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#1 |
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सभी मित्रो को मेरा नमस्कार आज दिल में अक हुक सी उठी तो मेने यह सूत्र बनाया जिसमें आप सभी का सहयोग आशीर्वाद और प्यार चाहिए , मेरी सोच है की बिना दर्द के प्यार परवाना नहीं चढ़ता है और बिना चोट खाए प्यार की गहराई समझ में नहीं आती,तभी तो कहतें है "जब दर्द नहीं था सिने में तो खाक मजा था जीने में,अब के सावन हम भी रोयें सावन के महीने में" आप सभी आमंत्रित है अपने अनुबव ,गीत गजल और शायरी के साथ जो आप के दिल की गहराई से निकली हो
धन्यवाद
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तोडना टूटे दिलों का बुरा होता है जिसका कोई नहीं उस का तो खुदा होता है |
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#2 |
Senior Member
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टूटे हुवे खाब्बो ने इतना ये बताया है
दिल ने दिल ने जिसे चाह था आँखों ने गवाया है
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तोडना टूटे दिलों का बुरा होता है जिसका कोई नहीं उस का तो खुदा होता है |
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#3 |
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भाई,
जहाँ तक मेरा मानना है कि बिना दुश्मानों के मोहब्बत कामयाब नहीं होती/ दर्द तो सामान्य जीवन का अंग है/ |
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#4 |
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Na jaane tum pe itna yakin kyon hai?
Tera khayal bhi itna haseen kyon hai? Suna hai Pyar ka dard meetha hota hai!!! to aankh se nikla ye aansu namkeen kyon hai? |
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#5 |
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राही मनवा दुःख की चिंता क्यों सताती है दुःख तो अपना साथी है
दुःख है इक सम जाती आती है जाती है दुःख तो अपना साथी है
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तोडना टूटे दिलों का बुरा होता है जिसका कोई नहीं उस का तो खुदा होता है |
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#6 |
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आदमीं आदमीं को क्या देगा
जो भी देगा उसे खुदा देगा आदमीं आदमीं को क्या देगा
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तोडना टूटे दिलों का बुरा होता है जिसका कोई नहीं उस का तो खुदा होता है |
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#7 |
Diligent Member
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युवी मेरे दोस्त बात तो पते की है कि प्यार के इस मीठे दर्द मेँ अश्क नमकीन क्योँ होते हैँ । यकीनन इस प्रश्न का उत्तर कोई चोट खाया इन्सान ही दे सकता है । क्या फोरम पर ऐसा कोई बन्दा है ?
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#8 |
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जब भी तुझसे मेरा सामना हो गया
उस घड़ी मेरा 'मैं' , लापता हो गया तुमने भूले से नाम ए वफ़ा क्या लिया मेरा जख्म ए जिगर फिर हरा हो गया क़त्ल करते हैं जो , पूछते हैं वही कुछ तो कहिये तो क्या माजरा हो गया दुश्मनों की तरफ से फिकर अब नहीं दोस्ती में दग़ा , सौ दफ़ा हो गया इस जमाने में विज्ञान की खैर हो मौत का अब सरल रास्ता हो गया ![]() जिसने दुनिया को जीता वो इंसान 'जय' जिसने खुद को ही जीता, खुदा हो गया
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तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर । परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।। विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम । पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।। कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/ यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754 |
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#9 | |
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तब वह " नियति " को स्वीकार कर पाता है
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ये दिल तो किसी और ही देश का परिंदा है दोस्तों ...सीने में रहता है , मगर बस में नहीं ...
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#10 | |
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अब के सायद हम भी रोये सावन के महीने में ! बहुत अच्छा प्रयास हे कामेश जी |
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