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20-01-2013, 08:47 PM | #1 |
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प्रेरक प्रसंग
एक बार दो मित्र साथ-साथ एक रेगिस्तान में चले जा रहे थे. रास्ते में दोनों में कुछ कहासुनी हो गई. बहसबाजी में बात इतनी बढ़ गई की उनमे से एक मित्र ने दूसरे के गाल पर जोर से झापड़ मार दिया. जिस मित्र को झापड़ पड़ा उसे दुःख तो बहुत हुआ किंतु उसने कुछ नहीं कहा वो बस झुका और उसने वहां पड़े बालू पर लिख दिया
"आज मेरे सबसे निकटतम मित्र ने मुझे झापड़ मारा " दोनों मित्र आगे चलते रहे और उन्हें एक छोटा सा पानी का तालाब दिखा और उन दोनों ने पानी में उतर कर नहाने का निर्णय कर लिया. जिस मित्र को झापड़ पड़ा था वह दलदल में फँस गया और डूबने लगा किंतु दुसरे मित्र ने उसे बचा लिया. जब वह बच गया तो बाहर आकर उसने एक पत्थर पर लिखा "आज मेरे निकटतम मित्र ने मेरी जान बचाई " जिस मित्र ने उसे झापड़ मारा था और फिर उसकी जान बचाई थी वह काफी सोच में पड़ा रहा और जब उससे रहा न गया तो उसने पूछा "जब मैंने तुम्हे मारा था तो तुमने बालू में लिखा और जब मैंने तुम्हारी जान बचाई तो तुमने पत्थर पर लिखा.ऐसा क्यों ?" इस पर दूसरे मित्र ने उत्तर दिया " जब कोई हमारा दिल दुखाये तो हमें उस अनुभव के बारे में बालू में लिखना चाहिए क्योकि उस चीज को भुला देना ही अच्छा है. क्षमा रुपी वायु शीघ्र ही उसे मिटा देगी किंतु जब कोई हमारे साथ कुछ अच्छा करे हम पर उपकार करे तो हमे उस अनुभव को पत्थर पर लिख देना चाहिए जिससे कि कोई भी जल्दी उसको मिटा न सके."
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20-01-2013, 08:48 PM | #2 |
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Re: प्रेरक प्रसंग
एक बार भगवान बुद्ध को प्यास लगी और उन्होंने अपने शिष्य आनंद को पास के झरने से पानी लेने भेजा. उस झरने में थोड़ी देर पहले कुछ पशु नहाये थे जिसकी वजह से उस झरने का पानी गंदा हो गया था. शिष्य आनंद बिना पानी लिये वापस आ गया और भगवान् बुद्ध को हाल सुनाकर बोला " मैं किसी और नदी से पानी ले आता हूँ "
किंतु भगवान बुद्ध ने उसी झरने से पानी लाने को पुनः कहा. पर पानी तो अब भी गंदा ही था इसलिए आनंद फिर से वापस आ गए और वही बात दोहरा दी किन्तु भगवान् बुद्ध ने फिर से उसी झरने से पानी लाने के लिए कहा. आनंद फिर से पानी लेने गए और वापस आ गए par तीन बार ऐसा करने के बाद जब चौथी बार आनंद पानी लेने गए तो पानी तब तक साफ हो चुका था और वो स्वच्छ जल लेकर भगवान् बुद्ध के पास आ गये. पानी पीते हुये भगवान बुद्ध ने कहा " आनंद, हमारे जीवन का जल भी कुविचार रूपी पशु लौटने से गंदा होता रहता है और हम उससे डरकर भाग खड़े होते हैं पर यदि हम भागें नहीं और मन के शांत होने की प्रतीक्षा करें तो सब कुछ साफ हो जायेगा. बिलकुल झरने के पानी की तरह.
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20-01-2013, 08:49 PM | #3 |
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Re: प्रेरक प्रसंग
लाहौर कालेज का एक प्रतिभाशाली छात्र फारसी के साथ स्नातक परीक्षा देना चाहता था पर किसी ने जब उसे यह समझाया कि तुम ब्राह्मण के बेटे हो तुम्हें संस्कृत लेकर स्नातक करना चाहिए तो कम समय होने के बावजूद उन्होंने संस्कृत में स्नातक करने का विचार किया और निश्चय कर संस्कृत के अध्यापक को अपना विचार बताया तो उन्होंने कहा " इतने कम समय में तुम संस्कृत शिक्षा ग्रहण कर सकोगे ? , मैं तो तुम्हें पढ़ाने की चेष्ठा करुगा पर यह कैसे सम्भव हो सकेगा ?"
तब छात्र ने कहा "गुरुवर आपने शिक्षा देना स्वीकार कर लिया, मैं धन्य हो गया. मेरा प्रयास यही रहेगा कि आपको पछताना न पड़े." इसके पश्चात वे सर्वप्रथम श्रेणी में परीक्षा उत्तीर्ण हुए और आगे चलकर वे "स्वामी तीर्थराम" के नाम से प्रसिद्ध सन्त बने.
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20-01-2013, 08:50 PM | #4 |
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Re: प्रेरक प्रसंग
एक सेठ जी कुए में गिर गए और मदद के लिए चिल्लाने लगे. तभी एक किसान ने उनकी आवाज सुनी और मदद के लिए जाने लगा. किसान ने एक रस्सी ली और बोला " तू चिंता मत कर, अपना हाथ इस रस्सी के फंदे में फंसा दे और फिर हम तेरे हाथ को रस्सी से बाँध कर ऊपर घसीट लेंगे "
सेठ जी अपना हाथ उस रस्सी के फंदे में डालने को तैयार ही नहीं हुए और समय निकला जा रहा था. तभी एक युवक वहां पर आया और बोला मैं कोशिश करके देखता हूँ और उसने उस रस्सी का एक सिरा अपने हाथ में लिया और दुसरे सिरे को गाँव वालों को पकड़ा कर वो खुद कुए में कूद गया और सेठ जी से बोला " अब आप इस रस्सी को पकड़ कर ऊपर चले जाएँ में बाद में आ जाऊंगा. " सेठ जी रस्सी को पकड़ कर ऊपर चले गए और बाद में वो युवक भी ऊपर आ गया. गाँव वालों ने उस युवक से पुछा कि उसको ये विचार कहाँ से आया ? तो युवक बोला " जो पहले से ही फंसा हुआ है उसको निकालने की वजाय अगर फंसने की बात करोगे तो वो तुम्हारे ऊपर कैसे भरोसा करेगा. मुसीबत के समय मुसीबत में फंसे हुए आदमी को आपके ऊपर भरोसा भी तो होना चाहिए. जो मैंने उसे नीचे जाकर दिया "
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20-01-2013, 08:53 PM | #5 |
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Re: प्रेरक प्रसंग
एक बार गुरुदेव नानक जी अपने शिष्य के साथ भ्रमण पर जा रहे थे..वे एक गॉव में पहुँचे तो उन्होंने देखा की उस गाँव के सभी लोग हमेशा आपस में झगड़ते रहते है और कोई भी किसी का सम्मान नहीं करता है..गुरुदेव नानक जी गाँव से बहार निकले और बोले "सभी इक्कठे रहना"
कुछ दिनों के बाद वे दूसरे गाँव में पहुँचे और वहाँ पाया कि सभी गाँव वाले आपस में मिलजुल कर रहते है, सभी में प्रेम भाव है और वे लोग कभी एक दुसरे के बारे में बुरा नहीं बोलते हैं...गुरुदेव नानक जी गाँव से बहार निकले और बोले "सभी बिखर जाना " उनके शिष्यों में से एक ने बोला गुरुदेव जिस गाँव में सभी लोग आपस में झगडते थे,एक दूसरे के बारे में भला बुरा बोलते थे और हमेशा एक दूसरे की शिकायत करते थे, उन्हें आपने इक्कठे का आशीर्वाद दिया और यहाँ के लोग कितने अच्छे सभी में आपस में भाई चारा है, तो आप ने इन्हें बिखर जाने को बोला..ऐसा क्यूँ गुरुदेव..?? गुरूजी मंद मंद मुस्कुराते हुए बोले...बुराई को कभी फैलने नहीं देना चाहिए इसीलिए मैंने उन्हें इक्कठे रहने का आशीर्वाद दिया और अच्छाई फूल की खुशबू के समान होती है.. अत: उन्हें मैंने बिखर जाने का आशीर्वाद दिया ताकि उनकी सुगंध का सभी लाभ ले सके..
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20-01-2013, 08:55 PM | #6 |
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Re: प्रेरक प्रसंग
एक आश्रम में गुरूजी प्रवचन दे रहे थे. कुछ नए शिष्यों ने अभी कुछ दिन पहले ही आश्रम में प्रवेश लिया था और उनकी परीक्षा लेने के लिए उन सभी को गुरु जी ने अपने पास बुलाया और एक एक केला दिया और कहा
" इस केले को सबकी नजर से बचा कर खा कर आओ. धयान रहे कि कोई देख ना ले " सभी शिष्यों ने अपने अपने केले खाकर गुरु जी के सामने अपनी उपस्थिति दर्ज करा दी पर एक शिष्य ने अभी तक वापस अपनी उपस्थिति दर्ज नहीं करवाई थी. गुरु जी के आदेश पर उसको ढूँढा गया और गुरु जी के सामने पेश किया गया. पर उसने अभी तक केला नहीं खाया था. गुरु जी ने पुछा " क्या हुआ ? तुमने अपना केला क्यों नहीं खाया अभी तक ? " शिष्य बोला " गुरु जी आपने ही तो कहा था कि कोई देख ना ले " गुरु जी " तो आपको कौन देख रहा था " शिष्य बोला " गुरु जी ईश्वर तो सब कुछ देख रहा था " ( गुरु जी ने सबके सामने उस शिष्य को गले से लगाया और कहा कि सिर्फ तुमने ही मेरा प्रवचन ध्यान से सुना है और समझा है. )
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20-01-2013, 08:57 PM | #7 |
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Re: प्रेरक प्रसंग
एक बार कवि कालिदास बाजार में घूमने निकले.एक स्त्री घड़ा और कुछ कटोरियाँ लेकर बैठी थी ग्राहकों के इन्तजार में. कविराज को कौतूहल हुआ कि यह महिला क्या बेचती है ? तो पास जाकर पूछा " "बहन ! तुम क्या बेचती हो?"
महिला ने कुछ अजीब सी बात कही "मैं पाप बेचती हूँ. मैं लोगों से स्वयं कहती हूँ कि मेरे पास पाप है, मर्जी हो तो ले लो. फिर भी लोग चाहत पूर्वक पाप ले जाते हैं." कालिदास उलझन में पड़ गये। पूछा " घड़े में कोई पाप होता है ?" महिला बोली " हाँ... हाँ.. होता है, जरूर होता है. देखो जी, मेरे इस घड़े में आठ पाप भरे हुए हैं. 1. बुद्धिनाश, 2. पागलपन, 3. लड़ाई-झगड़े, 4. बेहोशी, 5.विवेक का नाश, 6. सदगुण का नाश, 7. सुखों का अन्त और 8. नर्क में ले जाने वाले तमाम दुष्कृत्य " कालिदास की उत्सुकता बढ़ गयी और बोले " अरे बहन ! इतने सारे पाप बताती है तो आखिर है क्या तेरे घड़े में ? स्पष्टता से बता तो कुछ समझ में आये. " वह स्त्री बोली " शराब ! शराब !! शराब !!! यह शराब ही उन सब पापों की जननी है. जो शराब पीता है वह उन आठों पापों का शिकार बनता ही है." कालिदास उस महिला की चतुराई पर खुश हो गये.
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06-05-2013, 08:31 PM | #8 | |
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Re: प्रेरक प्रसंग
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07-05-2013, 07:38 PM | #9 |
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Re: प्रेरक प्रसंग
शुक्रिया बन्धु...!! सुत्र पर सभी बन्धुओँ के योगदान के लिये भी शुक्रिया.
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20-01-2013, 08:57 PM | #10 |
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Re: प्रेरक प्रसंग
एक बालक ईश्वर का परम भक्त था. एक रात उसने स्वप्न में देखा कि स्वयं ईश्वर उसके सम्मुख खड़े हैं. ईश्वर ने कहा " तुम मेरे भक्त हो इसलिए मैं तुम्हें एक कार्य सौंप रहा हूं. सुबह अपने घर के बाहर तुम्हें एक बड़ी चट्टान नजर आएगी. तुम्हे उसे धकेलने का कार्य करना है. " वह बालक ईश्वर में दृढ़ विश्वास रखता था, इसलिए उसने सोच-विचार किए बिना उनके आदेश को मानने की ठान ली. सुबह जब उठा तो उसने देखा कि उसके घर के बाहर वास्तव में एक बड़ी सी चट्टान थी. वह पूजा-पाठ करने के बाद चट्टान को धकेलने में जुट गया. आते-जाते लोग उसे आश्चर्य से देख रहे थे और समझा रहे थे " ये चट्टान नहीं खिसकेगी, तुम व्यर्थ प्रयास मत करो " 'पर वह बालक प्रभु के आदेश को मानकर नियमित यत्न करते हुए सालों तक इस कार्य में लगा रहा. इस दौरान उसका शरीर मजबूत हो गया | उसे लगा कि अब उसे यह कार्य बंद कर देना चाहिए. वह पछता रहा था कि बेकार ही स्वप्न की बात सच मान ली. संयोग से उसी रात उसे फिर ईश्वर के दर्शन हुए. बालक ने ईश्वर से पूछा कि उन्होंने उसे किस कार्य में लगा दिया है ?, चट्टान तो खिसक नहीं रही है, तो उसे इतने परिश्रम का क्या फल मिला ? इस पर ईश्वर मुस्कराए और बोले " कोई भी कार्य कभी व्यर्थ नहीं होता. तुम यह क्यों नहीं देखते कि पहले तुम शारीरिक रूप से कमजोर थे पर अब ताकतवर बन चुके हो. तुम्हारे जीवन से आलस्य जाता रहा और तुम परिश्रमी हो गए हो ".
" हम अपने हर प्रयत्न से प्रत्यक्ष लाभ की कामना करने लगते हैं लेकिन हम भूल जाते हैं कि हरेक प्रयास में कई परोक्ष लाभ भी छिपे होते हैं "
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