहाइयों और वीरानियों के साथ-साथ दुनिया की खुशहाली और अमन का सपना पूरा करने में लगे रहे ! इसमें सबसे बड़ा योगदान उस गंगा-जमुनी तहज़ीब का है जिसने उन्हें पाला-पोसा और वक्त-वक्त पर उन्हें सजाया, सँभाला और सिखाया है।
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25-04-2014, 01:20 AM | #7 |
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Re: लौह-ओ-कलम (स्याही और कलम)
शहरयार * कमलेश्वर मानते थे कि शहरयार की शायरी चौकाने वाली आतिशबाजी और शिकायती तेवर से अलग बड़ी गहरी सांस्कृतिक सोच की शायरी है और वह दिलो दिमाग को बंजर बना दी गयी जमीन को सीचती है। भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार और अकादमी पुरस्कार के अतिरिक्त विभिन्न स्तरों पर देश विदेश में सम्मान और ख्याती प्राप्त शहरयार के उर्दू में ‘इस्में आज़्म’, ‘सातवाँ दर’, ‘हिज्र की जमीन’ शीर्षकों से आए काव्य संग्रह काफी चर्चित और प्रशंसित हुए हैं। ‘ख्वाब का दर बंद है’ हिन्दी और अंग्रेजी मे भी प्रकाशित हो चुका है तथा ‘काफिले यादों के’, ‘धूप की दीवारे’, ‘मेरे हिस्से की ज़मीन’ और ‘कही कुछ कम है’ शीर्षकों से उनके काव्य संग्रह हिन्दी मे प्रकाशित हो चुके है। ‘सैरे जहाँ’ हिन्दी मे शीघ्र प्रकाश्य है। उन्होंने फिल्मों के लिये भी कुछ बेहद यादगार गीत लिखे. फिल्म ‘उमराव जाम’ के लिये उनके द्वारा लिखी ग़ज़लों को कौन भूल सकता है. 13 फरवरी 2012 को इस अज़ीम शायर ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया.
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29-12-2013, 08:23 AM | #8 |
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Re: लौह-ओ-कलम (स्याही और कलम)
great
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29-12-2013, 11:28 AM | #9 |
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Re: लौह-ओ-कलम (स्याही और कलम)
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29-12-2013, 11:38 AM | #10 |
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Re: लौह-ओ-कलम (स्याही और कलम)
मुझ से पहली सी मुहब्बत मेरे महबूब न मांग
मुझ से पहली सी मुहब्बत मेरे महबूब न मांग Last edited by rajnish manga; 23-04-2014 at 02:02 PM. |
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