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24-05-2011, 12:32 PM | #1 |
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भारत का दुर्भाग्य !
दीक्षित के विभिन्न व्याख्यानों में से जोड़ के मैंने ये लेख तैयार किया है उम्मीद है कि आप लोगों के ये पसंद आएगी |
मैंने यहाँ हिंदी का दुर्भाग्य लिखा है. भारत की जो तथाकथित आज़ादी है वो एक agreement के तहत/अन्तर्गत है, वो agreement है Transfer of power agreement (सत्ता के हस्तांतरण की संधि) | भारत में जो कुछ भी आप देख रहे हैं वो सब इसी agreement के शर्तों के हिसाब से चल रहा है | और आज अगर ब्रिटेन इस संधि को नकार दे तो भारत फिर से गुलाम हो जायेगा, ये मजाक की बात मैं नहीं कर रहा हूँ, इस मसले पर बड़े बड़े वकील चुप हो जाते हैं और कहते हैं की हो सकता है | और ये जो अंग्रेजी है वो उसी Transfer of power agreement (सत्ता के हस्तांतरण की संधि) के तहत हमारे ऊपर थोपी गयी | अंग्रेजी हटाना और हिंदी को स्थापित करना भारत में मुश्किल लग रहा है | मैं यहाँ कुछ तथ्य आप सब के सामने रखती हूँ कि क्यों इस देश से अंग्रेजी हटाना मुश्किल है | |
24-05-2011, 12:35 PM | #2 |
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Re: भारत का दुर्भाग्य !
भारत में अंग्रेजी का इतिहास
भारत में जहाँगीर के समय पहली बार अँगरेज़ भारत में आये और व्यापार के नाम पर उन्होंने जो कुछ किया वो सब को मालूम है | उस समय भारत में 565 रजवाड़े हुआ करते थे और अंग्रेजों ने उन सभी राज्यों से अंग्रेजी में agreement कर के उस सभी का राज्य एक एक कर के हड़प लिया | क्योंकि अँगरेज़ जो agreement करते थे वो अंग्रेजी में होता था और सभी agreement के अंत में एक ऐसी बात होती थी जिसकी वजह से सब के सब राज्य अंग्रेजो के हो गए (वो agreement के बारे में मैं यहाँ कुछ विशेष नहीं लिखूंगी ) | हमारे यहाँ जो राजा थे उन लोगों को अंग्रेजी नहीं आती थी, जो क़ि स्वाभाविक था, इस लिए वो इन संधियों के मकडजाल में फंस गए लेकिन आजादी के बाद वाले नेताओं को तो अच्छी अंग्रेजी आती थी वो कैसे फंस गए ? जब हमें आज़ादी मिली तो हमारे देश में सब कुछ बदल जाना चाहिए था |
24-05-2011, 12:36 PM | #3 |
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Re: भारत का दुर्भाग्य !
लेकिन सत्ता जिन लोगों के हाथ में आयी वो भारत को इंग्लैंड की तरह बनाना चाहते थे | आज़ादी की लड़ाई के समय सभी दौर के क्रांतिकारियों का एक विचार था कि भारत अंग्रेज़ और अंग्रेजी दोनों से आज़ाद हो और राष्ट्रभाषा के रूप में हिंदी स्थापित हो | जून 1946 में महात्मा गाँधी ने कहा था कि आज़ादी मिलने के 6 महीने के बाद पुरे देश की भाषा हिंदी हो जाएगी और सरकार के सारे काम काज की भाषा हिंदी हो जाएगी | संसद और विधानसभाओं की भाषा हिंदी हो जाएगी | और गाँधी जी ने घोषणा कर दी थी कि जो संसद और विधानसभाओं में हिंदी में बात नहीं करेगा तो सबसे पहला आदमी मैं होऊंगा जो उसके खिलाफ आन्दोलन करेगा और उनको जेल भेजवाऊंगा | भारत का कोई सांसद या विधायक अंग्रेजी में बात करे उस से बड़ी शर्म की बात क्या हो सकती है | लेकिन आज़ादी के बाद सत्ता गाँधी जी के परम शिष्यों के हाथ में आयी तो वो बिलकुल उलटी बात करने लगे | वो कहने लगे कि भारत में अंग्रेजी के बिना कोई काम नहीं हो सकता है|
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24-05-2011, 12:37 PM | #4 |
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Re: भारत का दुर्भाग्य !
भारत में विज्ञान और तकनिकी को आगे बढ़ाना है तो अंग्रेजी के बिना कुछ नहीं हो सकता, भारत का विकास अंग्रेजी के बिना नहीं हो सकता, भारत को विश्व के मानचित्र पर बिना अंग्रेजी के नहीं लाया जा सकता | भारत को यूरोप और अमेरिका बिना अंग्रेजी के नहीं बनाया जा सकता | अंग्रेजी विश्व की भाषा है आदि आदि | गाँधी जी का सपना गाँधी जी के जाने के बाद वहीं ख़तम हो गया | भारत में आज हर कहीं अंग्रेजी का बोलबाला है | भारत की शासन व्यवस्था अंग्रेजी में चलती है, न्यायालयों की भाषा अंग्रेजी है, दवा अंग्रेजी में होती है, डॉक्टर पुर्जा अंग्रेजी में लिखते हैं, हमारे शीर्ष वैज्ञानिक संस्थानों में अंग्रेजी है, कृषि शोध संस्थानों में अंग्रेजी है | भारत में ऊपर से ले के नीचे के स्तर पर सिर्फ अंग्रेजी, अंग्रेजी और अंग्रेजी है |
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24-05-2011, 12:37 PM | #5 |
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Re: भारत का दुर्भाग्य !
भारत का संविधान (अंग्रेजी के सम्बन्ध में )
26 जनवरी 1950 को जो संविधान इस देश में लागू हुआ उसका एक अनुच्छेद है 343 | इस अनुच्छेद 343 में लिखा गया है कि अगले 15 वर्षों तक अंग्रेजी इस देश में संघ (Union) सरकार की भाषा रहेगी और राज्य सरकारें चाहे तो ऐसा कर सकती हैं | 15 वर्ष पूरा होने पर यानि 1965 से अंग्रेजी को हटाने की बात की जाएगी | एक संसदीय समिति बनाई जाएगी जो अपना विचार देगी अंग्रेजी के बारे में और फिर राष्ट्रपति के अनुशंसा के बाद एक विधेयक बनेगा और फिर इस देश से अंग्रेजी को हटा दिया जायेगा और उसके स्थान पर हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओँ को स्थापित किया जायेगा | ये जो बात है वो अनुच्छेद 343 के पहले पैरा ग्राफ में हैं लेकिन उसी अनुच्छेद के तीसरे पैरा ग्राफ में लिखा गया है कि भारत के विभिन्न राज्यों में से किसी ने भी हिंदी का विरोध किया तो फिर अंग्रेजी को नहीं हटाया जायेगा | फिर उसके आगे अनुच्छेद 348 में लिखा गया है कि भारत में भले ही आम बोलचाल कि भाषा हिंदी रहे लेकिन Supreme Court में, High Court में अंग्रेजी ही प्रमाणिक भाषा रहेगी | |
24-05-2011, 12:38 PM | #6 |
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Re: भारत का दुर्भाग्य !
1955 में एक समिति बनाई गयी सरकार द्वारा, उस समिति ने अपनी रिपोर्ट में कह दिया कि देश में अंग्रेजी हटाने का अभी अनुकूल समय नहीं है | 1963 में संसद में हिंदी को लेकर बहस हुई कि अंग्रेजी हटाया जाये और हिंदी लाया जाये | 1965 में 15 वर्ष पुरे होने पर राष्ट्रभाषा हिंदी बनाने की बात हुई तो दक्षिण में दंगे शुरू हो गए और यहाँ मैं बताता चलूँ कि भारत सरकार के ख़ुफ़िया विभाग कि ये रिपोर्ट है कि वो दंगे प्रायोजित थे सरकार की तरफ से | ये उन नेताओं द्वारा करवाया गया था जो नहीं चाहते थे कि अंग्रेजी को हटाया जाये | (ये ठीक वैसा ही था जैसे वन्दे मातरम के सवाल पर मुसलमानों को गलत सन्देश देकर भड़काया गया था) तो यहाँ केंद्र सरकार को मौका मिल गया और उसने कहना शुरू किया कि हिंदी की वजह से दंगे हो रहे हैं तो अंग्रेजी को नहीं हटाया जायेगा | इस बात को लेकर 1967 में एक विधेयक पास कर दिया गया | इतना ही नहीं 1968 में उस विधेयक में एक संसोधन कर दिया गया जिसमे कहा गया कि भारत के जितने भी राज्य हैं उनमे से एक भी राज्य अगर अंग्रेजी का समर्थन करेगा तो भारत में अंग्रेजी ही लागू रहेगी, और आपकी जानकारी के लिए मैं यहाँ बता दूँ क़ि भारत में एक राज्य है नागालैंड वहां अंग्रेजी को राजकीय भाषा घोषित कर दिया गया है | ये जो गन्दी राजनीति इस देश में आप देख रहे हैं वो अभी गन्दी नहीं हुई है ये अंग्रेजों से अनुवांशिक तौर पर हमारे नेताओं ने ग्रहण किया था और वो आज भी चल रहा है | अभी तो ये बिलकुल असंभव लग रहा है कि हम अंग्रेजी को इस देश से हटा सकें | इसके लिए सत्ता नहीं व्यवस्था परिवर्तन की जरूरत है |
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24-05-2011, 02:36 PM | #7 |
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Re: भारत का दुर्भाग्य !
मेरे जानकारी के मुताबिक भी अंग्रेजी ही भारत की अधिकारिक भाषा है/
हिंदी सिर्फ कहने के लिए राष्ट्रभाषा है/ जिसे अभी तक मान्यता प्राप्त नहीं हुई है और मुझे लगता है की होगी भी नहीं/ क्यूंकि जिस तरह से हमारे नेता क्षेत्रवादी हो गए है/इससे तो यही लगता है की अब हिंदी कभी भी राष्ट्रभाषा नहीं बन पायेगी/ सूत्रधार को इस जानकारी को लेन के लिए धन्यवाद/ लेकिन ये इसे लिखने वाले व्यक्ति का नाम भी बता देते तो ज्यादा अच्छा होता! |
24-05-2011, 09:02 PM | #8 |
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Re: भारत का दुर्भाग्य !
प्यार से मांग रहे है वरना थप्पड़ मार के भी ले सकते है ---- रोबिन हुड पांड्य
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25-05-2011, 04:35 PM | #9 |
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Re: भारत का दुर्भाग्य !
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09-07-2011, 04:32 PM | #10 |
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Re: भारत का दुर्भाग्य !
क्या सच में देश 15 अगस्त को अजाद हुआ था
14 अगस्त 1947 की रात को जो कुछ हुआ है वो आजादी नहीं, बल्कि ट्रान्सफर ऑफ़ पॉवर का एग्रीमेंट हुआ था पंडित नेहरु और लोर्ड माउन्ट बेटन के बीच में | Transfer of Power और Independence ये दो अलग चीजे है | स्वतंत्रता और सत्ता का हस्तांतरण ये दो अलग चीजे है | और सत्ता का हस्तांतरण कैसे होता है ? आप देखते होंगे क़ि, एक पार्टी की सरकार है, वो चुनाव में हार जाये, दूसरी पार्टी की सरकार आती है तो दूसरी पार्टी का प्रधानमन्त्री जब शपथ ग्रहण करता है, तो वो शपथ ग्रहण करने के तुरंत बाद एक रजिस्टर पर हस्ताक्षर करता है, आप लोगों में से बहुतों ने देखा होगा, तो जिस रजिस्टर पर आने वाला प्रधानमन्त्री हस्ताक्षर करता है, उसी रजिस्टर को ट्रान्सफर ऑफ़ पॉवर की बुक कहते है और उस पर हस्ताक्षर के बाद पुराना प्रधानमन्त्री नए प्रधानमन्त्री को सत्ता सौंप देता है | और पुराना प्रधानमंत्री निकल कर बाहर चला जाता है | यही नाटक हुआ था 14 अगस्त 1947 की रात को 12 बजे | लार्ड माउन्ट बेटन ने अपनी सत्ता पंडित नेहरु के हाथ में सौंपी थी, और हमने कह दिया कि स्वराज्य आ गया | कैसा स्वराज्य और काहे का स्वराज्य ? अंग्रेजो के लिए स्वराज्य का मतलब क्या था ? और हमारे लिए स्वराज्य का मतलब क्या था ? ये भी समझ लीजिये | अंग्रेज कहते थे क़ि हमने स्वराज्य दिया, माने अंग्रेजों ने अपना राज तुमको सौंपा है ताकि तुम लोग कुछ दिन इसे चला लो जब जरुरत पड़ेगी तो हम दुबारा आ जायेंगे | ये अंग्रेजो का interpretation (व्याख्या) था | और हिन्दुस्तानी लोगों की व्याख्या क्या थी कि हमने स्वराज्य ले लिया | और इस संधि के अनुसार ही भारत के दो टुकड़े किये गए और भारत और पाकिस्तान नामक दो Dominion States बनाये गए हैं | ये Dominion State का अर्थ हिंदी में होता है एक बड़े राज्य के अधीन एक छोटा राज्य, ये शाब्दिक अर्थ है और भारत के सन्दर्भ में इसका असल अर्थ भी यही है | अंग्रेजी में इसका एक अर्थ है “One of the self-governing nations in the British Commonwealth” और दूसरा “Dominance or power through legal authority “| Dominion State और Independent Nation में जमीन आसमान का अंतर होता है | मतलब सीधा है क़ि हम (भारत और पाकिस्तान) आज भी अंग्रेजों के अधीन/मातहत ही हैं | दुःख तो ये होता है की उस समय के सत्ता के लालची लोगों ने बिना सोचे समझे या आप कह सकते हैं क़ि पुरे होशो हवास में इस संधि को मान लिया या कहें जानबूझ कर ये सब स्वीकार कर लिया | और ये जो तथाकथित आज़ादी आयी, इसका कानून अंग्रेजों के संसद में बनाया गया और इसका नाम रखा गया Indian Independence Act यानि भारत के स्वतंत्रता का कानून | और ऐसे धोखाधड़ी से अगर इस देश की आजादी आई हो तो वो आजादी, आजादी है कहाँ ? और इसीलिए गाँधी जी (महात्मा गाँधी) 14 अगस्त 1947 की रात को दिल्ली में नहीं आये थे | वो नोआखाली में थे | और कोंग्रेस के बड़े नेता गाँधी जी को बुलाने के लिए गए थे कि बापू चलिए आप | गाँधी जी ने मना कर दिया था | क्यों ? गाँधी जी कहते थे कि मै मानता नहीं कि कोई आजादी आ रही है | और गाँधी जी ने स्पस्ट कह दिया था कि ये आजादी नहीं आ रही है सत्ता के हस्तांतरण का समझौता हो रहा है | और गाँधी जी ने नोआखाली से प्रेस विज्ञप्ति जारी की थी | उस प्रेस स्टेटमेंट के पहले ही वाक्य में गाँधी जी ने ये कहा कि मै हिन्दुस्तान के उन करोडो लोगों को ये सन्देश देना चाहता हु कि ये जो तथाकथित आजादी (So Called Freedom) आ रही है ये मै नहीं लाया | ये सत्ता के लालची लोग सत्ता के हस्तांतरण के चक्कर में फंस कर लाये है | मै मानता नहीं कि इस देश में कोई आजादी आई है | और 14 अगस्त 1947 की रात को गाँधी जी दिल्ली में नहीं थे नोआखाली में थे | माने भारत की राजनीति का सबसे बड़ा पुरोधा जिसने हिन्दुस्तान की आज़ादी की लड़ाई की नीव रखी हो वो आदमी 14 अगस्त 1947 की रात को दिल्ली में मौजूद नहीं था | क्यों ? इसका अर्थ है कि गाँधी जी इससे सहमत नहीं थे | (नोआखाली के दंगे तो एक बहाना था असल बात तो ये सत्ता का हस्तांतरण ही था) और 14 अगस्त 1947 की रात को जो कुछ हुआ है वो आजादी नहीं आई …. ट्रान्सफर ऑफ़ पॉवर का एग्रीमेंट लागू हुआ था पंडित नेहरु और अंग्रेजी सरकार के बीच में | अब शर्तों की बात करता हूँ , सब का जिक्र करना तो संभव नहीं है लेकिन कुछ महत्वपूर्ण शर्तों की जिक्र जरूर करूंगा जिसे एक आम भारतीय जानता है और उनसे परिचित है . इस संधि की शर्तों के मुताबिक हम आज भी अंग्रेजों के अधीन/मातहत ही हैं | वो एक शब्द आप सब सुनते हैं न Commonwealth Nations | अभी कुछ दिन पहले दिल्ली में Commonwealth Game हुए थे आप सब को याद होगा ही और उसी में बहुत बड़ा घोटाला भी हुआ है | ये Commonwealth का मतलब होता है समान सम्पति | किसकी समान सम्पति ? ब्रिटेन की रानी की समान सम्पति | आप जानते हैं ब्रिटेन की महारानी हमारे भारत की भी महारानी है और वो आज भी भारत की नागरिक है और हमारे जैसे 71 देशों की महारानी है वो | Commonwealth में 71 देश है और इन सभी 71 देशों में जाने के लिए ब्रिटेन की महारानी को वीजा की जरूरत नहीं होती है क्योंकि वो अपने ही देश में जा रही है लेकिन भारत के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को ब्रिटेन में जाने के लिए वीजा की जरूरत होती है क्योंकि वो दुसरे देश में जा रहे हैं | मतलब इसका निकाले तो ये हुआ कि या तो ब्रिटेन की महारानी भारत की नागरिक है या फिर भारत आज भी ब्रिटेन का उपनिवेश है इसलिए ब्रिटेन की रानी को पासपोर्ट और वीजा की जरूरत नहीं होती है अगर दोनों बाते सही है तो 15 अगस्त 1947 को हमारी आज़ादी की बात कही जाती है वो झूठ है | और Commonwealth Nations में हमारी एंट्री जो है वो एक Dominion State के रूप में है न क़ि Independent Nation के रूप में| इस देश में प्रोटोकोल है क़ि जब भी नए राष्ट्रपति बनेंगे तो 21 तोपों की सलामी दी जाएगी उसके अलावा किसी को भी नहीं | लेकिन ब्रिटेन की महारानी आती है तो उनको भी 21 तोपों की सलामी दी जाती है, इसका क्या मतलब है? और पिछली बार ब्रिटेन की महारानी यहाँ आयी थी तो एक निमंत्रण पत्र छपा था और उस निमंत्रण पत्र में ऊपर जो नाम था वो ब्रिटेन की महारानी का था और उसके नीचे भारत के राष्ट्रपति का नाम था मतलब हमारे देश का राष्ट्रपति देश का प्रथम नागरिक नहीं है | ये है राजनितिक गुलामी, हम कैसे माने क़ि हम एक स्वतंत्र देश में रह रहे हैं | एक शब्द आप सुनते होंगे High Commission ये अंग्रेजों का एक गुलाम देश दुसरे गुलाम देश के यहाँ खोलता है लेकिन इसे Embassy नहीं कहा जाता | एक मानसिक गुलामी का उदहारण भी देखिये ……. हमारे यहाँ के अख़बारों में आप देखते होंगे क़ि कैसे शब्द प्रयोग होते हैं – (ब्रिटेन की महारानी नहीं) महारानी एलिज़ाबेथ, (ब्रिटेन के प्रिन्स चार्ल्स नहीं) प्रिन्स चार्ल्स , (ब्रिटेन की प्रिंसेस नहीं) प्रिंसेस डैना (अब तो वो हैं नहीं), अब तो एक और प्रिन्स विलियम भी आ गए है | भारत का नाम INDIA रहेगा और सारी दुनिया में भारत का नाम इंडिया प्रचारित किया जायेगा और सारे सरकारी दस्तावेजों में इसे इंडिया के ही नाम से संबोधित किया जायेगा | हमारे और आपके लिए ये भारत है लेकिन दस्तावेजों में ये इंडिया है | संविधान के प्रस्तावना में ये लिखा गया है “India that is Bharat ” जब क़ि होना ये चाहिए था “Bharat that was India ” लेकिन दुर्भाग्य इस देश का क़ि ये भारत के जगह इंडिया हो गया | ये इसी संधि के शर्तों में से एक है | अब हम भारत के लोग जो इंडिया कहते हैं वो कहीं से भी भारत नहीं है | कुछ दिन पहले मैं एक लेख पढ़ रहा था अब किसका था याद नहीं आ रहा है उसमे उस व्यक्ति ने बताया था कि इंडिया का नाम बदल के भारत कर दिया जाये तो इस देश में आश्चर्यजनक बदलाव आ जायेगा और ये विश्व की बड़ी शक्ति बन जायेगा अब उस शख्स के बात में कितनी सच्चाई है मैं नहीं जानता, लेकिन भारत जब तक भारत था तब तक तो दुनिया में सबसे आगे था और ये जब से इंडिया हुआ है तब से पीछे, पीछे और पीछे ही होता जा रहा है | भारत के संसद में वन्दे मातरम नहीं गया जायेगा अगले 50 वर्षों तक यानि 1997 तक | 1997 में पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने इस मुद्दे को संसद में उठाया तब जाकर पहली बार इस तथाकथित आजाद देश की संसद में वन्देमातरम गाया गया | 50 वर्षों तक नहीं गाया गया क्योंकि ये भी इसी संधि की शर्तों में से एक है | और वन्देमातरम को ले के मुसलमानों में जो भ्रम फैलाया गया वो अंग्रेजों के दिशानिर्देश पर ही हुआ था | इस गीत में कुछ भी ऐसा आपत्तिजनक नहीं है जो मुसलमानों के दिल को ठेस पहुचाये | आपत्तिजनक तो जन,गन,मन में है जिसमे एक शख्स को भारत भाग्यविधाता यानि भारत के हर व्यक्ति का भगवान बताया गया है या कहें भगवान से भी बढ़कर | इस संधि की शर्तों के अनुसार सुभाष चन्द्र बोस को जिन्दा या मुर्दा अंग्रेजों के हवाले करना था | यही वजह रही क़ि सुभाष चन्द्र बोस अपने देश के लिए लापता रहे और कहाँ मर खप गए ये आज तक किसी को मालूम नहीं है | समय समय पर कई अफवाहें फैली लेकिन सुभाष चन्द्र बोस का पता नहीं लगा और न ही किसी ने उनको ढूँढने में रूचि दिखाई | मतलब भारत का एक महान स्वतंत्रता सेनानी अपने ही देश के लिए बेगाना हो गया | सुभाष चन्द्र बोस ने आजाद हिंद फौज बनाई थी ये तो आप सब लोगों को मालूम होगा ही लेकिन महत्वपूर्ण बात ये है क़ि ये 1942 में बनाया गया था और उसी समय दूसरा विश्वयुद्ध चल रहा था और सुभाष चन्द्र बोस ने इस काम में जर्मन और जापानी लोगों से मदद ली थी जो कि अंग्रेजो के दुश्मन थे और इस आजाद हिंद फौज ने अंग्रेजों को सबसे ज्यादा नुकसान पहुँचाया था | और जर्मनी के हिटलर और इंग्लैंड के एटली और चर्चिल के व्यक्तिगत विवादों की वजह से ये द्वितीय विश्वयुद्ध हुआ था और दोनों देश एक दुसरे के कट्टर दुश्मन थे | एक दुश्मन देश की मदद से सुभाष चन्द्र बोस ने अंग्रेजों के नाकों चने चबवा दिए थे | एक तो अंग्रेज उधर विश्वयुद्ध में लगे थे दूसरी तरफ उन्हें भारत में भी सुभाष चन्द्र बोस की वजह से परेशानियों का सामना करना पड़ रहा था | इसलिए वे सुभाष चन्द्र बोस के दुश्मन थे | इस संधि की शर्तों के अनुसार भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, अशफाकुल्लाह, रामप्रसाद विस्मिल जैसे लोग आतंकवादी थे और यही हमारे syllabus में पढाया जाता था बहुत दिनों तक | और अभी एक महीने पहले तक ICSE बोर्ड के किताबों में भगत सिंह को आतंकवादी ही बताया जा रहा था, वो तो भला हो कुछ लोगों का जिन्होंने अदालत में एक केस किया और अदालत ने इसे हटाने का आदेश दिया है (ये समाचार मैंने इन्टरनेट पर ही अभी कुछ दिन पहले देखा था) | आप भारत के सभी बड़े रेलवे स्टेशन पर एक किताब की दुकान देखते होंगे “व्हीलर बुक स्टोर” वो इसी संधि की शर्तों के अनुसार है | ये व्हीलर कौन था ? ये व्हीलर सबसे बड़ा अत्याचारी था | इसने इस देश क़ि हजारों माँ, बहन और बेटियों के साथ बलात्कार किया था | इसने किसानों पर सबसे ज्यादा गोलियां चलवाई थी | 1857 की क्रांति के बाद कानपुर के नजदीक बिठुर में व्हीलर और नील नामक दो अंग्रजों ने यहाँ के सभी 24 हजार लोगों को जान से मरवा दिया था चाहे वो गोदी का बच्चा हो या मरणासन्न हालत में पड़ा कोई बुड्ढा | इस व्हीलर के नाम से इंग्लैंड में एक एजेंसी शुरू हुई थी और वही भारत में आ गयी | भारत आजाद हुआ तो ये ख़त्म होना चाहिए था, नहीं तो कम से कम नाम भी बदल देते | लेकिन वो नहीं बदला गया क्योंकि ये इस संधि में है | |
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