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Old 09-12-2010, 03:49 PM   #1
Sikandar_Khan
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Default !! कुछ मशहूर गजलें !!

किसी मुज्जमे की सीढियों पे एक बुज़ुर्ग को तन्हा बैठे देखा (मुज्जमे- शोपिंग काम्प्लेक्स)खामोश लब थरथाराते हाथ माथे से पसीना टपकते देखा

सोच रहे होगे कैसे गुज़रे सरे आज़-इखलास ज़िन्दगी के
(आज़-desire )
हर भूली बिसरी याद को उस एक बसर मे स्मिटते देखा

बचपना फिर जवानी फिर बुढ़ापा कोह्नाह-मशक हालत
( कोह्नाह-मशक-- experienced )हर असबाब को एक गहरी साँस मे टटुलते देखा

एक अबरो एक हया एक अदगी एक दुआ
बे परवाह गुज़रते नोजवानो से अपनी सादगी छुपाते देखा

सोचा जाके पूछों की क्योँ बैठे है यूँ तन्हा एकेले
पर हर रहगुज़र के बरीके से नाश-ओ-नसीर समझते देखा

क्या अच्छा किया क्या बुरा किया कोन से रिश्ते निभाए पूरे
हर एक अधूरे पूरे फ़र्ज़ इम्तिहान उम्मीद का इसबात जुटाते देखा
(इसबात-proof )

कभी लगा आसूदाह सा कभी लगा आशुफ्तः सा
(आसूदाह-satisfied आशुफ्तः-confused)
मुब्तादा इबारत के इबर्के-उबाल को बेकाम-ओ-कास्ते देखा (मुब्तादा--principle, इबारत-[experience,इबर्के- perception बेकाम-ओ-कास्ते--expresing)

किसी मुज्जमे की सीढियों पे एक बुज़ुर्ग को तन्हा बैठे देखा


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Disclaimer......! "फोरम पर मेरे द्वारा दी गयी सभी प्रविष्टियों में मेरे निजी विचार नहीं हैं.....! ये सब कॉपी पेस्ट का कमाल है..."

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Last edited by Sikandar_Khan; 08-02-2011 at 07:29 PM. Reason: edit
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Old 09-12-2010, 03:51 PM   #2
Sikandar_Khan
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गुज़र रहा है वक़्त गुज़र रही है ज़िन्दगी
क्यूँ न इन राहों पर एक असर छोड़ चले

पिघल रहे है लम्हात बदल रहे है हालत
क्यूँ न इस ज़माने को बदल दे एक ऐसी खबर छोड़ चले

कोई शक्स कंही रुका सा कोई शक्स कंही थमा सा
क्यूँ न एन बेजान बुतों में एक पैकर छोड़ चले

हर तरफ अँधेरा , ख़ामोशी , तन्हाई , बेरुखी , रुसवाई
क्यूँ न नूरे मुजस्सिम का एक सितायिश्गर छोड़ चले

इन बेईज्ज़त बे परवाह ताजरी-तोश ज़माने में
क्यूँ न कह दे रेत से ये अन्ल्बहर छोड़ चले

हर तरफ धोखा, झूट, फरेब, नाइंसाफी , बेमानी
क्यूँ न बुझती अतिशे-सचाई पर एक शरर छोड़ चले

कैसे लाये वोह अबरू हया दिलके-हर दोशे में
क्यूँ न हर किसी की मोजे शरोदगी पर एक नज़र छोड़ चले

मची है नोच खसोट एक होड़ हर तरफ पाने की
क्यूँ न पाकर अपनी मंजिल को यह लम्बा सफ़र छोड़ चले

करके अपने ख्वाबों को पूरा
क्यूँ न अपनी ताबीर को मु'यासर' छोड़ चले

क्यूँ न इन राहों पर एक असर छोड़ चले
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Disclaimer......! "फोरम पर मेरे द्वारा दी गयी सभी प्रविष्टियों में मेरे निजी विचार नहीं हैं.....! ये सब कॉपी पेस्ट का कमाल है..."

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Old 09-12-2010, 03:53 PM   #3
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कभी कभी ये ज़िन्दगी ऐसे हालातों मे फंस जाती हे
चाह कर भी कुछ नहीं कर पाती है
आसूं तो बहते नहीं आँखों से मगर रूह अन्दर ही रोती जाती है
हर पल कुछ कर दिखने की चाह सताती है
सख्त हालातों की हवाँ ताब-औ-तन्वा हिला जाती है

कभी-कभी ये ज़िन्दगी ऐसे हालातों मे फंस जाती है
रहती है दवाम जिबस उस मंजिल को पाने मे
फिर भी 'यासिर' की तरह एक बाज़ी हार जाती है
रह जाती है एक जुस्तुजू सी और एक नया इम्तेहान दे जाती है
जुड़ जाती है सारी कामयाबियां एक ऐसी नाकामयाबी पाती है

कभी-कभी ये ज़िन्दगी ऐसे हालातों मे फंस जाती है
होता नहीं जिस पर यकीं किसीको एक ऐसा मुज़मर खोल जाती है
फिर भी ह़र बात के नाश-औ-नुमा को नहीं जान पाती है
मुश्किल हो जाता है फैसला करना एक ऐसा असबाब बनाती है
नहीं पा सकते है साहिल एक ऐसे मझधार मे फस जाती है

कभी-कभी ये ज़िन्दगी ऐसे हालातों मे फंस जाती है
कोई रास्ता नज़र नहीं आता ह़र मंजिल सियाह हो जाती है
ह़र तालाब-झील मिराज हो जाते है और ज़िंदगी प्यासी रह जाती है
ह़र चोखट पर शोर तो होता है मगर ज़िन्दगी खामोश रह जाती है

कभी-कभी ये ज़िन्दगी ऐसे हालातों मे फंस जाती है
मुन्तज़िर सी एक कशमोकश रहती है हर तस्वीर एक धुंदली परछाई बन जाती है
होसला तो देते है सब मगर ज़िन्दगी मायूस रह जाती है
हर मुमकिन कोशिश करती है अफ्ज़लिना बन्ने के लिए मगर ज़िन्दगी बेबस रह जाती है


कभी-कभी ये ज़िन्दगी ऐसे हालातों मे फंस जाती है
धड़कने रुक जाती है साँस रुक जाती है मगर एक सुनी सी रात कटती नहीं
मज्लिसो मे नाम तो होता है बहुत मगर ज़िन्दगी 'यासिर' की तरह तनहा रह जाती है
बेबस लाचार सी लगने लगती है, ज़िन्दगी हार के कंही रुक जाती है
फिर उट्ठ के चलने की कोशिश तो करती है मगर कुछ सोच के थम जाती है
एक नए खुबसूरत लम्हे के इंतज़ार मे पूरी ज़िन्दगी गुज़र जाती है
कभी-कभी ये ज़िन्दगी ऐसे हालातों मे फंस जाती है
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Old 09-12-2010, 03:58 PM   #4
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गधे ज़ाफ़रान में कूद रहे है

चारगाह में घोडों के लिये घास नहीं,
लेकिन गधे ज़ाफ़रान में कूद रहे है
कैसे कैसे दोस्त हैं कैसे कैसे धोखे
चबा रहे हैं अंगूर बता अमरूद रहे हैं

ना जाने खो गया है किस अज़ब अन्धेरे में
आंख बन्द करके तलाश अपना वज़ूद रहे हैं

उधार लिये थे चंद लम्हे पिछ्ले जनम में
अभी तक चुका उनका सूद रहे हैं

मकान बेच कर खरीदी थी तोप कोमल ने
ज़मीन बेच के खरीद उसका बारूद रहे हैं
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Old 09-12-2010, 03:59 PM   #5
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हर पूरी होती ख्वाहिश के हाशिये बदलते रहते है ताजरी-तोश ज़िन्दगी के मायने बदलते रहते है
जो रहते है सादगी से उनके लब्ज़ों से आतिशे-ताब भी पिघलते रहते है
कुछ कर गुज़रते है वोह शक्स जो गिर के सही वक़्त पर सम्भलते रहते है
गड़ा के ज़मीन पे पाऊँ फलक पे चलने वाले बड़े बड़ो का गुरुर कुचलते रहते है
सब्र की चख-दमानी को फैय्लाये कितना यंहा हर क्वाहिश पर दिल मचलते रहते है
ताकता रहता हूँ क्यूँ इन खुले रास्तों को तंग गलियों से भी रहनुमा निकलते रहते है
नहीं रही राजा तेरी अदाए-ज़ात से हमरे दिल तो इस टूटी फूटी शयरी से ही बहलते रहते है
थोड़ी सियासी पहुच तो हो ऐ 'यासिर' यंहा तो कत्ले-आम के बाद फंसी के फैसले टलते रहते है
हर पूरी होती ख्वाहिश के हाशिये बदलते रहते है ताजरी-तोश ज़िन्दगी के मायने बदलते रहते है
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Old 09-12-2010, 04:04 PM   #6
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हर बयानी खलिशे-खार की तरह बयां होती
खल्वत मे सफे-मिज़गा के मोअजे -शरोदगी है खोलती

हनोज़ न मिल सका जवाब उन आँखों को
मेरी रुकाशी मे न जाने कैसे -कैसे मुज़मर के साथ है डोलती

मुश्ताक है सारी बातों को जानने के लिए
हर नाश-औ-नुमा बात के शर-हे को जिबस हे तोलती

महवे रहती हे दवाम मोअजे-ज़ार की कुल्फत मे
ऐ-'यासिर' खामोश होकर भी ये तेरी ऑंखें हे बोलती




इसमे कुछ फारसी शब्द भी हैं जिनको मै लिख देता हूँ

खार -- कांटे
खल्वत-- तन्हाई
मिज़गा -- जूनून
शर-हे -- मतलब
जिबस -- बहुत ज्यादा
दवाम -- लीन
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Old 11-12-2010, 03:39 PM   #7
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किसी मुज्जमे की सीढियों पे एक बुज़ुर्ग को तन्हा बैठे देखा (मुज्जमे- शोपिंग काम्प्लेक्स)खामोश लब थरथाराते हाथ माथे से पसीना टपकते देखा

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( कोह्नाह-मशक-- experienced )हर असबाब को एक गहरी साँस मे टटुलते देखा

एक अबरो एक हया एक अदगी एक दुआ
बे परवाह गुज़रते नोजवानो से अपनी सादगी छुपाते देखा

सोचा जाके पूछों की क्योँ बैठे है यूँ तन्हा एकेले
पर हर रहगुज़र के बरीके से नाश-ओ-नसीर समझते देखा

क्या अच्छा किया क्या बुरा किया कोन से रिश्ते निभाए पूरे
हर एक अधूरे पूरे फ़र्ज़ इम्तिहान उम्मीद का इसबात जुटाते देखा
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कभी लगा आसूदाह सा कभी लगा आशुफ्तः सा
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किसी मुज्जमे की सीढियों पे एक बुज़ुर्ग को तन्हा बैठे देखा


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सुभानअल्लाह ! जिँदगी के नफे - नुकसान का वास्तविक चिंतन मुज्जमेँ की सीढ़ियोँ से भला और कहाँ बेहतर हो सकता है । जिँदगी कभी आसूदाह सी कभी आशुफ्तः सी ही तो है तभी तो हमेँ मुकम्मल जहाँ नहीँ मिलता ।
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Old 12-12-2010, 10:41 PM   #8
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इश्क के गुलशन को गुल गुज़ार न कर!
ऐ नादान इंसान कभी किसी से प्यार न कर!
बहुत धोखा देते हैं मोहब्बत में हुस्न वाले,
इन हसीनो पर भूल कर भी ऐतबार न कर!

दिल से आपका ख्याल जाता नहीं!
आपके सिवा कोई और याद आता नहीं!
हसरत है रोज़ आपको देखूं,
वरना आप बिन जिंदा रह पाता नहीं!

वे चले तो उन्हें घुमाने चल दिए!
उनसे मिलने-जुलने के बहाने चल दिए!
चाँद तारों ने छेड़ा तन्हाई में ऐसी राग,
वे रूठे नहीं की उन्हें मानाने चल दिए!

वो मिलते हैं पर दिल से नहीं!
वो बात करते हैं पर मन से नहीं!
कौन कहता है वो प्यार नहीं करते,
वो प्यार तो करते हैं पर हमसे नहीं!

नाबिक निराश हो तो साहिल ज़रूरी है!
ज़न्नत की तलाश में हो तो इशारा ज़रूरी है!
मरने को तो कोई कहीं मर सकता है,
लेकिन ज़ीने के लिए सहारा ज़रूरी है!
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Old 12-12-2010, 10:45 PM   #9
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घर की तामीर चाहे जैसी हो
इसमें रोने की जगह रखना!


जिस्म में फैलने लगा है शहर
अपनी तनहाइयाँ बचा रखना!


मस्जिदें हैं नमाजियों के लिए
अपने दिल में कहीं खुदा रखना!


मिलना-जुलना जहाँ जरुरी हो
मिलने-जुलने का हौसला रखना!


उम्र करने को है पचास को पार
कौन है किस पता रखना!
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Old 12-12-2010, 10:51 PM   #10
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एक लफ्जे-मोहब्बत का अदना ये फ़साना है!
सिमटे तो दिले-आशिक, फैले तो ज़माना है!

हम इश्क के मारों का इतना ही फ़साना है!
रोने को नहीं कोई हंसने को ज़माना है!

वो और वफ़ा-दुश्मन, मानेंगे न माना है!
सब दिल की शरारत है, आँखों का बहाना है!

क्या हुस्न ने समझा है, क्या इश्क ने जाना है!
हम ख़ाक-नशीनो की ठोकर में ज़माना है!

ऐ इश्के-जुनूं-पेशा! हाँ इश्के-जुनूं पेशा,
आज एक सितमगर को हंस-हंस के रुलाना है!

ये इश्क नहीं आशां,बस इतना समझ लीजे
एक आग का दरिया है, और डूब के जाना है!

आंसूं तो बहुत से हैं आँखों में 'जिगर' लेकिन
बिंध जाए सो मोती है, रह जाए सो दाना है!
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